द्वारिका धाम में जाइए. भव्य मंदिर है भगवान श्री कृष्ण का. दिन में पाँच बार ध्वजा बदली जाती है. देश विदेश से भक्तों का ताँता लगा रहता है. द्वारिका के राजा है भगवान कृष्ण. प्रातः मंगला आरती. फिर एक घंटे का विश्राम, मंदिर के पट बंद. फिर अभिषेक फिर पट बंद. शृंगार, आरती भोग, आरती दर्शन ग्वाला दर्शन इस तरह से विविध रूपों में श्री कृष्ण जी आते हैं, पंद्रह मिनट आधा घंटा दर्शन देते हैं फिर सभा विसर्जित. दोपहर में राज भोग के पश्चात एक बजे दोपहर विश्राम. चार घंटे पट बंद.
द्वारिका शहर भी इसी टाइम टेबल से चलता है. एक बजे बाज़ार बंद हो जायेगी फिर पाँच बजे खुलेगी. उचित ही है. लीला पुरुषोत्तम हैं श्री कृष्ण. विविध रूप, सब में लीलाएँ. कभी बाल रूप में यशोदा माँ के साथ अठखेलियाँ तो कभी गोपियों संग राश लीला तो कभी कंस का संहार, तो कभी अर्जुन को ज्ञान. इतने विविध रूप, सामान्य मानव नहीं हैं. लीला है प्रभु की. कृष्ण को समझना है तो द्वारिका अवश्य जायें.
अयोध्या आइये. भगवान राम की नगरी. अलग ही छटा है. शोर कोलाहल इन सबके बीच एक असीम आनंद. चारों ओर से भजन कीर्तन रामायण का गुंजन. भव्य नगरी. एक से एक भव्य महल और अट्टालिकाएँ. एक ओर है हनुमान गढ़ी. भव्य मंदिर है छटा निराली है श्री राम के दास बजरंगी की यहाँ. तो दूसरी ओर है कनक भवन. अयोध्या का सबसे भव्य निर्माण. यह महल है माता केकई का. वही कैकई जिन्होंने श्री राम को बनवास दिलवाया था. पर सबसे भव्य महल उन्हीं का है.
और इन सबके बीच स्वयं प्रभु राम एक सामान्य से टेंट के नीचे बरसों से. सदियों से उनके लिये एक मंदिर तक नहीं. वह जो पूरे अवध क्षेत्र के राजा हैं, संपन्न क्षेत्र है, पर स्वयं राजा टेंट में. यही हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम. प्रजा महलों में और राजा टेंट में. सैतेली माँ के लिए भव्य महल, सेवक के लिए भव्य मंदिर. स्वयं टेंट में.
यह आदर्श हैं एक राजा के. भगवान राम मनुष्य नहीं ईश्वर के अवतार हैं, आज भी दिखता है, सिद्ध होता है. श्री राम हमारे दिल में हैं. उनकी राम कथा हम अयोध्या से लेकर नैमिष तक, बद्रीनाथ से लेकर रामेश्वरम तक सुनते हैं. आज भी कोई शुभ कार्य होता है उसमे रामायण का पाठ करते हैं. मैंने नया घर बनवाया, सबसे पहला मांगलिक कार्य – रामायण पाठ. घर में रोज़ प्रातः सुंदर कांड का पाठ होता है. भगवान राम और उनकी कथा हमारे दिलों में है.
कुछ कलियुगी दैत्य उनकी पुस्तक श्री राम चरित मानस जब जलाते हैं तो सच कहूँ क्रोध नहीं आता, दया आती है. उनके पुस्तक जलाने से हमारी आस्था पर न प्रहार हुआ न विचलित हुई न क्रोध हुआ. क्योंकि श्री राम का आदर्श किसी पुस्तक से नहीं हमने असल ज़मीन पर देखा हुआ है.
ऐसे नर पशु घृणा नहीं दया के पात्र हैं. प्रभु श्री राम इन्हें सद्बुद्धि प्रदान करें.