लेखक आमिल कियान खान और अभिषेक पाठक ने मलयालम लेखक-निर्देशक जीतू जोसेफ़ की मूल कहानी और स्क्रीन प्ले को काँट-छांटकर हिंदी में परिवर्तित किया है।
ओरिजनल के इतर रीमेक में कुछ मिनट काट दिए है। लेखकों ने डायलॉग में अच्छे पंच देने की बेहतर कोशिश की है लेकिन सोशल मीडिया रील से भी संवाद उठाने में कतई परहेज न किया है।
‘मैं हूँ, मच्छर है और हमारी पौरी हो रही है’
इसमें एक डायलॉग है जो बॉलीवुड को अच्छे से परिभाषित करता है। जब विजय अपने स्टाफ के प्रतिउत्तर में कहता है “यह फ़िल्म पहले तीन दिन चलेगी सो चलेगी, उसके बाद पिटेगी, क्योंकि एन्ड में हीरो जेल में जाता है”
निःसन्देह हिंदी वर्जन की तुलना मूल फ़िल्म से अवश्य होगी, ओरिजनल और रीमेक में कलाकरों के अलावा फ्रेम टू फ्रेम कॉपी-पेस्ट है। बॉलीवुड वर्जन की लेंथ पर कुछ जगह कैंची चलाई गई है।
जो भी मूल देख चुके है और रीमेक देखेंगे, सबसे बड़ा फ़र्क प्लॉट का माहौल रहेगा। विजय सलगांवकर का परिवार पहली फ्रेम से मान बैठा था, कि दोबारा जाँच जरूर होगी और पुलिस आएगी। सलगांवकर हाउस में डर, डिप्रेशन और भय के हाव-भाव रहे। जबकि कहानी ने 7 साल का गैप लिया है, श्रिया सरन के एक्सप्रेशन टेन्स ही दिखलाई दिए। विजय को फ़ोन करने वाला सीक्वेंस एकदम फनी लगा, वीएफएक्स भी न था। साफ पता चल रहा था कि फ़ोन बन्द है।
इशिता दत्ता और मुरनाल जाधव फिर भी ठीक रहे है।
अजय देवगन! ऐसे क़िरदारों में महारत है अच्छे से किरदार लेते है और मिलते है। इस कड़ी में दिखावटी सिरियसनेस लगी, यूं लगा फ़िल्म कर ली। क्योंकि पहली कड़ी में जुड़े थे।
अक्षय खन्ना! शानदार लुक और डायलॉग भी बढ़िया हिस्से में आए, आईजी विनायक अहलावत के साथ दमदार दिखे है। इन्हें देखना सुखद अनुभव रहता है।
तब्बू! मीरा देखमुख कहानी की सूत्रधार है, लेकिन इस कड़ी में कैमियो प्रिजेंस रहा है। धाकदार रही है।
निर्देशक अभिषेक पाठक ने अपने टैलेंट को दिखलाते हुए, निर्देशन कंट्रोल से अपने वर्जन को 13 बिलांद मने मिनट ट्रिम करके बाकी फ्रेम जोड़ने में कामयाब रहे है।
जिन दर्शकों ने ओरिजन दृश्यम के दोनों भाग न देखें है, उन्हें फ़िल्म बेहद जबरदस्त लगेगी और हाँ जो इसके मलयालम वर्जन को देख चुके है। वे रीमेक को देख रहे है, तो भिया रत्ती भर मजा न आएगा। अजय देवगन के रहते आँखें मोहन लाल को तलाशेगी।
मैंने फ़िल्म शुरू की, मुझे क्लाइमैक्स मालूम था। फिर भी पूरी फिल्म देखी, अजय देवगन और अक्षय खन्ना को देखना पसंद है। प्लॉट में कोई सनसनी और खलबली न पैदा हुई। फ्लैट चलती रही, इसका अर्थ है ओ…ओ बॉलीवुड चिचा…अब साउथ से रिमेक उठाने बन्द कर दो। दर्शक उनकी फिल्म ओरिजन रिलीज में ही देख डालते है या ओटीटी पर देख लेते है। आखिर रीमेक को देखने क्यों आएंगे। तिस पर फ़िल्म का बजट 50 करोड़ है। मोहन लाल वाली का 6 से 10 करोड़ रुपये तक था।
दृश्यम ने 2015 में अच्छा बॉक्स ऑफिस लिया था, उसके रीजन में मलयालम फ़िल्में हिंदी डब नहीं लेती थी। अब माहौल बदल गया है हिंदी डब के साथ आ रही है। ऐसे में इसका बिज़नेस कितना रहेगा, दिलचस्प रहेगा। वीकेंड अच्छे से निकलेगा।
अजय देवगन तमिल की कैथी को भोला में बदल रहे है, सोचने वाली बात है कि कैथी से हालिया रिलीज विक्रम भी जुड़ी है आगे रोलेक्स कनेक्ट होगी। पैन इंडिया में दर्शक देख भी चुके है। तो भोला क्या निकलेगी। उसके बाद अजय विक्रम पर भी आएंगे।
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