Home नया महाभारत और रामायण में अंतर
मेरी समझ मोटे तौर पर महाभारत और रामायण में जिस एक अंतर को ढूंढ पाती है, वो ‘प्रभावशाली’ और ‘प्रेरक’ का है।
महाभारत में आपको ‘प्रभावशाली’ चरित्र मिलते हैं। कथा के अंदर भी वो चरित्र प्रभावशाली है और कथा पढ़ने वालों को भी प्रभावशाली लगते हैं। भीम शक्तिशाली भी हैं और प्रभावशाली भी लेकिन दुर्योधन को अखाड़े में हराने के बावजूद वो पहलवानों के प्रेरक नहीं बन पाए। अखाड़ों में आज भी फोटो हनुमान जी की ही लगती हैं और गदा उठाने वाला हर व्यक्ति पहले खुद को हनुमान जी ही मानता है।
अब रामायण को देखिये, जामवंत जी प्रभावशाली भले ना लगे लेकिन वो प्रेरक हैं। कुछ चौपाई में ही वो हनुमान जी को प्रेरित कर देते हैं। यूट्यूब और ट्विटर पर अनेक मोटिवेशनल गुरुओं के समय भी कोई आपको इतना चैतन्य नहीं कर पाएगा जैसे जामवंत जी ने हनुमान जी को कर दिया। वो बोले,
‘कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं’
.. और हनुमान जी ये सुनते ही जिस सुन्दर पर्वत पर चढ़े और ऊँची छलांग लगाई वह पर्वत तक उनके वेग से पाताल में धंस गया।
प्रभावशाली व्यक्तित्व आपकी आँखों को आकर्षित करता है और प्रेरक व्यक्तित्व आपके मस्तिष्क को।
कंस, कर्ण, भीष्म, अर्जुन सब प्रभावशाली है। ये सारे चरित्र शक्तिशाली हैं, दूरदृष्टा हैं, योद्धा है, अच्छे और बुरे हैं लेकिन प्रेरक नहीं। इनके मुकाबले शबरी, भरत, हनुमान, अंगद जैसे व्यक्तित्व हैं जो प्रभावशाली भले ही कम हों लेकिन आप इनकी तरह बनना चाहेंगे, इनकी कर्मठता या पवित्रता को जीवन में पाना चाहेंगे।
रामायण में वर्णित श्री राम का पिता से सम्बन्ध, भरत का भाई से सम्बन्ध, हनुमान जी का राम से सम्बन्ध, गुरु-शिष्य का आपसी सम्बन्ध, वचनों की नैतिकता, जन-सामान्य से संवाद, जनजातियों का निःस्वार्थ सम्बन्ध किसी ना किसी को हर दिन प्रेरणा देता है।
हम अगर राम बनना चाहते हैं, तो केवल इसलिए क्यूँकि स्वयं श्री राम हमें राम बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

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