Home नया शालीग्राम पत्थर का धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार

शालीग्राम पत्थर का धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार

by Praarabdh Desk
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में बाल्य राम एवं सीता माता की मूर्ति बनाने के लिए दो शालिग्राम शिला को नेपाल से लाया गया है बताया जाता है की ये शिलाएं नेपाल के गंडकी नदी से निकाली गयी है. दावा किया जा रहा है ये दोनों शिलाएं करीब 6 करोड़ साल पुरानी हैं. बता दें कि शालिग्राम मिलने वाली एक मात्र नदी काली गंडकी है ,यह नदी दामोदर कुण्ड से निकलकर गंगा नदी में मिलती है.

नेपाल की पवित्र काली गंडकी नदी से ये पत्थर निकाले गए हैं। वहां अभिषेक और विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद शिला को 26 जनवरी को सड़क मार्ग से अयोध्या के लिए रवाना किया गया था । बिहार के रास्ते यूपी के कुशीनगर और गोरखपुर होते हुए बुधवार को ये शिलाएं अयोध्या पहुंचीं। शिलायात्रा जहां-जहां से गुजरी उसका भव्य स्वागत हुआ। जानकारी के मुताबिक, शालिग्राम शिलाओं को रामसेवकपुरम स्थित कार्यशाला में रखा गया हैं।

छह करोड़ वर्ष पुराने दो शालीग्राम पत्थरों को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में रखा गया हैं। इन शिलाओं का इस्तेमाल यहां निर्माण हो रहे श्री राम मंदिर में भगवान श्री राम के बाल्य स्वरूप की मूर्ति और माता सीता की मूर्ति बनाने के लिए किया जाएगा।

वैज्ञानिक शोध के अनुसार, शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर शालिग्राम का प्रयोग भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम शिला नेपाल की पवित्र नदी गंडकी के तट पर मिलती है। यह वैष्णवों द्वारा पूजी जाने वाली सबसे पवित्र शिला है इसका उपयोग भगवान विष्णु को एक अमूर्त रूप में पूजा करने के लिए किया जाता है।

शालिग्राम की पूजा भगवान शिव के अमूर्त प्रतीक के रूप में ‘लिंगम’ की पूजा के बराबर मानी जाती है। आज शालिग्राम विलुप्त होने के कगार पर हैं। ये शिलाएं अब गंडकी नदी से विलुप्त प्राय हैं, केवल दामोदर कुंड में कुछ शालिग्राम पाए जाते हैं, जो गंडकी नदी से 173 किमी की दूरी पर है।

शिला का धार्मिक महत्व क्या है?
गौतमीय तंत्र के अनुसार, काली-गंडकी नदी के पास शालाग्राम नामक एक बड़ा स्थान है। उस जगह पर जो पत्थर दिखते हैं, उन्हें शालाग्राम शिला कहा जाता है। हिंदू परंपरा के अनुसार ‘वज्र-कीट’ नामक एक छोटा कीट इन्हीं शिलाओं में रहता है। कीट का एक हीरे का दांत होता है जो शालिग्राम पत्थर को काटता है और उसके अंदर रहता है।

शालिग्राम पर निशान इसे एक विशेष महत्व देते हैं, जो अक्सर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की तरह दिखाई देते हैं। शालिग्राम अलग-अलग रंगों में मिलते हैं, जैसे लाल, नीला, पीला, काला, हरा। सभी वर्ण बहुत पवित्र माने जाते हैं। पीले और स्वर्ण रंग के शालिग्राम को सबसे शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि यह भक्त को अपार धन और समृद्धि प्रदान करता है। शालिग्राम के कई रुप होते हैं, कुछ अंडाकार तो कुछ में छेद होता है और अन्य में शंख, चक्र, गदा या पद्म आदि के निशान भी बने होते हैं। शालिग्राम अक्सर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों जैसे नरसिंह अवतार, कूर्म अवतार आदि से जुड़े होते हैं।

वैष्णवों के अनुसार शालिग्राम ‘भगवान विष्णु का निवास स्थान’ है और जो कोई भी इसे रखता है, उसे प्रतिदिन इसकी पूजा करनी चाहिए। उसे कठोर नियमों का भी पालन करना चाहिए जैसे बिना स्नान किए शालिग्राम को न छूना, शालिग्राम को कभी भी जमीन पर न रखना, गैर-सात्विक भोजन से परहेज करना और बुरी प्रथाओं में लिप्त न होना।

स्वयं भगवान कृष्ण ने महाभारत में युधिष्ठिर को शालिग्राम के गुण बताए हैं। मंदिर अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार के शालिग्राम का उपयोग कर सकते हैं। जिस स्थान पर शालिग्राम पत्थर पाया जाता है वह स्वयं उस नाम से जाना जाता है और भारत के बाहर ‘वैष्णवों’ के लिए 108 पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है।

शिला का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

भूवैज्ञानिको के अनुसार शालिग्राम शिला मौलस्क नामक समुद्री जीवो के बाहरी खोल यानि जीवाश्म है इनको एमओनाईट शैल कहा जाता है ये पत्थर पहाड़ी क्षेत्रों में इसलिए सबसे ज्यादा मिलते है क्योंकि हिमालये जो दुनिया का सबसे विशाल और प्राचीन पत्थर है हजारो साल पहले वहाँ सबसे विशाल समुद्र हुआ करते थे और उनमे समुद्री जीव भी हुआ करते थे वैज्ञानिको के अनुसार आज से करोड़ साल पहले इंडियन टेक्टानिक प्लेट और यूरेशियन टेक्टानिक प्लेटो के आपस में टक्कर होने के बाद हिमालय की उत्पत्ति हुई थी ये दो प्लेटो की टक्कर जहाँ हुई थी वहां टीथिस सागर था हिमालय का जिस पत्थरो से निर्माण हुआ वो टीथिस सागर नीचे था उसमे पाए जाने वाले जीवो के जीवाश्म अब नदी में बहकर निकलते है

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