Home विषयकहानिया बारात रवाना ,महिलाओं का हंगामा

निशि मिश्रा जो कि मेरी कॉलेज फ्रेंड थी उसके भाई की शादी में जाना हुआ। यह पहली ग्रामीण शादी थी जिसमें मुझे रुकना पड़ा अन्यथा थोड़ी देर ठहरकर औपचारिकता करने के उपरांत वहां से चल देती थी ।
हमेशा की तरह मेरे पर्स में मेरी डायरी थी जिसे मैं सबसे मिलने के बाद जो भी देखती उसे लिखने लगती थी। लिखते समय कुछ छोटे छोटे बच्चे मेरे पीछे खड़े होकर जो मैं लिख रही थी उसे पढ़कर खूब हँसते औऱ अपने मित्रों को बताते कि मैं क्या लिख रही हूँ।
मेरी ही उम्र की कुछ लड़कियाँ मुझे बड़ी देर तक एकटक देखती और फिर आपस में ख़ुसूर फुसुर करके जोर से हँसने लगती।
हाँ तो कहानी शुरू करती हूँ जब बारात रवाना हो गयी ।
बारात में सब गए मगर फूफा जी फूफा धर्म निभाते हुए न जाने किस बात से खफा हो गए ,उन्होंने बारात में न जाने का निर्णय लिया, क्रोधित तो इतने थे कि जिद कर बैठे घर जाने के लिए पर संसाधन न होने के कारण उन्हें रात अपनी ससुराल में ही बितानी पड़ी।
मैं देखती हूँ कि रात के 12 बजे उसी घर की एक महिला जिनकी उम्र करीब 55 या 60 वर्ष की होगी उन्होंने महिलाओं के वस्त्रों को उतार कर पुरुषों के वस्त्रों को धारण किया , मूंछ लगाई और सिर पर पगड़ी बांधी तथा हाथ मे एक लाठी लेकर घर के बाहर निकली।
उनका भेष देखकर सब महिलाएं खूब हँस रही थी और संकेत में कुछ बातें कर रही थी जो पहले से ही प्लान किया होगा।
घर से निकलते ही वो पुरुष वेषधारी महिला टेंट के अंदर एक खाट पर सो रहे फूफा जी के पास गई और सीधे लाठी उनके पिछवाड़े में घुसेड़ देती हैं…. फूफा जी को ज्यादा असर नहीं हुआ उन्होंने सोचा शायद कुछ और हो इसलिए …हूँ हूँ करके फिर सो गए।
पुरुष वेषधारी महिला को दूसरी महिलाओं ने फिर संकेत दिया कि एक बार और ..इस बार पुरूष वेषधारी महिला ने डंडा फिर से फूफा जी के पिछवाड़े में घोंपा कि फूफा जी तिलमिला के उठ गए।
महिला फूफा जी को लाठी दिखाती फिर थोड़ी दूर भाग जाती, फूफा जी के अंदर जितनी शक्ति थी उतनी शक्ति से उन्होंने गाली देना शुरू कर दिया जिससे सभी महिलाएं हँसने लगी।
फूफा जी के बाद उन्हीं के पड़ोसी एक चाचा जी नहीं गए थे बारात के साथ क्योंकि वो भी नाराज थे। महिलाओं ने उनके भी नाक में दम कर दिया , उन्हें इतना परेशान किया कि वो अपनी खाट लेकर घर के भीतर भाग गए क्योंकि वो समझ गए थे कि यह बारात रवाना होने की रात को महिलाओं के खेल की परम्परा है और वही सब परेशान कर रही हैं।
बाकी सब लोग समझ गए पर फूफा जी नहीं समझे इसलिए वो सारी रात खाट पर बैठकर गाली ही देते रहे और निशि की फुआ उन्हें आकर चुप कराती कि बोले थे बारात में चले जाओ मगर नहीं गए अब भोगो…!
ये चोर है कोई लगता है जो आपको परेशान करने आया है।( इतना कहकर वो भी पल्लू से मुंह छुपाकर हँसने लगती)
बारात रवाना होने की रात महिलाओं ने आपस मे कई नाटक खेले , कई पारंपरिक क्रियाएं हुई । यक़ीनन भारतीय संस्कृति कभी संकीर्ण नहीं रही बल्कि उसने जीवन का पूरा स्वाद चखा है अपनी उच्चता तक पहुंची है।
ये सारी बातें लड़कों को शायद पता नहीं होगी पर महिलाएं इसका हिस्सा रह चुकी हैं वो जानती हैं पर कहते हैं जब से परिवार टूटने लगे हैं तब से धीरे धीरे यह सब खत्म होता चला जा रहा है , शायद जो मैंने देखा वो उत्तरार्द्ध था या अंतिम समय था।
हो सकता है कई क्षेत्रों में अभी भी जीवित हो लेकिन यह सच है कि यदि आज इन सबका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया जाय तो लोग इसका आनंद नही लेंगे बल्कि कहेंगे अश्लीलता फैल रही है , संस्कृति नष्ट हो रही है जबकि ये परम्पराएं बहुत पहले से हैं।
आज ये सब किसी विकास के कारण खत्म नहीं हो रहें हैं बल्कि परिवार टूट रहे हैं , लोगों में सहनशक्ति कम हो रही है इसलिए खत्म हो रहें हैं।
संस्कृति की दुहाई हम देते हैं कि नष्ट हो रही है पर क्या हमने पूर्व संस्कृति को जाना है …?

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