Home लेखक और लेखदेवेन्द्र सिकरवार मुगल बाग या अमृत गार्डन
कुछ बुद्धिजीवियों को ‘मुगल बाग’ के नाम परिवर्तन पर बहुत ‘अफसोस’ हो रहा है, एक ‘दयनीय अफसोस’।
उनका कहना है कि इतिहास को बदलने की कोशिश की जा रही है।
वाकई?
पर प्रश्न तो यह है कि क्या आपको ‘इतिहास’ की जानकारी है?
अगर आप ‘राष्ट्रीय अनुसंधान शैक्षणिक परिषद’ की नवीं-दसवीं दर्जे की पुस्तकों को पढ़कर, उसे इतिहास मानेंगे तो आपकी तथ्यात्मक दरिद्रता की दयनीयता आपके लेखों में स्थायी रूप से बस जाने वाली है।
चलिये मैं मुफ्त में ट्यूशन देता हूँ आपको-
मेसोपोटामियाई सभ्यता में बाग- समझ आता है,
वैदिक सभ्यता में हर्म्य उद्यान-समझ आता है,
मिस्र में बाग- समझ आते हैं,
फारसी सभ्यता में बाग- समझ में आते हैं,
लेकिन,
अरबी सभ्यता में बाग?
मुगलिया मध्यएशिया में बाग?
बौरा गये हैं क्या? कॉमन सेंस है??
उद्यान और बाग उनके लिए सिर्फ कल्पना हो सकते हैं जहां सिर्फ रेत हो। पीने के अलावा शौच के बाद धोने के लिए पानी का प्रयोग भी जहाँ विलासिता हो, वे ज्यामिति पर आधारित बाग बनवाएंगे? और ऐसे विध्वंसक धर्मांध अरबों से धर्मप्रेरित मुगल जो स्वयं खानाबदोश बर्बर थे वे भारतीयों को उद्यानशास्त्र सिखाएंगे।
कम से कम मजाक तो ठीक से करो।
उनके उद्यान केवल उनकी काल्पनिक जन्नत में ही साकार हो सकते थे और इसीलिये कुरान में जन्नत की तरह ‘हश्त बहिश्त’ भी एक कल्पना भर थी जिसे पूर्व हिंदू राजाओं के महलों में देखकर, वह साकार हो उठी और उन लुटेरों ने उनपर कब्जा कर अपना नाम चैंप दिया और यहां तो कुरान की आयतों को भी दीवारों पर चैंपने की बेहूदा कसरत भी नहीं करनी थी।
शालीमार हो या निशात बाग, भारत के सभी उद्यान प्रासादों व महलों की तरह पूर्व हिंदू राजाओं की संपत्ति थे जिनपर लुटेरों ने अपना नाम भर लिखा।
कई हिंदू जल संरचनाएं तो इतनी जटिल थीं ये असभ्य, बर्बर लोग उसका रखरखाव भी न कर पाए। न विश्वास हो तो चले जाइये मेरे पूर्वजों की नगरी ‘विजयपुर सीकरी’ जिसको सैक्स मैनियाक अकबर ने ‘फतेहपुर’ नाम तो दे दिया लेकिन उसकी जटिल जलवितरण प्रणाली की जलस्रोत प्रसिद्ध ‘अनूप झील’ की देखरेख उसके जाहिल कारीगरों की समझ से बाहर थी।
अनूप झील सूख गई और अकबर को मुँह लटकाकर वापस आगरा आना पड़ा।
मुगल गार्डन को ‘अमृत उद्यान’ नाम देना तो उन भूलों की श्रृंखला को सुधारने की एक कड़ी भर है पर वास्तविक आवश्यकता तो इतिहास की पुस्तकों में यह लिखने की है कि-
‘तथाकथित इंडोइस्लामिक और मुगल शैली और कुछ नहीं पूर्ववर्ती महलों, उद्यानों व किलों पर कुरान की आयतें खुदवाकर अपना नाम चिपकाने की इस्लामिक धृष्टता भर है।’
रही बात लुटियंस, वायसराय की बीवी और तुम्हारी तो बस मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे सकते हो तो दे दो–
“जिन राजाओं ने खजुराहो, कैलाश मंदिर, कोणार्क जैसे भव्य मंदिर बनवाये उनके अपने सतखंडा महल व उद्यान कहाँ गये?”
एनसीईआरटी के स्तर से थोड़ा आगे बढ़ो और जब बढ़ जाओगे तो उत्तर भी मिल जाएगा।
गुम्बद, मेहराब, संगमरमर व टाइलों का प्रयोग जैसे तथाकथित बचकाने मुगलिया तर्कों पर फिर कभी।

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