Home विषयअपराध श्रद्धा हत्याकाण्ड पर जानिये क्या बोली अभिनेत्री स्वरा भास्कर

श्रद्धा हत्याकाण्ड पर जानिये क्या बोली अभिनेत्री स्वरा भास्कर

Isht Deo Sankrityaayan

by Isht Deo Sankrityaayan
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स्वरा भास्कर जैसी प्रगतिशील अदाकारा भी आखिरकार संघी सांप्रदायिक मनुवादियों के बहकावे में आ ही गई। आखिरकार उन्होंने आफताब पूनावाला जैसे रहमदिल नेक आशिक को राक्षस बता डाला।

क्या करिएगा! ये समय ही इतना खराब है कि मीडिया और बाजार तो छोड़िए, इंसानी दिमाग़ तक पूरी तरह उनके कब्जे में हो गया है। इंसान ने अब खुद अपने दिमाग़ से काम लेना छोड़ दिया है। आखिर कितने दिन कोई आदमी अपने दिमाग़ से काम ले पाएगा, जब दिन रात उसके ऊपर मीडिया के जरिये फासीवादी विचारों की बम्बार्डिंग होती रहेगी?

आखिर क्या किया है आफताब जी ने। कुल मिलाकर एक काफिर दलित लड़की के 35 टुकड़े ही तो किए हैं! वह भी एक ऐसी लड़की के जो उनकी माशूका थी। क्या अपनी पांचवीं माशूका पर एक बेरोजगार अल्पसंख्यक नौजवान का इतना भी हक़ नहीं है। यह ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था क्या जाने एक आशिक के दिल का दर्द!

आप सोचकर देखिए कि जिसने एक शरीर के 35 टुकड़े किए, उसके लिए क्या कीमा बनाना कोई कठिन काम था? बोटी-बोटी करने और कीमा बनाने में क्या अलग-अलग तरह की एक्सपर्टाइज लगती है? जी नहीं। यह दोनों काम एक ही तरह की एक्सपर्टाइज और एक ही तरह के औजार से किए जाते हैं।
इतना ही नहीं, दुनिया जानती है कि जो बोटी-बोटी कर सकता है, वो कीमा बना सकता है और जो कीमा बना सकता है, वही चटनी भी बना सकता है। लेकिन नहीं, आफताब जी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। जिसकी वे स्वादिष्ट चटपटी चटनी बना सकते थे, उसे उन्होंने केवल टुकड़े-टुकड़े करके छोड़ दिया।
भयंकर बेरोजगारी के इस दौर में एक भटका हुआ नौजवान अपनी जेबखर्च से एक-एक पैसा बचाकर तिनका-तिनका जोड़कर एक महंगा फ्रिज ले आता है। महंगाई के इस दौर में जब आदमी के लिए दो टाइम की दारू का भी खर्च उठाना पहाड़ जैसा कठिन हो गया है, तब वह एक भारी भरकम फ्रिज का खर्च उठाता है।
आखिर किसलिए?
केवल इसीलिए तो कि वह अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी माशूका के प्यारे प्यारे टुकड़े सलीके से रख सके।
यह कैसा समय आ गया है कि स्वरा जैसी कभी प्रगतिशील रह चुकी अदाकारा को आज ऐसे प्रतिभाशाली कलाकार की कलाप्रियता नजर नहीं आ रही है। उसे यह नहीं दिखाई दे रहा है कि आफताब जी ने कितने करीने से अपनी माशूका श्रद्धा के एक-एक टुकड़े को किस तरह सजाकर रखा था फ्रिज में। ताकि उनकी माशूका के बदन की चमक जरा भी फीकी न पड़ने पाए। कयामत तक ऐसे ही ताज़ा दम, ऐसे ही खूबसूरत बना रहे।
लेकिन, अब आपको क्या स्वरा जी!
आप तो जा चुकी हैं फासीवादी मनुवादियों के पाले में। अब आपको कैसे दिखाई देगी किसी की रचनात्मकता, किसी की कलात्मकता।
कैसे आपको दिखाई देगा एक बेरोजगार अल्पसंख्यक डरे हुए नौजवान के सीने का दर्द!

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