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ऐतिहासिक चाय की दास्तान

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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हिन्दी बेल्ट में चाय नदीम श्रवण का ढोलक मंजीरा है. हो ही नहीं सकता कि आपने जीवन में कभी चाय न पी हो या पसंद न किया हो या न भी किया हो तो भी पीनी तो पड़ती ही है. नब्बे का म्यूजिक नापसंद हो तो भी शैलून में नाई वही सुनाएगा. सुनना पड़ेगा. यही हाल चाय का है. चाय पसंद हो या नापसंद, पीना मजबूरी है.
काफ़ी एक्वायर्ड टेस्ट है. सीखना पड़ता है. ग़ज़ल की तरह. जब एक बार सीख जाते हैं तो फिर उसी में मज़ा आता है. एक महाज्ञानी बोल कर गये थे कि यदि तरुणाई / युवा में आप कभी कम्युजिस्ट नहीं रहे तो आप में दिल की कमी है. और यदि बुढ़ापे में भी कम्युनिस्ट ही पसंद हैं तो फिर दिमाग़ में लोचा है. यहाँ कम्युनिस्ट शब्द को चाय पढ़ा जाये.
चाय दाल चावल है. रोज़ खाते हैं सब जगह उपलब्ध है. टेस्टी बनाने के लिए घी आचार तड़का बुकनू नमक सब अलग से डालते हैं. यही चाय है. यहाँ चाय कौन पीता है. सब उसमे दूध, चीनी, तेज पत्ता, इलायची, अदरक, पुदीना, धनिया, गरम मसाला, लहसुन सब मिलाते हैं. अरे भाई आप चाय की पत्ती हटा कर बाक़ी सब ऐसे ही मिला कर पियें वैसा ही टेस्ट आयेगा. चाय का तो टेस्ट ही न रहा. वहीं काफ़ी है मटर पनीर. आरंभ में दूध चीनी मिला कर पीते हैं. समय के साथ पनीर का टेस्ट जँच जाता है तो सीधे पनीर टिक्का ही खाते हैं – सीधे ब्लैक काफ़ी पीते हैं. काफ़ी पीने वालों को काफ़ी का टेस्ट पता होता है, चाय पीने वालों को दूध अदरक पुदीना का टेस्ट पता होता है.
यदि ज़िंदगी में एक्साइटमेंट है हर दिन नया चाहिये तो वह काफ़ी है. कभी साउथ इंडियन स्टाइल तो कभी फ़्रेंच ब्रू. कभी वनीला काफ़ी तो कभी अमेरिकाना. कभी लैटे तो कभी कैपेचीनो. और यदि रोज़ सेम सुस्त ज़िंदगी हो सबेरे उठ रोज़ जैसा जीवन संघर्ष हो तो वही सेम दूध दही नमक धनिया मसाले वाली चाय. वैसे चाय प्रेमियों की इस कमजोरी का फ़ायदा भारतीय चाय कंपनियाँ खूब उठाती हैं.
वह चाय की पत्तियाँ छँट जाने के बाद बचा हुआ चूरा बेंचती हैं. वह तो फिर भी ठीक है, स्टेशन के बग़ल के चाय के ठेले से दस बार उबाली जा चुकी कनस्तर में फेंकी चाय की पत्ती ख़रीद ली जाती है. उसे सुखा कर रंग मिला कर फिर बेंच देते हैं. कस्टमर को क्या फ़र्क़ पड़ता है, उसे चाय का टेस्ट ही नहीं पता. उसे दूध चीनी मिला कर पीना है. एक्सपेरिमेंट में चूहे की पाटी पीस कर दे दी जाये, चाय प्रेमी उसमे भी दूध शक्कर अदरक मिला कर वाओ कहते हुवे पी लेंगे.
काफ़ी क्लास है. पीने से पहले ख़ुशबू मन आह्लादित करती है. पीकर दिमाग़ बिलकुल कॉन्सेंट्रेट हो जाता है. नई ऊर्जा आ जाती है. काफ़ी नित नये शृंगार करने वाली प्रेमिका है. चाय उस प्रेमिका से रोंकने वाली खड़ूस अध्यापिका है.
नोट: चाय बनाम काफ़ी के विश्व युद्ध में अपनी काफ़ी के समर्थन में पोस्ट अस्त्र छोड़ा है. कमेंट के जवाब न दिये जाएँगे. वैसे भी चाय लवर्स को क्या जवाब देना जिन्हें अपनी प्रेमिका चाय का टेस्ट ही नहीं पता. अदरक पुदीना चीनी खाकर बोलते हैं चाय टेस्टी थी

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