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सीतारामम मूवी रिव्यु

ओम लवानिया

by ओम लवानिया
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राम सबके है और सब राम के है।
राम कौन है और क्या है, त्रेता युग ने बतलाया था कि मनुष्य स्वरूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की यात्रा पूर्ण करके मानव जाति के भविष्य के लिए आधारशिला रखी थी।
सिनेमाई लेखक-निर्देशक हनु राघवपुड़ी ने सीता-राम को केंद्र बिंदु में लेकर 70एमएम के लिए पीरियड फॉर्मेट के ‘सीता रामम’ बनाई है।
हनु के कंटेंट की थीम बड़ी अद्भुत है राम को अनाथ बतलाकर अपनी कहानी से दर्शकों को समझा रहे है कि राम किसी एक के नहीं है अपितु राम सबके है और पूरा देश राम का है। तो वही, सीता महालक्ष्मी से इंगित किया है सबके डीएनए में सीता बसी हुई, भले वर्तमान उन्हें प्रिंसेज नूरजहां के नाम से जानता व पहचानता है। लेकिन उनके भीतर सीता महालक्ष्मी का इंतज़ार कश्मीर में बैठे राम कर रहे है और अपनी सीता को तलाशते जरूर आएंगे।
लेखक-निर्देशक की थीम यह भी अंडर लाइन करती है वर्तमान परिवेश में राम आएंगे, तब उन्हें किससे युद्ध करना पड़ेगा।
हनु ने सीता-रामम को फ़्लैश बैक ट्रीटमेंट के साथ बेहतरीन स्क्रीन प्ले सौंपा है दो घण्टे तैतीस मिनट में खबर ही नहीं पड़ती, स्क्रीन पर समाप्ति की घोषणा का इंडिकेशन होने लगता है। आँखें राम-सीता के यूनिक सिनेमाई मिलन व कश्मीर की वादियों को देखने में व्यस्त हो जाती है फिर कुछ होश न रहता है। लेखक ने अच्छा क्वालिटी टाइम देकर स्क्रीन प्ले लिखा है भारतीय आर्मी के इर्दगिर्द सीता-राम की प्रेम कहानी बतलाई गई है।
त्रेता युग में राम ने सीता के प्रेम के लिए रामसेतु का निर्माण किया था, जो वर्तमान में समंदर के बीचोबीच साक्षी बनकर खड़ा हुआ है। तो वही, हनु की कहानी में राम अपनी सीता महालक्ष्मी के लिए बारह हजार की जमा पूंजी से नर्क के अंधेरे में बैठी, उन महिलाओं को उजाला देते है जहाँ सबकुछ क्लियर है अंधेरे की कोई परछाई भी न है।
स्क्रीन को डायलॉग भी बेहतरीन मिले है
‘देश के साथ है राम, अब राम का साथ देने की बारी है हमारी’
ऐसे ही पंचेज में डायलॉग बुने हुए है।
क्लाइमैक्स थोड़ा अटपटा रखा है, कुछ इतर होता तो मजा ज्यादा होता। क्योंकि राम विष्णु से ही है और विष्णु ही राम है।
लेखक हनु ने अपनी कहानी को समझाने के लिए सनातनी प्रतीकों का ठीक से यूज किया है। जो किरदारों से बाहर निकलता है।
कास्टिंग निर्देशक ने हनु की कहानी के किरदारों को अव्वल दर्जे के कलाकार दिए है। मुख्यतया त्रिकोण में केंद्रित क़िरदार है न, उनसे मिलने वाले कलाकार शानदार रहे है।
दुलकर सलमान! इन्हें चुप के डैनी से मिलते देखा है लाजबाव रहे है। हालांकि लेफ्टिनेंट राम डैनी से पहले सिल्वर स्क्रीन पर पहुँचे थे। लेकिन मैं देखने से चूक गया था, इसलिए बाई डिफ़ॉल्ट डैनी पहले हो चला। सलमान ने लेफ्टिनेंट राम को जिस अंदाज में दर्शकों के बीच रखा है न, उम्दा है। एक्सप्रेशन, डायलॉग डिलवरी और कहानी से कनेक्टिविटी सॉलिड है। कई फ्रेम्स में आँखों में नमी देकर निकले है। सलमान उच्च कलाकारों की सूची की सीढ़ियां चढ़ने लगे है। आगामी कंटेंट के किरदारों से ऊपर पहुँच जाएंगे। राम को राम के गुणों के साथ लेकर आये है।
मृणाल ठाकुर! ट्रैन के डब्बे में पहली झलक निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर को सैल्यूट रहेगा। उन्होंने सीता और राम के मिलन की पहली मुलाकात को इतनी गहराई में उतरकर प्राथमिकता दी और इसे दर्शकों के लिए स्पेशल बनाया है। हाव-भाव में सीता महालक्ष्मी का राम को पहली छवि देना उत्तम था। सिनेमाई पर्दे पर क्या नजारा रहा होगा, उसके बाद मृणाल का दो किरदारों के बीच ट्रांसफॉर्मेशन भी जबरदस्त रहा है।
राश्मिका मंदाना! पाकिस्तानी स्टूडेंट आफरीन के साथ नजर आई है। हनु की कहानी के सूत्रधार किरदार से मिली। इनका एटीट्यूड देखकर भारत में बैठे, कुछ चेहरे की तस्वीर ताजा हो चली। लव स्टोरीज से डिफर शेड में मस्त लगी है।
थारुण भास्कर! सीता की खोज में बालाजी इनके जरिए कहानी में जुड़े है। जो आफरीन की सहायता करने निकलते है।
वेनेला किशोर! नाटक अभिनेता दुर्जोय शर्मा, राम के मित्र के रूप में कहानी के साथ जुड़ते है। हनुमान और रावण के शेड्स में अच्छे पंच देते है, तिस पर इनका कैमियो किरदार ही है।
अन्य कलाकार सचिन, प्रकाश, गौतम मेनन आदि ने भी अच्छे से अपने किरदार पकड़े है।
सिनेमेटोग्राफी और बीजीएम! क्रमशः पीएस विनोद,
श्रेयस कृष्णा और विशाल चंद्रशेखर ने इन सेगमेंट को सँभाला है। बेजोड़ जुगलबंदी है, कहानी को खूबसूरती प्रदान की है। इनके साये तले सीता राम मिले है।
एडिटर कोटागिरी वेंकटेश्वर राव ने सिनेमाई प्रेम कहानी को उचित ट्रीटमेंट दिया है। लेंथ तो कम लगने लगी थी। जब तीन मिनट बचे थे और राम के बारे भेद खुलने लगा था तब लगने लगा। कुछ और फ्रेम मिलनी चाहिए थी।
नज़दीकी सिनेमाघरों में चूकने के बाद अब हॉटस्टार पर देखने का मौका मिला है।
सीता रामम के शुरुआती फ्रेम्स में सेकुलिया फीलिंग निकल रही थी, लेकिन कहानी ने धीरे धीरे सब समझा दिया।
देखिए, दक्षिण भारत से प्रेम कहानियां आती है जो दर्शकों को ऐसे लुभाती है कि सब दौड़े चले जाते है। जबकि बॉलीवुड वाले लव स्टोरीज में सॉफ्ट पोर्न परोसते है। फ़र्क देख ले। फिर न कहना कि साउथ की तारीफ़ करते हो। सीता रामम की भांति प्रेम कहानी बनाना तो दूर, सोचने में भी कोसों पीछे है।

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