Home विषयऐतिहासिक मध्यएशिया व भारत

#मध्य_एशिया पर जेएनयू में मध्येशियाई देशों के इतिहासविदों, राजनयिकों व अन्य विद्वानों की उपस्थिति में सबमिट किया गया रिसर्च पेपर जो मूलतः ‘अनंसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु में वर्णित तथ्यों पर ही आधारित है।

मध्यएशिया व भारत:–(1)
एशिया महाद्वीप का मध्य या केन्द्रीय भाग जो पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफगानिस्तान तक विस्तृत है लेकिन मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश कज्जाखस्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान जैसे मुख्य देशों के अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, उत्तरी पाकिस्तान का एक हिस्सा, चीन के शिनजियांग और मंचुरिया का क्षेत्र और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है।
प्राचीन काल से लेकर निकट वर्तमान तक यह क्षेत्र संसार भर में हलचल पैदा करने वाली नृजातियों का जन्मस्थान रहा है।
पर इससे पूर्व एक पुरातन अवधारणा को समझना जरूरी है।
अ) #एक्सिस_मुंडी_व_सुमेरु
नवपाषाण युग के उत्तरार्द्ध में संसार के विभिन्न भागों में सभ्यताएं पनपने लगी थीं।
अपने-अपने भोगौलिक वातावरण के अनुसार उनमें अपने विचार व संस्कृतियां विकसित हुईं।
पश्चिम एशिया, भारत, चीन और रूस के साइबेरियाई क्षेत्र व मध्य एशिया की ये सभ्यताएं अपने चरम तक पहुँची और उनके साथ-साथ संक्रमण वाले क्षेत्रों में कई स्थानीय उपसंस्कृतियाँ भी फली फूलीं जिनके माध्यम से विशाल संस्कृतियों का समन्वय हुआ।
यों तो ये सभी संस्कृतियां अपनी विशिष्टताओं के साथ गतिमान थीं लेकिन कई ऐसे तत्व व अवधारणाएं भी हैं जो संसार की इन सभ्यताओं, अमूमन सभी सभ्यताओं में दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए प्राकृतिक शक्तियों विशेषतः आकाश, पृथ्वी, अग्नि व जल का दैवीकरण तथा जलप्रलय की घटना।
ऐसी ही एक अवधारणा थी- ‘ब्रह्मांडीय अक्ष’ अर्थात ‘एक्सिस मुंडी’।
यह शब्द भले नया है लेकिन इसकी मूल अवधारणा का स्वरूप बहुत प्राचीन है। इसे ब्रह्मांडीय अक्ष या विश्व अक्ष या विश्व स्तंभ या विश्व का केंद्र या विश्व वृक्ष भी कहा जाता है।
इसे ‘पृथ्वी व स्वर्ग के बीच की कड़ी’ भी कहा जाता है।
एक्सिस मुंडी को प्रतीकात्मक रूप में कई प्रकार से विभिन्न सभ्यताओं में वर्णित किया गया है लेकिन इन सभी में सर्वाधिक विस्तृत रूप में इसका विवरण एक पर्वत के रूप में दर्ज किया गया है।
प्राचीन यूनानी धर्म में यह ओलम्पस है।
प्राचीन चीनी ताओवाद में यह कुनलुन है।
यहूदियों के विश्वासों में यह टेंपल माउंट है।
ईसाइयों में कलवरी का पहाड़ है।
पर यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
यह इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अवधारणा उस सभ्यता की देन है जिसने एक पर्वत को पृथ्वी व ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में माना जिसके चारों ओर वृत्ताकार रूप में कई द्वीप व सभ्यताएं अवस्थित थीं।
वह ब्रह्मांड का केंद्र भले न हो लेकिन यह पर्वत कोई कल्पना नहीं बल्कि एक भौगोलिक वास्तविकता थी।
यह सभ्यता थी भारतीय सभ्यता जिसके द्वारा पृथ्वी के केंद्र के रूप में अंकित किया गया और यह पर्वत था- ‘सुमेरु’
‘ॐ’, ‘स्वस्तिक’ और ‘मनु’ के अलावा ‘सुमेरु’ शब्द मानव जाति की चेतना में बसा सबसे प्रभावी व रहस्यमय शब्द है ।
पर इससे पहले कि मध्यएशिया क्षेत्र से भारतीयों के गहरे, प्राचीन जुड़ावों पर आगे बढें, यह निर्धारित करना आवश्यक है कि प्राचीनकाल का सुमेरु पर्वत क्या था।
प्राचीन जगत के कई रहस्यों में अगर सबसे बड़े रहस्य को चुना जाये तो निःसंदेह वह होगा रहस्यमय पर्वत ‘सुमेरु’ । एक पर्वत जिसका उल्लेख किसी ना किसी रूप में संसार की सभ्यताओं में हुआ है यहां तक कि बेबीलोन की सभ्यता को तो ‘ सुमेर सभ्यता ‘ का ही नाम दे दिया गया ।
यह कोई संयोग नहीं कि अन्य सभ्यताओं में जैसे चीन में कुनलुन और यूनान में ओलंपस का विवरण भारतीय साहित्य में वर्णित सुमेरु के विवरण से प्रेरित है यहाँ तक कि कई विद्वान मेसोपोटामिया की सुमेर सभ्यता व उसके जिग्गुरातों को भी इसी पर्वत की प्रतिकृति के रूप में मानते हैं।
अगर भारतीय पंथों जैसे जैन, बौद्ध व वैदिक जनों में वर्णित ‘इसकी अतिरेकपूर्ण वर्णित लंबाई चौड़ाई को छोड़ दें तो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं-
1) सुमेरु पृथ्वी का केंद्र है।
2)इसके चारों और अवस्थित पर्वत एवं क्षेत्र
यही कारण है कि-
चाहे बेबीलोन के जिग्गुरात हों या मिस्त्र के पिरामिड ,यूनान का ओलंपस हो या चीन का तियान शान, सभी की मान्यता थी कि इनके सर्वोच्च भाग पर देवता निवास करते हैं । यह मान्यता भारतीय ग्रंथों में वर्णित सुमेरु पर्वत के उस विवरण से साम्यता प्रदर्शित करती है जिसके अनुसार सुमेरु के सर्वोच्च भाग पर ब्रह्मा और नीचे भाग पर अन्य देवता निवास करते हैं ।
इसीलिये प्रायः सभी विद्वान ऐसा मानने लगे हैं कि बेबीलोन के जिगगुरात, मिस्र के पिरामिड और भारत के मंदिरों का निर्माण भी वस्तुतः मेरु पर्वत की स्मृति थी जिसमें उनके ‘देवता’ निवास करते थे। कंबोडिया के विश्वप्रसिद्ध अंगकोरवाट मंदिर इसका सर्वश्रेष्ठ वास्तु प्रतीक है।
लेकिन भारतीयों के लिए ‘एक्सिस मुंडी’ के रूप में वर्णित सुमेरु पर्वत इतना महत्वपूर्ण क्यों रहा है कि प्राचीनतम महाकाव्यों से लेकर मुझ अनाम विद्यार्थी तक इसकी ओर सम्मोहित हैं?

Related Articles

Leave a Comment