Home विषयखेल खिलाडी फुटबॉल में दो अलग अलग पुरस्कार
वर्ल्ड कप फुटबॉल में दो अलग अलग पुरस्कार दिए जाते हैं… गोल्डन बूट, और गोल्डन बॉल.
गोल्डन बूट सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी को मिलता है, जबकि गोल्डन बॉल सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को.
इतना सा अंतर अगर हमारा समाज आत्मसात कर ले तो पूरा सामाजिक डिस्कोर्स सुधर सकता है.
छोटा सा उदाहरण… 1986 का वर्ल्ड कप डिएगो मैराडोना के लिए याद किया जाता है, जबकि उस वर्ष का गोल्डन बूट गैरी लीनेकर को मिला था.
कल के ही मैच में, गोल्डन बूट हाथ में लिए म्बापे के चेहरे पर कोई खुशी, कोई सेलिब्रेशन नहीं था. क्योंकि उसे पता था कि यह वर्ल्ड कप मेसी का वर्ल्ड कप गिना जाएगा.
फीफा की साइट के एक लिंक पर सारे गोल्डन बूट अवार्डीज के सभी गोल्स के लिंक हैं. उन सभी के गोल देख रहा था… चाहे हैरी केन हो, रोनाल्डो हो, रोमारियो या लिनेकर…सबकी खास बात यह थी कि उनका उस गोल में, जिसका श्रेय उन्हें मिला, अपना कंट्रीब्यूशन स्कोरिंग शॉट भर का होता है. रोमारियो के केस में तो शॉट भी नहीं, आप स्कोरिंग टच कह सकते हैं. पूरी मेहनत, मिडफील्ड मनूवर, पूरा मूव किसी और का होता है. पुराने खिलाड़ियों के गोल्स देखे तो पेले और माराडोना (और एक रॉबर्टो बैजियो का वह 1994 वर्ल्ड कप का इकलौता मैजिकल गोल) वे अपवाद थे जो एक पूरा गोल अपने स्किल के दम पर बनाते थे. नहीं तो हर सफल खिलाड़ी की सफलता, और महान खिलाड़ी की महानता एक अच्छी टीम पर आश्रित होती है.
मेसी ने इस वर्ल्ड कप में सात गोल किए…लेकिन वह सब क्वार्टरफाइनल में हॉलैंड के विरुद्ध उस पास के आगे फीके हैं जिसपर अर्जेंटीना ने पहला गोल किया. मेसी के अपने गोल्स के मुकाबले वे मूव अधिक कीमती हैं जिसपर टीम ने गोल बनाए. और इसीलिए मेसी के पास गोल्डन बूट नहीं, गोल्डन बॉल है और सबसे बड़ी बात, वर्ल्ड कप है.
ये सारी बातें हमारे काम की नहीं हैं. हम फुटबॉल नहीं खेल पाते…हमारी खून में ही एक टीम गेम खेलना नहीं है. हम इसी बात पर लड़ पड़ेंगे कि मेरी मूव पर, मेरी पास पर गोल करके वह महफिल लूट ले गया. अगली बार मैं नहीं देता उसे पास…देखता हूं कैसे गोल करता है…बड़ा घमंड है उसको…उसका घमंड तोड़ना है!

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