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भारत के धनाढ्य वर्ग की संपत्ति में हुई बढ़ोत्तरी

अमित सिंघल

by अमित सिंघल
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ऑक्सफैम इंडिया ने एक रिपोर्ट में बताया कि भारत के धनाढ्य वर्ग की संपत्ति में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है। इस कथन के सपोर्ट में रिपोर्ट के फुटनोट में एक डाटा स्विट्ज़रलैंड स्थित क्रेदी स्वीस – Credit Suisse – (एक वित्तीय संस्था) की रिपोर्ट को कोट करते हुए लिखा कि वर्ष 2022 में भारत के टॉप एक प्रतिशत के पास 40.6 प्रतिशत सम्पदा थी।
राहुल, कांग्रेसी समर्थक एवं अर्बन नक्सल तुरंत हुक्का-पानी लेकर चढ़ गए।
मुझे भी आश्चर्य हुआ। अतः सोनिया सरकार के समय के आंकड़े चेक किया ।
क्रेदी स्वीस के अनुसार, वर्ष 2005 में भारत के टॉप एक प्रतिशत के पास 41.9 प्रतिशत सम्पदा थी जो वर्ष 2015 में बढ़कर 42.3 प्रतिशत हो गयी।
लेकिन वर्ष 2022 में एक प्रतिशत के पास 40.6 प्रतिशत सम्पदा रह गयी। अतः, असमानता में कमी आयी है।
एक तरह से राहुल अपनी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे है।
आंकड़ों के साथ एक समस्या है। हम आंकड़ों को बिना संदर्भ जाने हुए प्रयोग करते हैं। हमें यह नहीं पता कि उन आंकड़ों से क्या मापा जा रहा है? किस से तुलना की जा रही है? कितनी समय सीमा के आंकड़ों को मापा जा रहा है? अतः आंकड़े बहुत उद्वेलित कर सकते हैं।
मैं यह मान ही नहीं सकता कि मोदी सरकार द्वारा 80 करोड़ को फ्री का राशन, निर्धनों को आयुष्मान, सभी को घर, बिजली, घर, शौचालय, नल से जल इत्यादि देने के बाद असमानता बढ़ सकती है।
निजी क्षेत्र का इतना विस्तार हुआ है, इतने वृहद स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर (रेल, राजमार्ग, हवाई यात्रा, बंदरगाह, सेल फ़ोन, ब्रॉडबैंड, UPI, नागरिक सुविधाएं इत्यादि) पर कार्य हो रहा है कि जिसे रोजगार चाहिए उपलब्ध है।
लेकिन ऑक्सफैम ने इन सभी योजनाओ पर मुंह सिल रखा है।
साथ ही, यह भी अविश्वसनीय है कि समाज का 50 प्रतिशत निचला वर्ग कुल GST का 64.3% देता है। क्या इस वर्ग के अधिकांश लोग दुग्ध, दाल, अन्न, खाद्य तेल, मांस, सूखा मेवा, पेय पदार्थ, पान, तम्बाखू इत्यादि पैक किया हुआ खरीदते है? क्या यह सत्य नहीं है कि खुले में बिकने वाले इन सभी खाद्य पदार्थो पर कोई GST नहीं है? क्या आप ने पान-सुपाड़ी पर कभी GST दिया है?
लेकिन ऑक्सफैम की रिपोर्ट फुटनोट में कहती है कि 50 प्रतिशत निचला वर्ग इन सभी पर GST देता है।
ट्विटर पर ज्ञानी लोगो ने गणना करके बताया कि अगर ऑक्सफैम के आंकड़े सही मान लिए जाए तो भारत में निचले 50% की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 203,322 रुपये होना चाहिए, ना कि 172,913 रुपए जो पिछले वर्ष थी।
ऑक्सफैम ने अडानी, कोविद वैक्सीन बनाने के निर्माता पूनावाला, अम्बानी, बिड़ला, झुनझुनवाला इत्यादि के विरुद्ध अत्यधिक विष उगला है। लेकिन अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बहर की संपत्ति एवं वेतन की तुलना नीचे के 50% वाले भारतीयों से नहीं की।
रिपोर्ट अपने उद्देश्य को छुपाती भी नहीं है। रूसो को कोट करते हुए लिखती है कि अगर निर्धनों के पास खाने को नहीं होगा तो वे धनी लोग को खा जाएंगे; अर्थात क्रांति (इस शब्द का भी प्रयोग किया गया है) ला देंगे।
मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि मोदी सरकार के द्वारा निर्धनता एवं आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय NGOs जानबूझकर संज्ञान में नहीं लेता है।
आज जिस निर्धन को घर मिल रहा है, वह उसी समय दो से तीन लाख की संपत्ति का स्वामी हो जाता है। जब उस घर में बिजली, नल से से जल, शौचालय की व्यवस्था की जाती है, वह बहुआयामी निर्धनता को समाप्त करने में मदद करता है। लगभग सभी नागरिको के पास बैंक अकाउंट है; एक वैधानिक पहचान (आधार) है। मुद्रा लोन इत्यादि के द्वारा करोड़ो नागरिको को धन दिया जा रहा है। आयुष्मान से स्वास्थ्य संकट के समय वित्तीय मदद दी जा रही है। अपनी योजनाओ के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी वृहद स्तर पर धन का ट्रांसफर निर्धनों की तरफ कर रहे है।
पूरी रिपोर्ट से “भ्रष्टाचार” शब्द गायब है जो असमानता का एक प्रमुख कारण माना जाता है। कदाचित इसलिए नहीं लिखा क्योकि माँ-बेटा बेल पर मौज उड़ा रहे है।

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