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वकांडा फॉरएवर

Vyalok Swami

by Swami Vyalok
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जो टूट कर बिखरते हैं, वे ही विपत्तियों में निखरते हैं। ऐसा ही कुछ वकांडा के दूसरे पार्ट में विलेन के मुंह से कहलाया गया है। गलती से हिंदी डब की हुई फिल्म देख ली और जैसी की रवायत है, हिंदी डबिंग के डायलॉग और प्रस्तुति ऐसे हैं कि अच्छे-खासे गंभीर दृश्य में हंसी आ जाए।
अस्तु, यह हमारी एक समस्या नहीं है। समस्या हमारी आत्महीनता और अद्भुत दयनीयता की है। शायद 1200 वर्षों की गुलामी ने हमारे अवचेतन में इतने गहरे घाव दिए हैं कि अपने किए पर ही हमें खुद भी भरोसा नहीं होता।

आगे जो लिखने वाला हूं, उस पर जानता हूं कुछ अजीब टिप्पणियां भी आएंगी। लोगों में पूरा पढ़ने का धैर्य नहीं, तो समझने का कहां से होगा? बात यहां ब्लैक पैंथरः वकांडा फॉरएवर की। उसमें भी समंदर के अंदर की कहानी है (आजकल गोरों को समंदर से कुछ खास प्रेम उपज रहा है, अवतार-2 में भी एक्वेरियम ही है) और जब नायिका को प्रतिनायक समंदर के अंदर ले जाता है, तो जो सूट उसे देता है, ठीक वही सूट तो अक्षय कुमार भी रामसेतु में पहने हैं। उससे भी पहले अमेरिकी सेना जब आर्मेनियम खोजने समुद्र में उतरती है तो भी वही स्पेशल सूट।

फिर, मुझे रामसेतु के समय के मीम्स याद आए। रामसेतु से बढिया कोई एक्वेरियम देख लेने की तुलना याद आई। फिर मुझे याद आया कृष, उस सीरीज की तीनों फिल्में। जादू जैसा जीव ईटी में देखा तो चलिए उसे चोरी मान लेते हैं, लेकिन ऊं जैसी ध्वनि जब ब्रह्मांड से आती है, हमने उसका भी मजाक बनाया। भई, हिंदी फिल्म थी। एक हिंदू ने बनाई, ओम से ही रिलेट करेगा न, कोई अमेरिकी स्पेसशिप बनाता है तो अपना अलग म्यूजिक देता है, उसके पास कुछ है नहीं शायद रिलेट करने को- ईसाइयत में।

ब्रह्मास्त्र का भी हमने खूब ही मजाक बनाया, लेकिन स्पाइडरमैन हो, गॉडजिला हो या जुरासिक पार्क हो, अवतार हो। झोलियां भरकर हमने उनको कमाई करवाई है और खूब पैसे दिए हैं।

इससे पहले कि लकड़बग्घे मेरी खाल नोचने आ जाएं, एक डिस्क्लेमर दे दूं। रामसेतु हो या ब्रह्मास्त्र, मैं यहां उनकी कहानी, सत्यनिष्ठा या डायरेक्शन पर बात ही नहीं कर रहा हूं, केवल इस प्रश्न पर सोच रहा हूं कि इनकी तकनीकी उपलब्धि भी हमें चौड़े से रहने का अहसास क्यों नहीं कराती, आखिर क्या वजह है कि पटना के बोरिंग रोड से हॉलीवुड फिल्मों के विशेष प्रभाव की पूरी इंडस्ट्री चलने के बावजूद हम इतने आत्महीन हैं, आखिर एक ही सूट हमें रामसेतु में भद्दा और वकांडा में तकनीकी चरमोत्कर्ष क्यों लगने लगता है ?

आखिर, वकांडा जैसी दूसरे ग्रह की, एलियन वाली, स्पाइडरमैन जैसी, जुरासिक पार्क जैसी तमाम दर्जनों फिल्में हमें स्वीकार्य क्यों हैं, जबकि अपना सुपरहीरो कृष या शिव हमें लगता है कि मीम का ही मटीरियल है….

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