Home चलचित्र विराट कोहली और अनुष्का शर्मा पहुंचे प्रेमानन्द गोविन्द शरण के दरबार

विराट कोहली और अनुष्का शर्मा पहुंचे प्रेमानन्द गोविन्द शरण के दरबार

by Rudra Pratap Dubey
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भारत का इतिहास अद्भुत संतों की परम्परा से समृद्ध रहा है। प्रेमानन्द गोविन्द शरण जी महाराज ऐसे ही एक संत है।
कल जब उनके पास Virat Kohli और Anushka Sharma पहुँचे तो महाराज जी के सेवादार को उन दोनों के विषय में पहले बताना पड़ा क्यूँकि महाराज जी दोनों को वास्तव में नहीं जानते थे। अब परिचय बताने के बावजूद देखिये, महाराज जी के व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन नहीं आया। कोई सवाल नहीं, कोई आशा नहीं, कोई दिखावा नहीं।
सेवादार की आवाज आती है कि, ‘अब आप जा सकते हैं क्यूँकि और लोग भी हैं’
और इसी के साथ भारत के सबसे ताकतवर सेलेब्रिटी कपल में शामिल दोनों लोग प्रणाम करके निकल जाते हैं।
प्रेमानन्द गोविन्द शरण जी से इसी कमरे में मेरी भी एकांतिक वार्ता हुई है इसलिए आप सभी को विश्वास के साथ बता सकता हूँ कि बिल्कुल ऐसा ही होता है वहाँ। अगर आपको महाराज जी के दर्शन करने है तो सुबह 4 बजे आश्रम में सत्संग के लिए आना पड़ेगा। 5 बजे सत्संग शुरू होगा और 7 बजे तक चलेगा उसके कुछ देर बाद महाराज जी का स्वास्थ्य सही हुआ, तो वो लोगों से मिल लेते हैं। जिन लोगों को महाराज जी से मिलना है उन्हें अपने सवाल लिख के दे देने होते हैं जो सेवादार के पास होते हैं। एक बार में 5 से 10 लोग ही अंदर जाते हैं। प्रेमानन्द जी महाराज अपनी आँखों को हमेशा तब तक नीचे रखते हैं जब तक उन्हें आपको प्रश्न का उत्तर ना देना हो।
कोई आसक्ति नहीं, कोई झुंझलाहट नहीं, कोई लालसा नहीं – उत्तर देते ही वो फिर से अपनी आँखों को झुका लेते हैं और सेवादार आपसे बाहर जाने का आग्रह करते हैं। ना आपके अभिवादन को देखना, ना प्रणाम को, ना उपहार को ना तिरस्कार को।
असल में हुआ क्या पिछले एक दशक में कथावाचकों ने इतना TV स्पेस ले लिया कि लोग संतों और कथावाचकों के अंतर को लगभग भूल गए। हर राजनीतिक मुद्दे पर टिप्पणी कर रहे कथावाचक, अपने पेज से VIP अथितियों के बारे में पदनाम लिख कर फोटो लगाने वाले कथावाचक, टिकट दिलवाने के लिए नेताओं को फोन करने वाले कथावाचक, हर तरह की समस्या का 100 प्रतिशत समाधान करने वाले कथावाचक अपने TV स्पेस की वजह से धीरे-धीरे संतों जैसा दर्जा पाने लागे और इसी बीच वो लोग जो वास्तव में धर्म की ध्वजा थामे खड़े हैं, वो नेपथ्य में चले गए। हालांकि वास्तविक संतों को लोकप्रियता की चाह भी नहीं होती लेकिन कथावाचकों की लोलुपता ने इधर सनातन विरोधी लोगों को उँगलियाँ उठाने के कई मौके जरूर दे दिए।
देवरहा बाबा, नीब करोरी बाबा, रामकृष्ण परमहंस जैसे अलौकिक संतों की भूमि पर संतों के नाम पर ऐसी गड़बड़ियाँ हुई कि अपनी आदतों को नहीं सुधार पा रहे अनूप जलोटा थक के बोल बैठे कि ‘मैं सिर्फ भजन गाता हूँ, संत नहीं हूँ।’
सार बस यही है कि रामचरितमानस स्वाध्याय से अर्जित करने वाला गुण है, इसके लिए किसी और को क्यूँ देखना! इसके स्वाध्याय के बाद आपको ‘संत’ की पहचान भी होने लगेगी।

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