वे हम से अपने ग्रंथ से कई बातें बताते हैं लेकिन अगर हम कहें कि इन बातों या नियमों की कसौटी पर क्या आप के फलाने फलाने महानुभाव अपराधी पाए जाएंगे या नहीं ? क्या आप उन्हें नरक में भेजने लायक मानते हैं या नहीं ?
तुरंत पलटकर बड़े ही भोलेपन का मुखौटा ओढ़कर कहेंगे कि इसका निर्णय तो उनके परमेश्वर के हाथ में होता हैं, वे कोई नहीं होते कि इसपर कुछ कहें।
मोदीजी का एक विडिओ क्लिप है, हिपोक्रेसी की भी हद होती है। भाई, क्या आप नहीं जानते कि जहां H खत्म वहाँ से I शुरू होता है ?
आज मोदी जी ने बोला है कि सब को पठान सुपरहिट करानी चाहिए।
वे देश के प्रधानमंत्री हैं, उनको बॉलीवुड ने सीधा टारगेट कर के पब्लिक अपील की कि देश के हिंदुओं से कहिए बॉलीवुड का बॉइकाट न किया करें।
बॉलीवुडवाले भी इसी देश के नागरिक हैं, टॅक्स भी देते हैं, तो मोदी जी को कुछ कहना तो बनता है, सो उन्होंने कह दिया।
तो क्या हुआ, कहीं सरकारी फरमान तो नहीं निकाला कि हर हिंदु को अपने घर के सभी सदस्यों के नाम टिकट की रकम सिनेमाहॉल में जमा करनी चाहिए। बस तो, हमें जो करना है हम करेंगे, उन्हें जो बोलना पड़ता है, उनको बोलने दीजिए।
यहाँ मुझे हुजूर की एक हदीस याद आती है । (लिंक अंत में) फतह मक्का के समय जिन लोगों को खोज कर मार देने का हुक्म था उनमें एक नाम था अब्दुल्लाह इब्न सा’द इब्न अबी साद (Sarh)। वो छुपा रहा और उसने उस्मान (Uthmaan) बिन अफ्फ़न से शरण मांगी। उस्मान उसे हुजूर के पास ले आया कि मेरे कहनेपर इसे माफ किया जाए। हुजूर उसकी बिनती को सीधे टाल न सके तो मौन रहे। मौन को सम्मति समझकर अब्दुल्लाह इब्न सा’द इब्न अबी साद हुजूर के सामने घुटनों पर झुका और उनका हाथ चूमने की कोशिश करने लगा। हुजूर ने लगातार तीन बार अपना हाथ छुड़ा लिया, चौथी बार उसने हुजूर का हाथ चूम ही लिया तो भी वे कुछ न बोले। अब्दुल्लाह इब्न सा’द इब्न अबी साद ने समझ लिया कि उसे अभय मिल गया और वो वहाँ से खुश हो कर चला गया।
उसके जाने के बाद हुजूर नाराज हो कर वहाँ मौजूद लोगों से बोले कि क्या आप को इतनी समझ नहीं थी कि जब मैंने उसको अपना हाथ चूमने नहीं दिया तब ही उसकी गर्दन उड़ा देते ?
लोगों ने कहा कि या रसूलल्लाह, हम आप की सोच को ताड़ न सके, लेकिन आप ने नजर से इशारा क्यों नहीं किया ?
हुजूर ने तुरंत जवाब में फरमाया कि अल्लाह का रसूल हूँ, अल्लाह के रसूल को आँखों से ऐसे इशारा करना शोभा नहीं देता।
ज़फ़र सरेशवाला ने कहा था कि मोदी जी स्पेयर टाइम में हदीसें पढ़ते हैं। मैं इस बात को सत्य मान सकता हूँ, और ऊपर लिखी हुई हदीस को हमेशा याद रखता हूँ।
और हाँ, ओवैसी, आजम, अजमल जैसे कट्टरतम नेता भी मंच से “हमारे हिंदु भाई” ही कहते हैं, कभी काफिर या मुशरिक नहीं कहते। इसीलिए कहा, सभी से सीख लेनी चाहिए।