विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान, काशी विश्वनाथ न्यास परिषद का गठन और अध्यक्ष पदाधिकारी होने के साथ ही वेदों एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान महाराज बनारस,
काशी के लोकप्रिय विद्वान शासक ही नहीं, काशी की संस्कृति के संरक्षक और सर्व विद्या की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के तीन दशक से ज्यादा, वह बीएचयू के कुलाधिपति यानी चांसलर रहें उस दौरान उनका यूनिवर्सिटी में आना अक्सर होता रहा । इन्हीं के पूर्वजों ने बीएचयू के लिए हजारों एकड़ जमीन दान देकर B.H.U की स्थापना में सहयोग दिया था।
गद्दी पर नहीं बनारस के जनमानस पर राज किया था राजाधिराज काशी ने।
जब भी बनारसी उन्हें देखते थे, तो ‘हर हर महादेव’ स्वत: ही उनके मुख से निकल जाता था ।
उनका परंपरागत प्रतिनिधित्व कुंवर अनंत नारायण सिंह द्वारा आज भी बहुत से मेलों जैसे नाटी इमली का भारत मिलाप, तुलसीघाट की नाग नथैया, रथयात्रा मेला आदि में दिख जाता है और साथ ही सोने की गिन्नी बांटने की प्रथा भी।
लेकिन पूर्व काशी राजाधिराज स्व. विभूति नारायण सिंह जी की स्मृतियां हर बनारसी के मानसपटल सदैव के लिए अंकित है।
काशी नरेश का रामनगर और रामनगर की विरासत जो आज भी क़ायम है।
काशी नरेश के रूप में, 5 अप्रैल 1939 को महाराज विभूतिनारायन सिंह काशी के नरेश का पदभार ग्रहण करते समय नाबालिग थे जिस वजह से राज्य कार्य संचालन के लिये एक परामर्शी काउंसिल के गठन हुआ जिसके सचिव काशी राज्य के दीवान अली जामिल जैदी के साथ ही नारायण वंश के योग सदस्य शामिल हुये ।जुलाई 1947 में वलग होने के बाद बिभूतिनारायन नारायण सिंह को पूर्णरूपेण बनारस रियासत की गद्दी सौप दी गई।15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो द्वारा भारत को स्वतंत्र घोषित किये जाने के साथ बनारस को भी स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया और जनमानस की भावना का आदर करते हुए काशीनरेश डॉ बिभूतिनारायन सिंह ने 15 अक्तूबर 1948 को बनारस राज्य का भारतीय संघ में विलय कर दिया और बनारस संयुक्त प्रान्त के हिस्सा बना ओर अपनी सेना औऱ सेंक छावनी को सरकार को सौप दिया
काशी पौराणिक काल से एक धार्मिक नगरी रही ।नारायनवंश के जितने भी शासक हुए सभी ने सनातन धर्म की ध्वजा को कायम रखा और बनारस के राजा को बाबा विश्वनाथ का प्रतिनिधि माना जाता है ,काशी की जनता आज भी काशी नरेश को काफी सम्मान देती है ।महाराज बिभूतिनारायन सिंह ने काशी की जनता के दिलो पर राज किया ।
महरानी एलिजाबेथ बनारस यात्रा के दौरान काशी नरेश विभूति नारायण सिंह के साथ 29 सितंबर1961
28 जनवरी 1983 को विश्वनाथ मंदिर को उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया और इसका प्रबंधन एक ट्रस्ट को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसके अध्यक्ष महाराजा बिभूतिनारायन सिंह बने ।
1947 में डॉ विभूतिनारायन सिंह ने, श्री काशी नरेश एजुकेशन ट्रस्ट की स्थापना की औऱ भदोही जिले (यूपी) के ज्ञानपुर में काशी नरेश गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज (KNPG) की नींव रखी।
डॉ विभूतिनारायन सिंह के नाम पर एक इंटरमीडिएट कॉलेज ज्ञानपुर में और दूसरा उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में सूरजपुर में है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति,
डॉ विभूतिनारायन सिंह सन 1992 में बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये जिसपर वह अंतिम वर्षों तक पदासीन रहे।
जबतक काशी नरेश जिंदा थे रामनगर उनके बनाये नियम कानून से चलता था रामनगर की जनता उनके हर आदेश को दिल से क़ुबूल करती थी। ख़ुद वेद पुराण के ज्ञाता थे लेकिन हर मज़हब के लोगो को बराबर सम्मान देते थे ये उन्ही की देन है कि आजतक रामनगर में कोई साम्प्रदायिक दंगे नही हुए। आज भी लोगों में आपसी सौहार्द बना हुआ है।
ये सौहार्द काशी नरेश के पुरखों से चला आ रहा है। जब काशी नरेश बलवंत सिंह ने अपने वीर सेनापति लाल खां से कुछ मांगने को कहा तो सेनापति ने इच्छा जाहिर की मैं मरने के बाद भी काशी में ही पनाह चाहता हूं लाल खां के मरने के बाद काशी नरेश ने उनकी याद में राजघाट पे उनका शानदार मक़बरा बनवाया और बनारस में उनके नाम पे “चौहट्टा लाल खां” नाम से एक मोहल्ला बसाया।
यही आपसी सौहार्द रामनगर में आजतक क़ायम है और रामनगर की हर जनता काशी नरेश को दिल से याद करती है।
काशी नरेश महाराजा स्व. विभूति नारायण सिंह जी की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृतियों को सादर नमन।