मुरैना जिले में, मेरे मातुल गृह से दो कोस की दूरी पर सिहोंनिया नामक ग्राम में स्थित नागर शैली का अद्भुत वास्तु।
अद्भुत क्यों जबकि नागर शैली के मंदिर तो तमाम हैं। खजुराहो की भव्यता के आसपास भी नहीं यह मंदिर।
अद्भुत इस अर्थ में है कि यह मंदिर अनगढ़ शिलाओं को उड़द की दाल से बने विशेष मसालों की सहायता से एक दूसरे पर गुरुत्व संतुलन के आधार ओर ऐसा बिठाया कि औरंगजेब की तोपें भी इसे ढहा न सकीं।
इसकी अनगढ़ शिलाओं जिनके बीच मनुष्य के निकलने तक के रिक्त स्थान हैं, को देखकर लगता है कि मंदिर अब गिरा कि तब गिरा लेकिन वह दृढ़ है, काल से जूझते हुए।
इसके बारे में किवदंती है कि कच्छपघात राजपूत राजा, जिनके वंशज आज कछवाहा राजवंश के रूप में जयपुर में दरबार लगाते हैं, की रानी ककनावती ने प्रण किया कि जब तक उनके आराध्य का मंदिर न बनेगा वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी।
दूध और फलों पर रह रही रानी को देख राजा का प्रेम आहत हुआ और राजदर्प जागा।
दिनरात काम हुआ और राजा की इच्छा पर सिर्फ छह महीने में किसी महान शिल्पी ने इस अनगढ़ मंदिर के रूप में कला के अनमोल मोती की रचना की।
जनसामान्य में इतिहास की जगह मिथ स्थापित हुआ-
“ककनमठ का निर्माण देवताओं ने छह महीने की एक रात बनाकर किया।”
इतिहास मिथकों में ऐसे बदलते हैं और फिर जड़बुद्धि उसे आस्था का रूप दे देते हैं।
#इंदु_से_सिंधु अतीन्द्रिय पुराण कथाओं में चमत्कारों से इतर वास्तविक इतिहास को ढूंढने का प्रयत्न है ताकि पश्चिमी इतिहासकार हमारे पुराणों व उनके महानायकों को मिथ कहकर उन्हें झुठलाने का प्रयत्न न कर सकें।

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