आपके पास समर्थक केवल होने चाहिए फिर आप सत्य कहते हो या असत्य , ज्ञान की बात करते हो या मूर्खता की बातें इससे कोई मतलब नहीं….आपके समर्थक आपकी बातों में सत्य और ज्ञान है यह सिद्ध कर ही देंगे।
जनमानस में विद्योत्तमा और कालिदास की एक बहुत ही मजेदार कहानी प्रसिद्ध है । विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में हारने वाले कुछ पंडितों ने विचार किया कि इसको तो ज्ञान का बड़ा घमंड है , चलो इसकी शादी किसी महामूर्ख से करवा दें।
मार्ग में उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो जिस डाल पर बैठा था उसी को काट रहा था, उन पराजित पंडितों ने सोचा इससे बड़ा मूर्ख कौन होगा ?
शादी का लालच देकर उस लकड़हारे की भेषभूषा बदल दी गयी । अब वो एकदम किसी महाज्ञानी पंडित की तरह लग रहा था।
धन और ऐश्वर्य समाज के साथ यही दुविधा है कि उसके साथ खड़े होने के लिए वेशभूषा सही होना चाहिये यह उसकी प्राथमिक माँग होती है।
शास्त्रार्थ शुरू हुआ ,
विद्योत्तमा जब एक उंगली दिखाती तो लकड़हारा 2 उंगली दिखाता क्योंकि उसे लगता ये कह रही है कि ये मेरी एक आँख फोड़ेगी तो मैं इसकी दोनों आंख फोडूंगा..
भई, मौन शास्त्रार्थ था और पंडितों ने कह रखा था कि हमारे गुरुवर का मौन व्रत है…. मौन शास्त्रार्थ गुरुदेव करेंगे पर उसका अर्थ हम लोग बताएंगे।
चारों पंडितों में से एक व्यक्ति बोला कि आपने कहा कि परमात्मा एक है तो उन्होंने कहा: आत्मा और परमात्मा दो
अब विद्योत्तमा ने पांच उंगलियां दिखलाई तो कालिदास सोचे कि ये बोल रही है कि मैं तुम्हें थप्पड़ मारूँगी तो कालिदास ने मुक्का दिखाया कि तू मुझे थप्पड़ मारेगी तो मैं मुक्का से मारूंगा।
पंडित लोग मुक्के को भी पांच तत्वों से बने शरीर बताकर कालिदास की बात को सिद्ध कर देते हैं ।
ऐसे ही शास्त्रार्थ चलता रहा और फिर एक समय बाद विद्योत्तमा हार गई , कालिदास से विवाह हो गया।
ये है तो एक कहानी ही पर है शिक्षाप्रद ।
इसलिए समर्थक बनाते चलिए , आपकी बात में कितना तत्व है इसे समर्थक सिद्ध कर देंगे । इसकी चिंता आप मत करिए…
समर्थन का महत्त्व
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