Home लेखक और लेखअवनीश पी ऍन शर्मा गरीबों के लिए धर्म जरूरी है : बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर

गरीबों के लिए धर्म जरूरी है : बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर

by Awanish P. N. Sharma
205 views

गरीबों के लिए धर्म एक जरूरत है। संकटग्रस्त लोगों के लिए धर्म एक अति आवश्यक तत्व है। गरीब लोग सकारात्मक आशाओं के साथ जिंदा रहते हैं। अंग्रेजी के इस शब्द ‘होप’ का अर्थ होता है, आशा.. जीवन का स्रोत। अगर यह स्रोत नष्ट हो गया तो फिर जीवन कैसे चलेगा ?

धर्म व्यक्ति को आशावादी बनाता है। और जो पीड़ा में हैं, गरीबी और अभाव में हैं उन्हें यह संदेश देता है कि घबराओ मत ; जीवन आशाओं को हासिल करने वाला होगा, जरूर होगा, उसे होना ही होगा। इस तरह गरीब और व्यथित लोग धर्म को अपने सकारात्मक आशावादी आधार के रूप में आत्मसात करके, पकड़ के चलने वाले लोग हैं।
(14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाने के अगले दिन 15 अक्टूबर को दिए गए 2 घन्टे के भाषण का अंश)
बाबा साहेब का यह पूरा भाषण मराठी में प्रबुद्ध भारत में 27 अक्टूबर को “नागपुर क्यों चुना गया” शीर्षक से छपा। भाषण देते समय बाबा साहेब बीमार थे और 6 दिसंबर 1956 को, लगभग दो महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गयी। बाबा साहेब के भाषण के इस हिस्से से एक बात तो बखूबी साफ़ है कि वे भारतीय संदर्भ में धर्म को व्यक्ति के, समाज के, और विशेष तौर पे गरीब, अभावग्रस्त, अछूत, वंचित समाज के लिए जीवन में बदलाव की खातिर एक जरूरी तत्व मानते थे।
सच, तथ्यों और इतिहास के खिलाफ गिरोहबाजी देखिये : दुःख और आक्रोश के चलते धर्म त्याग के समय बाबा साहेब के कहे हिन्दू धर्म विरोधी बातें तो ठीकेदार कलमें आपको बताती आयीं दशकों से। उस कोसने को खूब पढ़ा, देखा और समझा गया, लेकिन उन्ही बुद्धिखोरों ने आपको-हमे उनके कहे ये हिस्से न बताये और न इन पर कोई चर्चा या बहस ही करते नजर आये होंगे।
जानते हैं क्यों ! क्योकि तब धर्म को अफीम कह कर नास्तिकता की आड़ में सामाजिक आंदोलनों की खालों में छिपे दार्शनिक, वैचारिक और राजनैतिक चरस की खेती और उसे बोती आई जमातों का क्या होता !! बकौल बाबा साहेब : सर्वहारा समाज का धर्म-कर्म से पकड़-धकड़ बना रहा तो उनका सुख-दुःख कैसे जल, जंगल, जमीन के दार्शनिक हाट में बेंच सकेंगे कॉमरेड..! भारतीय संस्कृति और जमीन से दूर इन आयातित विचारों को राजनैतिक जमीन पर हमेशा नकार.. धर्म और भारतीयता के प्रति बाबा साहेब की इनके प्रति समझ और पहचान को पुख्ता ही किया है भारतीय समाज और मतदाता ने।
संकोच बाबा साहेब के मूल मंत्र, जाति विनाश और जाति तोड़ो को.. जातीय स्वाभिमान और जाति बांधों में बदल चुके तथाकथित जातीय चिंतकों, समता-समाजवादी जातिसूँघको को भी इस लिए रही है तथ्यों से, क्योंकि तब मीम संग भीम का नारा देते अंबेडकरवादी छात्र संगठन के लड़के रोहित वेमुला से अफ़जल गुरु की जय बुलवा कर। तो.. ऑल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंट फोरम के लोगों से जेएनयू परिसर में कॉमरेड संपादक प्रमोद रंजन की दलित पत्रिका ‘फारवर्ड प्रेस’ में छपे लेख में “चंडी नही रंडी (दुर्गा नही वेश्या) : किसकी पूजा करते हैं बहुजन” के पोस्टर लगवाने और जहर बोने की आदतो के बीच अपना कौन सा मुंह.. धर्म परायण बाबा साहेब को दिखाते !
हकीकतों के ऐसे बड़े बाजीगर, ठग और अपराधी रहीं कलमों के सुविधाजनक चुनाव और स्याही के रंग पहचानिये।

Related Articles

Leave a Comment