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हिंदुत्व का प्रोपगेंडा

by रंजना सिंह
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ब्राह्मणों ने बोला बिना पंख के बंदर उड़ गया …हमने मान लिया
ब्राह्मणों ने बोला बन्दर ने उड़कर आग के विशाल गोले (,सूर्य )को खा लिया —–हमने बोला हाँ ठीक है
ब्राह्मणों ने बोला पृथ्वी गाय के सींग पर टिकी है…हमने बोला हाँ ठीक है
ब्राह्मणों ने बोला पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है….हमने बोला हाँ ठीक है
ब्राह्मणों ने बोला ब्राम्हण ब्रम्हा के मुँह से निकला है इसलिए श्रेष्ठ है….हमने बोला ठीक है
ब्राह्मणों ने बोला शुद्र ब्रम्हा के पैर से निकला है….हमने मान लिया
ब्राह्मणों ने बोला कौरव घी के डिब्बों से पैदा हो गए….. हमनें यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला सीताजी खेत में हल चलाने पर जमीन से निकल आयी…हमनें यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला हनुमान कान से पैदा हो गए ….हमनें यह भी मान लिया
ब्राह्मणों ने बोला श्रृंगी ऋषि हिरनी से पैदा हो गए…हमने यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला मकरद्धवज मछली से पैदा हुआ…हमनें यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला हिरण्याक्ष पृथ्वी को उठाकर समुद्र में घुस गया…हमने यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला विष्णु ने वराह (सुवर)का अवतार धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष से छुड़ा लाये…हमने यह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने हत्यारे, लुटेरे, व्यभिचारी,धोखेबाज,बलात्कारी लोगो को भगवान देवी देवता बताया….हमने वह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बंदरो से पत्थर तैराकर समुद्र में पुल बनवा दिया …हमने वह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने जिस शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी थी उसी सांप को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन करा दिया…हमनें वह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने एक बन्दर से सोने (धातु) की लंका (पूरा नगर) को जलवा दिया….हमने वह भी मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला ब्रम्हा के मुख से पैदा हुआ ब्राम्हण ही सर्वेसर्वा भूदेव है… हमने मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला यह पूरी दुनियाँ एक ईश्वर चलाता है जो खुद ब्राम्हणों के कहने पर चलता है ….हमने सब मान लिया.
ब्राह्मणों ने बोला यहाँ के हर पत्थर में भगवान है …..हमने आज तक उसे भी माना. ब्राह्मणों ने बोला तुम ब्रम्हा के पैरों से पैदा हुए हो इसलिए तुम्हे कोई भी अधिकार नहीं हैं…..हमनें वह भी मान लिया..
ऐसे और भी हजारों ऐसे तथ्य है जिन्हें ब्राह्मणों ने हमें मानने पर मजबूर किया और हमने चाहे न चाहे मान लिया…..आखिर क्यों …?
क्योंकि तुमने हमारे सोचने समझने जानने की ताकत (शिक्षा) तर्क,बुद्धि और विज्ञान छीन कर हमें अंधा बनाकर अपाहिज बना दिया था….
पर आज हमारी आँखें खुल चुकी हैं,हमारे पास आज ताकत है फुले ,साहू,पेरियार अम्बेडकरी विचारधारा और सिद्धांतों के कलम की ताकत की, जिसमे स्याही भरी है इन्ही महापुरुषों के तर्क,बुद्धि,विवेक और विज्ञान की,और आज हमारे पास ताकत है महामानव बोधिसत्व बाबासाहब डा.भीमराव अंबेडकर के संविधान की जिसमे अपार क्षमता है महाकारुणिक तथागत बुद्ध के प्राकृतिक विज्ञान की.
इसलिये आज मैं इन काल्पनिक्ताओं को मानने के बजाय जानना चाहता हूँ इन सभी का सच, और पूछना चाहता हूँ एक मात्र तार्किक सवाल….कि आज तक जो ब्राह्मणों ने हमें बताया आखिर वह सब होता कैसे था…और वह सब आज क्यों नहीं कर पा रहे हो क्योंकि आज तो हर क्षेत्र में ऐसे शक्तिशाली पाखंडी विज्ञान की जरूरत है तो फिर करिए न मंत्र जाप और दिखाइए न ऐसे चमत्कार जो बड़े बड़े ग्रंथो में ठूंस ठूंस कर भरे हुए हैं हिम्मत है तो निकालिये न उन्हें बाहर…
सटीक और सार्थक जवाब दीजिये अन्यथा अपनी धूर्तता का बोरिया बिस्तर समेटिये और दफा हो जाइए यहाँ से….सवाल तार्किक हैं इसलिए जवाब भी तार्किक ही अपेक्षित है। मूर्खता,पाखंड,अंधविस्वास के लिए यहाँ कोई भी जगह नहीं है। क्योंकि यह कोई रामराज ,यमराज और धर्मराज का राज नही बल्कि अत्याधुनिक तर्क बुद्धि विवेक और विज्ञान से लैस वैज्ञानिक इक्कीसवीं सदी के विज्ञान का राज है…
।।उत्तर।।
कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हुए बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था वही शब्द मैं दोहरा रहा हूँ..जो समझना ही नहीं चाहते, जिन्हें सिर्फ बहस करना है, उन्हें कोई समझा नहीं सकता।हाँ, जो समझना चाहते हैं यह उत्तर उनके लिए हैं। क्योंकि प्रश्न क्रम से किए गए हैं? इसलिए जवाब भी क्रम से देने का प्रयत्न करूँगा।
1) सर्वप्रथम ब्राह्मण या और किसी नें कहा और हमने या और किसी ने मान लिया?? अर्थात किसी ने कहा और किसी ने माना यह धारणा ही गलत है। वेद पारंगत, महान शास्त्रज्ञ, कठोर तपस्वी, प्रगल्भ समाजशास्त्री, महान वैज्ञानिकों को योग्यतानुसार ऋषि, महर्षि, ब्रम्हर्षी, राजर्षि, ब्राह्मण, पंडित, पुरोहित कहते हैं। ब्राह्मण और पंडितों की परिभाषा भगवान बुद्ध ने भी लिखी है।
यह उन्ही शिक्षित, दीक्षित, परीक्षित, ऋषि, महर्षि, ब्रह्मर्षियों, के प्रगल्भ विद्वान की अध्यक्षता में वर्षानुवर्ष चले कठोर शास्त्रार्थ के बाद, धर्म संसद में.. संसद में पास विधेयक की तरह.. सर्वसम्मति से पास प्रस्ताव को ऋचा कहते हैं। जिसे आज हम संसद में विधायक कहते हैं। ऋषि महर्षि यह उपाधि उनके कर्म, ज्ञान, त्याग, तपस्या, और चरित्र के कारण मिलती थीं। उनकी कोई जाति नहीं होती है। उनके चिंतन मनन लेखन का विषय सृष्टि की सुरक्षा समृद्धि और शारीरिक मानसिक आर्थिक आध्यात्मिक विकास होता है।
2 ) मरुत सूर्य का भक्षण करता हैं?? यहाँ याद रखे, सूर्य का भक्षण किया था, ऐसा भूत कालिक वाक्य नहीं है?? इसका अर्थ है आज भी करता है। वेदों में इस वाक्य के जन्मदाता महर्षि दिर्ध तमस है। महर्षि दिर्ध तमस को बाबा साहब अंबेडकर ने अद्भुत कल्पनाशील, प्रकांड विद्वान, महान वैज्ञानिक महर्षि कहा है।
महर्षि दिर्ध तमस ने कहा है.. हे मरुत तुम पवन की कोख में जन्मते, पलते, बढ़ते, इसलिए तुम पवन पुत्र हो। तुमको किसी ने जना नहीं है, इसलिए तुम अन-जने पुत्र हो। तुम क्षण में पैदा होते, पल में विशाल हो जाते, आकाश पर छा जाते, नदियों को बहाते, पर्वतों को उड़ाते, सागर पार कर जाते, सूर्य को खा जाते हो, तुम सूर्य भक्षी हो। याद रहे बादल का भोजन सूर्य है। आज भी बादल सूर्य को खाता है।। पर्वतों की माटी उड़ाता है। नदियों को सागर से मिलाता है।
तुम्हारे वज्र रूपी शरीर के रगड़ने से बिजली कड़कती है, इसलिए तुम बज्ररंगी हो। तुम्हारे दहाड़ाने से सृष्टि कांपती है। तुम महा बलशाली हो। तुम बूंदों के रथ पर आते, हमारे लिए अन्न और हमारे पशुओं के लिए चारा लाते, सूखी धरती को हरी-भरी बनाते, मृतप्राय धरती को जीवित कर जाते, तुम हमारे प्राणदाता, प्राण रक्षक, धरती के संजीवनी वाहक, अजर अमर अजन्मा हो।
आज से हजारों साल पहले जिस समय समाज को कृषि पशुपालन अग्नि प्रज्वलन भी नहीं आता था, उस वक्त इतनी महान अदभुत कल्पना करने वाले ऋषि, बोलने वाली भाषा, और लिखने वाली लिपि, निर्माण करने वाली भारतीय संस्कृति, आज के विद्वान वैज्ञानिकों को भी आश्चर्यचकित और नतमस्तक करती है। और भारत के हर नागरिक को अपनी इस महान संस्कृति और ऋषि, महर्षि, ब्राह्मणों पर गर्व है।
यह वर्णन बादलों का है। अर्थात वेदों में मरुत बादलों को कहा गया है। हमारे वेदों की वाणी.. जो कल भी सच थी, आज भी सच है और जब तक प्रकृति रहेगी यही सत्य रहेगा। यह किसी कबीलाई अनपढ़ गवारों की आसमानी बकवास नहीं है। यह संसार के सबसे सनातन वेदों का ज्ञान है। जिसे दुनिया नतमस्तक होकर स्वीकार करती है।
सन 1500 में महर्षि आर्यभट्ट ने प्रमाणित किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। कोपरनिकस ने इस सत्य को कहा तो क्रिश्चियनों ने उसे मार डाला। गैलीलियो ने सर्वप्रथम दूरबीन बनाकर इसको दिखाया। उस समय कई विद्वानों ने शेषनाग के सर पर पृथ्वी है, यह लिखे हुए वेद झूठे हैं कहकर.. आवाहन किया। कट्टर आर्य समाजी प्रकांड विद्वान नारायण स्वामी ने यह आवाहन स्वीकार किया।
सभी प्रमुख विद्वानों के सामने दिल्ली में शास्त्रार्थ हुआ। नारायण स्वामी ने कहा यह गणितीय वाक्य है। 100 में से 30 घटाने के बाद 70 शेष रहता है। धरती पर जो जीव पैदा हुए उनमें से जो गुजर गए अर्थात उनको माइनस करने के बाद जो शेष बचता है उसी के सर पर धरती का भार है। जो शेष प्राणी है वह अच्छा करेंगे तो धरती स्वर्ग बनेगी। जो शेष प्राणी है वह बुरा करेंगे तो धरती नर्क बनेगी।
जब हम कहते हैं कि नौजवानों के कंधे पर देश का भार है। इसका मतलब उनके कंधे पर कोई 5-10 किलो भार नहीं होता, बल्कि देश की दिशा उनके हाथों में होती है। वेदों में शेषनाग यह शब्द कहीं भी नहीं है। सभी धर्मों की विद्वत सभा ने नारायणस्वामी को विजई घोषित किया।
अब हम प्राणियों की उत्पत्ति पर विचार करेंगे। जलमग्न धरती सूखने के बाद सर्वप्रथम मछली का जन्म हुआ। इसलिए हम सर्वप्रथम मत्स्यावतार मानते हैं। इसके बाद कालांतर में वही प्राणी कछुआ, मकर, और सुकर में परिवर्तित हुआ इसलिए हम कच्छावतार मकरावतार वराहावतार को मानते हैं।
इसके बाद अन्य प्राणियों का जन्म हुआ। अर्थात वेदानुसार कहीं भी, किसी का भी जन्म, हाथ, मुंह, पेट, पैर, से नहीं हुआ। इसके बाद विभिन्न प्राणियों के एक दूसरे से संपर्क में आने के कारण आधे नर आधे पशु जैसे संकरित, (क्रॉस बीज) प्राणियों का जन्म हुआ। जिन्हें हम काकभुसुंडी, जटायु, अज, हैयहय, जामवंत नरसिंह आदि आधे नर आधे पशु मानते हैं।
सर्वप्रथम पूर्ण पुरुष को महादेव और सर्वप्रथम पूर्ण महिला को माँ गिरजा मानते हैं। विज्ञान भी सृष्टि का सबसे पहला प्राणी अमीबा को मानता है, जो मछली के कांटे की तरह होता है और स्वयं से स्वयं को जन्म देता है। विज्ञान, आसमानी पुस्तक की मनुष्य से मनुष्य की उत्पत्ति नहीं मानता। उसने भी वेदों के इस उत्पत्ति सिद्धांत को स्वीकार किया है।
अब जाति और वर्ण भेद पर चर्चा करेंगें। आदर्श समाज निर्माण करने वाले, ब्राह्मणों को हल पकड़ना मना, व्यापार करना मना, चाकरी करना मना, अर्थात ब्राह्मण सिर्फ मुँह से ही कुछ पढ़ लिख कर और कुछ कथा कहानी कह सुन कर पेट भर सकता है। अर्थात जिसका जन्म और जीवन मुँह के भरोसे है। वह मुँह से जन्मा ब्राह्मण माना गया है।
देश धर्म समाज के लिए प्राण निछावर करने वाला, मजबूत समर्थ बांहों वाला, अदम्य सामर्थवान साहसी, लोकप्रिय योद्धा, कठिन परिस्थिति में कठोर निर्णय लेने वाला ही क्षत्रिय बन सकता है। अर्थात उसका जन्म और जीवन ही मजबूत बाहों के भरोसे हैं। इसलिए बाहुओं से पैदा हुआ क्षत्रिय माना गया है।
वाणिक जिसे समाज के अंतिम छोर तक जीवन पहुँचाने वाली धमनी कहा जाता है। जो देश के अंतिम छोर पर स्थित समाज का भी पेट भरता है। उसका जन्म और जीवन पेट से ही माना गया है। अर्थात जिसका जन्म, जीवन और परिचय पेट से है, उसे पेट से जन्मा वैश्य कहा गया है।
और जो अपने अद्भुत शक्ति सामर्थ्य सेवा भाव से समाज, में जन्म, विवाह, बारसा, मृत्यु, किसी भी कार्यक्रम में सेवा देने हेतु सदैव तत्पर खड़ा है। सेना, धर्म, राष्ट्र, युद्ध, हेतु अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र, जूते, रथ, सुख साधन, सुविधा, प्राण, देने हेतु तत्पर खड़ा है। उसका जन्म और जीवन चरणों से ही माना गया है। यह अतिशयोक्ति नहीं हैं, बल्कि सब रूपक अलंकार है।
जो लोग जाति भेद का आरोप लगा रहे हैं। उन्हें बता दूँ मनु महाराज ने मंत्रिमंडल निर्माण की विधि बताते हुए कहा है.. किसी भी राजा के मंत्रिमंडल में 4 ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय 12 वैश्य और 16 शुद्र होने चाहिए। आचार्य चाणक्य ने अपने मंत्रिमंडल में 4 ब्राह्मण 8 क्षत्रिय 12 वैश्य और 24 शूद्रों कों शामिल किया है। फिर छुत छात जातिवाद का आरोप निराधार है। बाबा साहब अंबेडकर ने भी प्रमाणित करते हुए कहा है कि हम सभी शूद्र, ईक्षांकु वंशी क्षत्रिय थे।
भारत से लंका तक सारे साक्ष्य प्राप्त होने के बाद भी जो लोग राम को काल्पनिक कहते हैं, वो लोग क्षत्रिय वंश शिरोमणि, सभी समाजों के लोकप्रिय, अनन्य मातृ पितृ भक्त, चक्रवर्ती सम्राट मर्यादा पुरुषोत्तम राम, और छत्रिय जाति का अपमान करते है। रामायण के रचयिता प्रकांड विद्वान महर्षि वाल्मीक और बाल्मिक समाज का अपमान कर रहे हैं।
मल्लाह समाज के आद्य आराध्य पुरुष निषाद राज और केवट जाति का अपमान कर रहे हैं। परम भक्त शबरी और भील जाति का अपमान कर रहे हैं। वन में रहने वाले नल नील सुग्रीव अंगद जामवंत आदि वनवासी के आराध्य पुरुष और वनवासी समाज का अपमान कर रहे हैं। आदिवासियों के आराध्य पुरुष रावण का और आदिवासियों का अपमान कर रहे हैं। याद रखो रामायण और राम को अस्वीकार करने से पहले तुम्हें इन महान जातियों का भव्य दिव्य इतिहास मिटाना पड़ेगा।।
जो लोग कृष्ण को काल्पनिक कहते हैं, यदुवंशियों के जन्मदाता, प्रपितामह, इतिहास निर्माता, प्रज्ञा पुरुष, कठोर राजनीति के जन्मदाता, भारत के सर्व सम्मानित नेता, कृष्ण का अपमान कर यदुवंशी यादवों का अपमान करते हैं। महाभारत को काल्पनिक कहकर मल्लाहों के आराध्य पुरुष परम विद्वान वेदव्यास और मल्लाह समाज का अपमान करते हैं।
महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले भारतवर्ष के सभी जाति के वीर रथी महारथियों का और उनके समाज का अपमान करते हैं। याद रखें रामायण और महाभारत को अस्वीकार करके हम भारत के सभी त्यागी तपस्वी राष्ट्रभक्त वीर विद्वान जाति समाजों को अपमानित करते हैं।
ऐसा करने का क्या कारण है इसका हम आकलन करेंगे।
जब हम सबका साथ सबका विकास की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमें अपना चरित्र प्रस्तुत करना पड़ता है। सरकार 70 वर्षों से दलितों को भरपूर सुख सुविधाएँ सहूलियत दे रही है। इन 70 वर्षों में लोहार कुम्हार चमार मांग मेहतर काछी पासी जाटव यानी सभी दलित समाज की सुख सुविधा सहूलियत एकमेव नव बौद्ध समाज ने हड़पी है।
अन्य किसी भी दलित समाज को सुविधा नहीं मिलने दी। आमदार खासदार अधिकारी कर्मचारी सभी नव बौद्ध समाज के बनाए गए। उस समय इन्हें अन्य दलित समाज की याद नहीं आई?क्या एस.सी. में सिर्फ नव बौद्ध समाज ही आता है?? क्या सिर्फ 96 कुली ही एस. सी. है? मित्रों यह (96 कुली) का अर्थ सिर्फ वही समझ सकते हैं। यह एक विशेष जाति है।।
70 वर्षीय नव बौद्धों का अन्य जाति के एस. सी. की सहूलियत हड़पने के अलावा कोई इतिहास नहीं है। आज जब दलित वर्ग के अन्य जाति के आमदार खासदार अधिकारी कर्मचारियों की नियुक्ति हो रही है तो 70 वर्षों में सभी दलित समाज की सारी सरकारी सुविधाएँ हड़पने वाले नव बौद्ध समाज को अब अन्य दलितों की याद आ रही है।
क्या 96 कुली दलित समाज बाबासाहेब आंबेडकर को जो सम्मान देता है वह बाल्मिक समाज के ऋषि बाल्मीकि को, या चमार समाज के संत रविदास को देता है? जबकि हिंदू धर्म में इनका मान सर्वोपरि है। संस्कृति, संस्कार, धर्म हीन, नवबौद्ध, ब्राह्मण और सवर्णों का नाम लेकर भव्य दिव्य ऐतिहासिक दलित महर्षि बाल्मिक, व्यास, रविदास, जैसे महान हिंदू दलितों को बदनाम कर रहे हैं। क्या यह जातिवादी छुआछूत नहीं है??
देश के कोने कोने में अपने जात के बाबा साहब अंबेडकर का पुतला लगाने वाले दलित समाज ने महर्षि बाल्मीकि, बिरसा मुंडा, टंट्या भील, जगनाडे महाराज, संत तुकाराम, संत रविदास, संत रैदास, संत कबीर, गाडगे महाराज, टुकड़ोंजी महाराज, की कितनी मूर्तियां लगवाई??
आज तुम्हारे सहयोग के बगैर आदिवासी राष्ट्रपति बन रही है। पिछड़े वर्ग का प्रधानमंत्री बन रहा है। सुप्रीम कोर्ट का जज बन रहा है। नव बौद्धों को छोड़कर अन्य भी अति दलित समाज के सर्वाधिक सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, कमिश्नर, कलेक्टर, जज, अधिकारी, कर्मचारी, बन रहे हैं। शायद यही तुम्हारी परेशानी है।
तुमने आज तक रिपब्लिकन पार्टी, समता सैनिक दल, भारतीय बौद्ध महासभा, बामसेफ, अर्थात किसी भी दलित संगठन का अध्यक्ष, विधायक, सांसद, अपनी जाति के अतिरिक्त और किसी को क्यों नहीं बनाया?आज जब पार्टी डूब गई तब आपको बहुजनों की याद आ रही है। घृणा, ईर्ष्या, लालच और हिंदुओं को गाली देना छोड़कर नव बौद्धों का कोई इतिहास नहीं है।।
इसका मतलब बाकी समाज भी इतिहास हीन हो जाए? जिनका खुद का कोई इतिहास नहीं है वह दूसरे के इतिहास को मिटाने का प्रयास ना करें। याद रहे भारत की हर जाति का इस देश में, और सनातन धर्म में भव्य दिव्य महान इतिहास है और उस पर हमको गर्व है।
तुम बाबा साहब आंबेडकर की बनाई हुई रिपब्लिकन पार्टी को नहीं संभाल सके, 96 कुलियों ने बाबा साहब की रिपब्लिकन पार्टी के 96 टुकड़े कर दिए। तुम अपने समाज को एक नहीं कर सके, तुम बुद्ध को नहीं समझ सके, तुम बाबा साहब को भी नहीं समझ सके, फिर यह विभिन्न संस्कृतियों वाला महान भारत देश कैसे समझोगे और कैसे संभालोगे??

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