अधिसंख्य समाज जो इस जन्मना ऊंच नीच की अवधारणा को अस्वीकार करता है, वह इसका मुखर औपचारिक उद्घोष करे. हम फार्मली घोषित करें कि सभी हिन्दू समान हैं और भातृत्व की भावना से बंधे हैं. अपनी आर्थिक, भौतिक उपलब्धियों में कितने भी आसमान हों, सामाजिक संपर्कों में सभी समान हैं. और जो कोई भी इसके विपरीत विचार रखता है, वह अगर उन्हें सार्वजनिक रूप से व्यक्त करे तो उसे शर्मिंदा करें, उसकी निंदा, भर्त्सना, बहिष्कार करें. यदि हमने अभी से भी ऐसा नहीं किया तो हमारे शत्रु जो नैरेटिव बना रहे हैं, और हमारे बीच के कुछ कुंठित लोग जो उन्हें यह नैरेटिव बनाने का कच्चा माल उपलब्ध करा रहे हैं, उसका परिणाम हमें ही भुगतना होगा.”
दोनों मित्र यहां तक पहुंचे कि वे स्वयं समदर्शिता का पालन करते हैं और उन्होंने अपने परिवार में यह जातिगत ऊंचे नीच का भेद नहीं देखा है.
पर जातिवादी व्यवहार की भर्त्सना और सामाजिक बहिष्कार के प्रश्न पर चुप्पी लगा गए… एक बिल्कुल हाइपोथेटिकल कॉन्टेक्स्ट में भी वे इस व्यवहार की निंदा नहीं कर सके…
हमारा समाज जातिगत भेदभाव युक्त व्यवहार को स्वीकृति देता है. उन लोगों द्वारा भी, जो स्वयं अपने व्यवहार में समदर्शी हैं.
यह विषय ऑप्शनल नहीं है. यह वह वाली बात नहीं है कि मैं नॉन वेज खाता हूं और आप वेज खाते हैं और दोनों अपने अपने घर में अपनी मर्जी से जी रहे हैं. यह वह दुर्व्यवहार है जिसके परिणाम दोनों को भुगतने होंगे. एक अगर घर पर पेट्रोल छिड़क रहा है तो दूसरे को उसे रोकना ही होगा, नहीं तो आग लगेगी तो दोनों जलेंगे.