Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) हल्के में लेना, आज ऐसे भारी पड़ रहा है ।
मनोरंजन को हमने हल्के में लिया है । यह कब सम्माननीय था पता नहीं और आज उसका महत्व भी नहीं । दो हज़ार साल पहले अगर सम्माननीय रहा होगा तो आज उससे क्या ? सौ सालों से अगर व्यवसाय के तौर पर हल्के में ही लिया जाता रहा है तो इसी वास्तव से निपटना होगा।
मनोरंजन क्या है ? साहित्य की अभिनय द्वारा अभिव्यक्ति, जिसको अन्य कलाओं को – जैसे संगीत, चित्र कला जोड़ने से और समृद्ध बनाया जाता है । फिल्म को चित्र का एक्सटैन्शन माना जाये, मंच पर बैक्ग्राउण्ड में कोई फिर नहीं होता, फिल्म में चलायमान हो सकता है । वैसे यहाँ उसके टेक्निकल पहलुओं में नहीं उतरना है, बात भटकेगी।
मुद्दा यह रहा है कि साहित्य अभिनय आदि से समाज को किस कदर प्रभावित किया जा सकता है यह हमने माना ही नहीं लंबे अरसे तक । चरित्र का मसला था, इनसे जुड़े स्त्री पुरुष सुशील नहीं माने जाते थे । शराब और व्यसनाधीन होना भी इस व्यवसाय का व्यवच्छेदक लक्षण बन गया था। संभ्रांत घरों के लोग अपनी बेटियों को इनसे दूर रखते थे ।
लेकिन हम एक बात को भूल गए । You may not be interested in war, but war is interested in you.
मनोरंजन को शास्त्र से शस्त्र कब बनाया गया, हमने ध्यान नहीं दिया । मनोरंजन, जैसे कि संगीत आदि को गलत ठहरानेवाले आकांत विचारधारा ने भी मनोरंजन की उपयुक्तता पहचानकर उसको कब हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया यह हम समझ ही नहीं पाये ।
बाइबल की आदम और हव्वा की कहानी में मुझे एक बात समझ में आती है । शैतान को ईश्वर के सर्वोच्च निर्मिति मानव को जब गिराना था तो उसने उसके स्त्री को ललचाया । इस कहानी में किसी भी संस्कृति के वर्म को अधोरेखित किया गया है ।
संस्कृति, स्त्री ही जीवित रखती है अत: उसपर ही हमला कर दो, लेकिन इस तरह से कर दो कि वही हमलावर का साथ दे ।
शैतान ने हव्वा में जिज्ञासा जगाई और अंत में ईश्वर की आज्ञा तोड़कर फल खाने का दबाव बनाया। उसने अपने प्रेम को अपना शस्त्र बनाकर आदम पर दबाव बनाया । दोनों निष्कासित हुए, शैतान अपना काम सफल देखकर निकल लिया, अपनी करनी का फल भोगने इन दोनों को छोड़ दिया ।
यहाँ मैं नारी को दोष नहीं दे रहा, बस शत्रुओं की गतिविधियों की तरफ ध्यानाकर्षण कर रहा हूँ । हव्वा अगर शैतान के इरादों को समझती तो उसकी बातों में न आती । यहाँ ईश्वर और आदम का भी कम्यूनिकेशन फ़ेल्यूअर है ।
आज ईश्वर है या नहीं इस बहस में मुझे पड़ना नहीं है, बस हर आदम के लिए आवश्यक है कि अपनी हव्वा को शैतान की असलियत समझा रखें । उसकी बातों में आने के परिणाम समझाएँ । और यहाँ हव्वा केवल उसकी अपनी पत्नी ही नहीं, बल्कि उससे संबन्धित हर स्त्री है ।
बाकी शैतान हर जगह बाइबल की तरह साँप बनकर नहीं आता, अपनी संस्कृति में मंथरा है, कोई शैतान नहीं । हम नारी का सम्मान करते हैं, शैतान का पुरुष ही होना आवश्यक नहीं है हमारे लिए । हम समानता में विश्वास रखते हैं ।
बात मनोरंजन से चली थी। और यह भी कहा कि You may not be interested in war, but war is interested in you. अब यह समझ लीजिये कि सब धरती को इस्लाम की हुकूमत में तब्दील करने की बात को जो समाज ईश्वरी आज्ञा मानता हो वह समाज अन्य समाजों से सदा युद्धरत रहेगा ही । और हर युद्ध हिंसक नहीं होता लेकिन नुकसान अधिक करता है । आज जो हम फ़ोर्थ और फ़िफ्थ जनरेशन वॉर की बातें करते हैं उन्हें आधुनिक समझने से पहले हमें G हा द को समझना चाहिए ।
बीसवी सदी में वाम ने मॉडर्न के नाम से संस्कृति विखंडन की जो सुगठित मुहिम चलायी उसमें आक्रांत विचारधारा के लोग उनके सहयात्री बन गया । परंपरावाद आदि नाम दे कर मूल संस्कृति को बदनाम किया गया और उसका ढांचा तोड़ दिया गया । तोड़ने वालों में नव निर्माण की कोई क्षमता तो थी नहीं, डबड़ाल टूटपुंजियों को महाकवि के नाम से नवाजा – एरंडोस्तु द्रुमायते । लेकिन जो जगह खाली हो गयी थी उसमें उर्दू आ गयी ।
प्रेम की भाषा हिन्दी न रहकर, प्यार की ज़ुबा उर्दू हो गयी ।
लव जिहाद में इसका क्या योगदान रहा है, हम परिणाम देख ही रहे हैं । क्रान्ति भी इंकलाब हो गयी, मानवता इंसानियत हो गयी । कद्र शायरों की ही होने लगी,उपेक्षा कवि की नियति हो गयी।
दृक श्राव्य माध्यम की सामरिक शक्ति को हमने नहीं पहचाना और जब तक पहचानते, हमारी महिलाएं इनके काबू में आ चुकी थी। आज चंद सेलेब्रिटी फोटो लगाते ही अगर हमारी ही महिलाएं हम पर दबाव बनाने लगती हैं तो और कौनसा सबूत चाहिए ? पहले यह काम सूफी करते थे । चमत्कारों के नाम पर ‘चमत्कार ‘ कई होते रहे हैं । आज सूफी का काम सिनेमा और सिरियल कर रहे हैं ।
भारत के कला विश्व में अगर कीर्ति पानी है और कुछ कमाई भी करनी है तो वामी तेवर या / और उर्दू जुबां के सिवा जीवित रहना असंभव है । क्यों हमें इसके पीछे एक सुनियोजित षडयंत्र समझ में नहीं आ रहा ? धीरे धीरे इसमें संभ्रांत घर के लोग भी जाने लगे और यह एक प्रतिष्ठित व्यवसाय बन गया । एतराज उससे भी नहीं लेकिन इसके साथ साथ हमारा जो दीर्घकालीन नुकसान हुआ है उसकी क्षतिपूर्ति करना बड़े कष्ट का काम है ।
सिनेमा जगत से हिन्दू नाम खदेड़ दिये गए जब से गिरोह ने इसमें अपना धन लगाना शुरू किया । हिन्दू को तो पहले से ही बदनाम किया जा रहा था । सूदखोर साहूकार हिन्दू ही होता था, पठान का ब्याज कभी नहीं दिखाया गया, दिखाया गया तो सहृदय काबुलीवाला या ‘यारी है ईमान मेरा’ वाला शेरखान । ज़ुल्मी और बलात्कारी ठाकुर ही होता था, नवाब नहीं । बाकी जाने दीजिये, लिस्ट लंबी हो जाएगी । लेकिन फिर भी हिन्दू निर्माता थे तो कुछ मूल्य बचे थे। लेकिन जैसे गुनहगारों के पैसे लगाने शुरू हो गए, सांस्कृतिक भीतरघात शुरू हो गया । फिल्में खुलकर मौला मौला करने लगी । काबिल हिन्दू पुरुष कलाकार दरकिनार किए जाने लगे और उनकी जगह पाकिस्तान से इम्पोर्ट करके आक्रांता विचारधारा कामें लूटने लगी ।
वैसे, एक काम करेंगे ? छोटा सा है, और मुफ्त है । निराला और दिनकर की कोई रचनाएँ पढ़िये ऑनलाइन। बोलकर पढ़िये, मन ही मन नहीं । अपने आप लय प्राप्त हो जाएगी। आदि शंकराचार्य की तो बात ही नहीं करता, उनकी रचनाएँ तो तालवाद्य कौनसा होगा यहाँ तक सूचित करती हैं यह स्वानुभव से कह रहा हूँ । जितने भी संस्कृत स्तोत्रों के अल्बम मैंने बनवाये, हर एल्बम में आदि शंकराचार्य विरचित कोई स्तोत्र अवश्य मिलेगा। अस्तु, निराला और दिनकर की रचनाओं की बात कर रहा था। उनकी रचनाओं के म्यूजिकल एल्बम क्यों नहीं ?
मराठी के दिग्गज कवि थे ग दि माड़गूलकर । ‘गीत रामायण’ के कारण महाराष्ट्र वाल्मीकि कहलाए । निस्संदेह उस सम्मान के योग्य थे, लेकिन उसके पहले से वे मराठी फिल्मों के चोटी के गीतकार भी थे । उस जमाने का कोई भी सुंदर गीत हो और पता न हो रचना किसकी है तो अंधेरे में तीर चलाएँगे कि इनका होगा तो भी 70% चांस होगा कि आप सही होंगे । तो मुद्दा यह है कि अगर वे पहले से ही एक बड़ा ब्रांड न होते तो क्या गीत रामायण उतना सुपर हिट होता ?
हिन्दी कविताओं की दुर्दशा कर दी वामियों ने। उसकी जगह शायरी आकर स्थानापन्न हुई ।आक्रान्ताओं ने शायरी के साथ वो छेड़छाड़ नहीं होने दी, उसकी गेयता अक्षुण्ण रही । यहाँ शायरों के दर्जे पर प्रश्न नहीं, प्रश्न कविता किस तरह खदेड़ी गई वह समझने का है । और भी अच्छी तरह से समझना है तो यू ट्यूब पर ‘प्रिये प्राणेश्वरी’ यह गीत देखिये । देखिये, सुनने से बात समझ में नहीं आने की ।
आज हम मान रहे हैं कि फिल्मों ने हमपर काफी परिणाम किया है । हमें विशेष रूप से यह मानना होगा कि शैतान ने हव्वा को बरगलाया है । क्योंकि हव्वा ही शैतान को फरिश्ता होने का प्रमाणपत्र दे रही है और उसकी तरफ से आप से लड़ रही है ।
हिन्दू इकॉनमी और एकोसिस्टम की आवश्यकता कब समझेंगे हम ?

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