Home राजनीति कट्टर ईमानदार – अन्ना हज़ारे

जितना लोगों ने जाना था,उसी को भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा मानते हुए जब पूरा देश उबल रहा था,यही योगेंद्र यादव और उनके समूह के कई अन्य सदस्य अन्ना हज़ारे केजरीवाल के साथ मिलकर कॉंग्रेस के विरिद्ध रामलीला मैदान पर डटे थे और पूरे देश ने इन्हें हाथों हाथ लिया था,इनको अपने उद्धारक रूप में देखा था।केजरीवाल जी की भाषा में कहें तो ये थे जनता की दृष्टि में “कट्टर ईमानदार”…..
हम जैसे लोग इतने मूर्ख भावुक और अंधे थे कि यह तक नहीं देख पाए कि इसी ग्रुप में से अधिकांश लोग न थे जो सफेदा माई के टीम NAC के सदस्य भी थे जो देशतोड़क नीतियों से लेकर भ्रष्टाचार के सारे रास्ते/नीतियाँ बना रहे थे।
बाद में जब तथाकथित आंदोलन ने राजनीतिक शेप ले लिया तो अधिकारों के क्लेश/क्लैश को लेकर ऊपरी तौर पर खूब सारे जोड़ घटाव हुए।जिन्हें मूर्ख बनाकर AAP का चेहरा चमकाने के लिए लिया गया था,दल बनते ही उन्हें दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया,जो समस्त दुर्गुण सम्पन्न थे उन्हें चुन चुन कर संगठन में लिया गया। किन्तु आज जिनमें थोड़ी सी भी चैतन्यता, समझने देखने की क्षमता है,उनके सामने स्पष्ट है कि AAP के बाप/माई जन्मदाता वही हैं जिन्होंने अपने विरुद्ध इन्हें भिन्न दिखाते अपने वोटबैंक को इनके सपोर्टर रूप में संगठित (इन्टैक्ट) किया था।
वस्तुतः ये महिषासुर के आधुनिक वर्जन हैं और जब इन्हें लगता है कि महिष रूप कमजोर पड़ रहा तो सिंह का रूप ले लेते हैं,जब वह रूप विफल होता दिखता है तो गज रूप धारण कर लेते हैं,,कभी मनुष्य तो कभी पुनः महिष…..
जब जो रूप काम कर जाए,उसे आगे बढ़ाकर अपने ही मूल रूप का विरोध करते दिखाते हैं।
आज तथाकथित भारतजोड़ो जात्रा में उनके साथ कन्धे से कन्धा मिलाए वे सभी वामपन्थी शहरी नक्सली, NAC के सदस्य युवराज के साथ साथ चल रहे हैं।सवाल कि यदि ये साथ ही थे तो रामलीला मैदान मंच पर क्या कर रहे थे,,,और यदि ये रामलीला मंच पर खड़े थे तो आज यात्रा में क्या कर रहे हैं?
खैर, बात आप की…..
बाप/माँ,, अर्थात जन्मदाता से बीस नहीं, सौ गुना अधिक चतुर शातिर हैं ये।विरोध करने वाले पत्रकार, मीडिया हाउस को निर्ममतापूर्वक मिटा देने में सिद्धहस्त और समर्थकों को आसमान पर बैठा कर राजा बना देने में सक्षम,अपने ही स्तर का भ्रष्ट बनने देने का अवसर देना काँगियों की राजनीति थी।पर आपियों ने तो अलग ही लेवल का माहौल बनाया है।कट्टर से कट्टर राष्ट्रवादी, सफेद चेहरे वाला बड़ा मीडिया हाउस इसके हाथों बिकने से नहीं बच पाया है।इस व्यक्ति ने जितनी सफलता और सफाई से मीडिया घरानों को अपनी जेब में भरा है,,आजतक कोई नहीं कर पाया।
एक भी चैनल, प्रिंट मीडिया नहीं जिनके पास कजरुद्दीन के पापों के कच्चे चिट्ठे नहीं,,पर किसी में कभी वह हिम्मत इतने वर्षों में आपने देखी है कि कोई इसकी एक फाइल खोल दे?
सोशल मीडिया के दवाब में जब कभी ये कुछ कहने को बाध्य होते भी हैं तो मुद्दे की गम्भीरता को डायल्यूट करने के निर्लज्ज प्रयास में साफ साफ दिखते हैं।इस व्यक्ति के अधोवायु विसर्जन से लेकर छींकने खाँसने तक को समाचार बनाकर उसके विज्ञापन में रत प्रत्येक न्यूज चैनल अहर्निश आपको मिल जायेंगे।
जबरदस्त है इसकी नीति।10 रुपये के काम के लिए 70 रुपये का विज्ञापन देकर सबको सन्तुष्ट रखो।100 रुपये के योजना का 30 से 40 रुपया अपने जेब में रखो…..अब जमीन पर कौन देखने जाता है कि इतने बड़े विज्ञापन(महान काम) में से वास्तविक काम क्या हुआ है।
अंग्रेज जिनके हाथों कुर्सी छोड़कर गए थे,उनके 60 वर्ष के किये का भोग सन्ताप देश कम से कम 70-80 वर्ष तक भोगने को अभिशप्त है,,किन्तु उनके इस कट्टर ईमानदार हवाई चप्पलधारी के 15-20 वर्ष के किये का फल कितने दशक तक देश भोगता रहेगा,,कहना मुश्किल है।क्योंकि यह व्यक्ति राजनीति की परिभाषाएँ, उसकी रीति नीति और समाज का चरित्र बदल रहा है।जैसे लालू ने बिहार की केवल राजनीति नहीं बदली,बिहार का चरित्र बदलकर रख दिया।यूपी के भाग्य प्रबल थे, उसे योगी मिल गए,,बिहार में ऐसा कुछ निकट दशक में होगा,कल्पना करने की भी हिम्मत नहीं पड़ती।क्योंकि अन्ततः नेता नेतृत्व चुनेगी तो जनता ही न? और जनता अपना चरित्र कैसे सुधारेगी? इसके लिए तबतक प्रतीक्षा करनी होगी जबतक सबकुछ ध्वस्त होकर धूल धूल न हो जाय।फिर उस धूल में कोई फूल खिलेगा तो सौभाग्य उस प्रदेश का।दिल्ली पँजाब की कहानी/भविष्य भी यही रहने वाला है।इसमें घुन लग चुका है।घुन जब सबकुछ खाकर धूल धूल कर देंगे तब शायद बर्बाद हो चुका समाज नशे से बाहर आने को प्रयासरत होगा।तब शायद तथाकथित नयी तरह की राजनीति करने वाले नकारे जाएँगे।

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