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ISISI को चुनौती देती एक लड़की

by Praarabdh Desk
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उत्तरी इराक में सीरिया की सीमा से सटे हुए शिंजे का गांव है कोचू। छह भाइयों, बहनों, भाभी और मां-बाप के साथ इसी गांव में रहती थी नादिया मुराद। थोड़ी सी जमीन थी, जिसमें प्याज उगाते थे। प्याज की फसल और भेड़ें पालकर परिवार चल रहा था। पूरे गांव में यजीदी समुदाय के लोग रहते थे। ISIS यजीदियों को सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं।

साल 2014 की बात है। ISIS तेजी से इराक में घुस रहा था। अगस्त की गर्मी वाली वह रात थी, जब ISIS ने हमला किया। गांव वाले हमले से पहले भागने वाले थे, लेकिन इराक सरकार के सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा का आश्वासन देकर रोक लिया था। गांव वालों ने सुरक्षाकर्मियों का खूब सत्कार किया। उन्हें यकीन था कि बंदूकें लेकर डटे सुरक्षाकर्मी ISIS के लड़ाकों को खदेड़ देंगे। लेकिन, जब ISIS ने हमला किया तो इराकी सुरक्षाकर्मी ग्रामीणों को अकेला छोड़कर भाग गए।

आईएसआईएस के आने से पहले कुछ गांववाले तो बचकर भाग गए। इस्लामिक स्टेट के लड़ाके पहुंचे तो बाकी बचे पुरुषों, महिलाओं, बच्चों को गांव के स्कूल में ले जाया गया। लड़कियों को अलग करके एक बस से ISIS के कब्जे वाले दूसरे शहर भेज दिया गया। गांव के बाहर के उस स्कूल में बचे पुरुषों और उम्रदराज महिलाओं की आतंकियों ने हत्या कर दी। नादिया की मां और उसके कुछ भाई भी वहां मारे गए थे।

ऐसी जगहों से जो लड़कियां या महिलाएं पकड़ी जातीं, इस्लामिक स्टेट के लड़ाके उन्हें 5 हजार डॉलर तक में बेच देते। कई बार बहुत अच्छा काम करने वाले अधिकारियों को ये लड़कियां या महिलाएं इनाम में दी जाती थीं।

नादिया के गांव से जिन लड़कियों और महिलाओं को कैद किया गया था, उन्हें एक बस से मोसुल भेजा जा रहा था। भीषण गर्मी थी। बस पूरी तरह से बंद थी। उसमें बैठी लड़कियां और महिलाएं कई दिन से नहाई नहीं थीं। नादिया मुराद ने अपनी किताब ‘द लास्ट गर्ल: माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी एंड माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट’ में उस हालात का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि पूरी बस में भयंकर दुर्गंध थी। कुछ लड़कियों ने उल्टी कर दी थी। उसी उल्टी में सनी हुई बैठी थीं। बस में एक सुरक्षाकर्मी था। जिन लड़कियों ने उल्टी नहीं की थी, उनके प्राइवेट पार्ट वह छू रहा था। लड़कियां उसकी हरकतों से बचने के लिए जानबूझकर उल्टी कर रही थीं।

मोसुल शहर पहुंचने के बाद लड़कियों को एक कमरे में बंद करके नहलाया गया। इसके बाद उन्हें बेच दिया गया। नादिया को एक अफसर को इनाम के तौर पर दे दिया गया। उसने धर्म परिवर्तन करके नादिया को अपनी सबाया यानी रखैल बनाया। एक दिन उसके बंगले से नादिया ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पकड़ी गई। पहले तो उस अफसर ने चाबुक से नादिया को पीटा, फिर सजा के तौर पर घर के सुरक्षाकर्मियों और नौकरों के हवाले कर दिया। उन्होंने कई दिन तक दुष्कर्म किया।

कुछ दिन बाद नादिया को दूसरे को बेचने के लिए दे दिया गया। जहां उनकी बोली लगनी थी, वहीं एक कमरे में उनकी बहन, भतीजी, होने वाली भाभी, सहेलियां भी मिलीं। उनके साथ भी वैसा ही हुआ था, जैसे नादिया के साथ। जब उनसे नादिया मिलीं तो एक-दूसरे से लिपटकर सिर्फ रोती रहीं। उन्होंने अपना दर्द बताया। कई बार दुष्कर्म से बचने के लिए खुद पर उल्टियां करतीं, पीरियड्स का खून लगातीं ताकि आईएसआईएस के लड़ाके उनसे आ रही दुर्गंध की वजह से दूर रहें।

नादिया जितने दिन भी आतंकियों के कब्जे में रहीं, हर रोज सिर्फ भागने का सोचतीं। उन्होंने सोच लिया था कि इस नर्क से दूर होने के लिए अब हर जुल्म को सह सकती हूं। एक दिन वह आया, जब नादिया आतंकियों के चंगुल से भाग निकलीं। बचते-बचाते मोसुल के ही एक सुन्नी मुसलमान के घर पहुंचीं। उस परिवार ने शरण दी। यह जानते हुए कि आतंकियों को पता चला तो पूरा परिवार खत्म कर देंगे।

घर के मुखिया ने नादिया का नकली पहचान पत्र बनवाया। फिर अपने बेटे के साथ उनके एक भाई के घर तक छोड़ने की व्यवस्था की। इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले हर चेकपोस्ट पर नादिया की तस्वीर लगी थी। भागी हुई सबाया को ISIS के लड़ाके ढूंढ रहे थे। तमाम बाधाओं को पार करती हुई बहादुर लड़की आखिरकार इराक के कब्जे वाले क्षेत्र में पहुंच गई। इराक में तब गृह युद्ध की वजह से सुरक्षाकर्मी 2 गुटों में बंटे थे। कुर्द में जो भाग गए थे, उनके विरोधी खेमे तक नादिया पहुंच चुकी थी।

नादिया की कहानी को भुनाने के लिए सुरक्षा अधिकारियों ने पूरा विडियो राष्ट्रीय चैनल पर दिखा दिया, जबकि विडियो बनाते वक्त चेहरा छिपाकर दिखाने का वादा किया था। अब जिसने नादिया की मदद की थी, आईएसआईएस वाले उसके पीछे पड़ गए। नादिया का भाई भी डर गया। उसका डर इस्लामिक स्टेट से नहीं, बल्कि अपने धर्म के लोगों से था।

यजीदियों में धर्म परिवर्तन या शादी से पहले सेक्स की मनाही है। किसी के साथ दुष्कर्म हो जाए तब भी परिवार या समाज उसे नहीं अपनाता। कई बार तो ऐसी लड़कियों की हत्या कर दी जाती थी। नादिया और उसके भाई को भी यही डर था।

नादिया को फिर इराक के एक शरणार्थी शिविर में भेज दिया गया। वहां नादिया की तरह कई और यजीदी लड़कियां और उनके परिवार वाले थे। वहां कई डॉक्टरों को सिर्फ इसलिए रखा गया था कि लड़कियों के कौमार्य की सर्जरी कर सकें। नादिया से भी ऐसा कराने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

हालांकि बाद में यजीदी धर्मगुरुओं ने भी मिसाल पेश की। कई धर्मगुरु सार्वजनिक मंचों पर आए और बोले- धर्म कहता है कि धर्म परिवर्तन और सेक्स करने वालों का बहिष्कार हो। लेकिन, इन लड़कियों ने इच्छा से ऐसा नहीं किया है। ऐसे में इन्हें धर्म से अलग नहीं किया जा सकता। फिर इस्लामिक स्टेट से मुक्त हुईं लड़कियों को दोबारा से यजीदी समाज ने सम्मान के साथ अपना लिया।

बाद में नादिया जर्मनी चली गईं। वहां संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी संबोधित किया। आईएसआईएस से उनकी लड़ाई जारी है। कई बार धमकियां भी मिलीं, लेकिन उनके कदम नहीं रुके। 2018 में शांति के क्षेत्र में नादिया को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। युद्ध में बंधक बनाई गईं लड़कियों की आवाज हर मंच पर उठाती रहती हैं। नादिया का सफर अभी भी जारी है।

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