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खुजली का सुख..

Ranjana Singh

by रंजना सिंह
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ऐसा कोई नहीं जिसे कभी खुजली न हुई हो।आपने अवश्य ही लक्ष्य किया होगा कि खुजाते खुजाते चाहे चमड़ी छिल जाय,रक्त निकल आये,पर खुजली लग जाय तो उसे खुजाये बिना रह पाना, असम्भव हो जाता है।यानि कि खुजाने(स्वयं को क्षति पहुँचाने) का भी अपना एक अलग ही सुख है।
यह तो हुई शारिरिक खुजली,पर इससे कहीं अधिक गम्भीर त्रासद होती है “मानसिक खुजली”..क्योंकि त्वचा की खुजली तो दवाओं के लेप से शीघ्र ठीक हो भी जाय,मस्तिष्क पर लगाने वाले लेप इतने सहज सुलभ नहीं,उपचार इतना सरल नहीं।सात्त्विक मानसिक आहार और अबतक ग्रहण किये नकारात्मक सूचनाओं को मस्तिष्क से निषेचित करने की श्रमसाध्य साधना प्रक्रिया चाहिए,,तभी जाकर विषरहित हो क्षतिग्रस्त कोशिकाएँ निर्मल व्याधिहीन हो सकती हैं।
दृश्य श्रव्य माध्यमों तथा मनन चिंतन द्वारा नित्यप्रति जो हम ग्रहण करते हैं,वह आहार मुख्य रूप से हमारे मानसिक स्वस्थ्य को प्रभावित और नियंत्रित करता है.. और जैसे दूषित भोजन शारीरिक अस्वस्थता का कारण होता है,वैसे ही विभिन्न दृश्य श्रव्य माध्यमों से ग्रहण की गयी दूषित/नकारात्मक सोच विचार हमारे मानसिक अस्वस्थता का हेतु बनती है…
विडंबना है कि दिनानुदिन जटिल होते जीवन चक्र के मध्य जितनी मात्रा में हमारे मानसिक सामर्थ्य का ह्रास/खपत हो रहा है, उतनी मात्रा में न तो पौष्टिक शारीरिक आहार जुटा पाने में हम सक्षम हो पा रहे हैं और न ही स्वस्थ मानसिक आहार..आज तनाव ग्रस्त मष्तिष्क जब मनोरंजन के माध्यम से विश्राम चाहता है, तो कम से कम मध्यम वर्ग की गृहणियों को मनोरंजन के साधन रूप में सबसे सुगम साधन टी वी के रूप में ही मिलता है. और देखिये न, मन मष्तिस्क और नयनों को चुंधियाता चमकीला यह माध्यम ,जो अहर्निश नकारात्मक पात्र कथाएँ, षड़यंत्र ,अश्लीलता सनसनी लोगों के मस्तिष्क तक पहुँचा रहा है,,विष का डेली डोज नहीं यह? हालाँकि ऐसा नहीं कि इससे नियमित जुड़े रहने वाले यह सब देख खीझते नहीं हैं,पर इनमें स्थित रहस्य रोमांच इन्हें इनसे दूर नहीं होने देता और फलतः सब जानते समझते भी इस से जुड़े रहते हैं..अपनी हानि देख सह भी उसी से जुड़े रहना, यह मानसिक खुजली नहीं तो और क्या है?
तथाकथित रिलैक्स होने के लिए आज आर्थिक रूप से समर्थ युवा वर्ग के जिन तामसिक माध्यमों(फूहड़ फिल्में,पब,डिस्को,मद्यपान,धूम्रपान,शारीरिक सम्बन्ध आदि इत्यादि)से जुड़ता है, क्या कहीं से भी वे आत्मा को तृप्ति शान्ति और सन्तोष देने की क्षमता रखते हैं? किन्तु लौट लौट व्यक्ति उसी में गहरे धँसते सुख और तृप्ति का मार्ग ढूँढता टूटता बिखरता रह जाता है।इसे अचैतन्यता की खुजली न कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
जो बुजुर्ग वर्ग उपर्युक्त व्याधियों से बचे हुए भी हैं,उनका अपना एक अलग ही खुजली सुख है,,,और वह है निरन्तर दुःखदायक स्मृतियों के जाल में फँसे घिरे रहना।हर तरफ नकारात्मकता देखना।उनकी समस्या यह है कि न ही उन्हें विगत जीवन की मधुर स्मृतियों,सफलताओं,स्नेहपूर्ण सम्बन्धों का स्मरण रहता है और न ही भविष्य में सुख की आशा।यूँ भी सामान्य जीवन में बहुधा जो इस जाल में स्वयं को डालकर हम अपने हाथों जीवनरस जला रहे होते हैं,,कहाँ स्मरण रख पाते हैं कि हमारा वश भले अपने भाग्य पर, जीवन में घटित दुःखदायक घटनाओं पर नहीं ,पर हमारा वश इसपर अवश्य है कि हम उन घटनाओं को किस रूप में देखें।इस संसार का एक भी मनुष्य यह दावा नहीं कर सकता कि उसके जीवन में सुखद कुछ भी न घटा है…तो हमें करना यही चाहिए कि दुःखद स्मृतियाँ जो घट चुकी हैं,बीत चुकी हैं,उन्हें बीत जाने दें,मुट्ठी में भींच कर ,हृदय से लगाकर सदा उन्हें जीवित पोषित न रखें और इसके विपरीत सुखद स्मृतियों को सदा ही जिलाएँ रखें,नित्यप्रति उस्का स्मरण कर स्वयं को सकारात्मक ऊर्जा देते रहें।जब हम अपने सुखद स्मृतियों की तालिका को दुहराते रहने की प्रवृत्ति बना लेंगे, न केवल दुखद परिस्थितियों के धैर्यपूर्वक सामना करने की अपरिमित क्षमता पाएँगे अपितु हमारी प्रसन्न और प्रत्येक परिस्थिति में सहज, धैर्यवान रहने की जीवन दृष्टियुक्त सकारात्मक सोच, कईयों के जीवन में सुख और सकारात्मकता बिखेरने का निमित्त बनेगी…
स्वरूचि के कल्याणकारी रचनात्मक कार्य जो व्यक्ति में असीमित सकारात्मक उर्जा भर सकते हैं..हम उनसे सायास जुड़ें।नकारात्मक ऊर्जा जो हममें संचित हो चुकी हैं,वे भाप बनकर स्वतः उड़ने लगेंगी।
देखिए न,,भौतिक सुख सुविधायों के साधनों की आज कैसी बाढ़ आई हुई है,पर वह ज्यों हमारी मानसिक शान्ति सुख ही बहाए लिए जा रही है।मानसिक अवसाद,मनोरोग, हत्याएँ,आत्महत्याएँ, क्रूरतापूर्ण अपराध,बलात्कर,, यह सब मानसिक अवस्थता के ही कारण तो हैं।पारिवारिक सामाजिक सम्बन्ध आत्मीयता सहनशीलता धैर्य मूल्यबोध मानवीयता सब आज जैसे ध्वस्त हुए जा रहे हैं,परिवार ,समाज और देश टूट रहा है..यह सब टूट इसलिए रहा है क्योंकि इसकी प्रथम इकाई मनुष्य रोज स्वस्थ मानसिक आहार के आभाव में अन्दर से टूट रहा है..तो सुखी और स्वस्थ रहने का उपाय केवल यह है कि स्वस्थ सात्त्विक शारीरिक मानसिक आहार हम लेते रहें और यदि खुजली(नकारात्मकता) में मन रमने लगे तो इसके फर्स्ट स्टेज में ही यथोचित चिकित्सा द्वारा इसे ध्वस्त करें।

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