Home विषयइतिहास मध्यएशिया व भारत – जेएनयू में दिए गए वक्तव्य का विस्तार : भाग 5

मध्यएशिया व भारत – जेएनयू में दिए गए वक्तव्य का विस्तार : भाग 5

Devendra Sikarwar

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शक पह्लव कुषाण हूणों का भारत की ओर ऐतिहासिक क्रमिक विस्थापन

द्वितीय शताब्दी ईसवी पूर्व में इस घटनाक्रम का प्रा रंभ ‘हिउंगनु या जियोंग्नू’ तथा ‘वु सुन’ के साथ संघर्ष से हुई।इनसे मूलतया यह प्रतीत होता हैं कि लगभग ईसा पूर्व 176 में हिउंगनु जाति ने यूइची जाति को खदेड़ दिया।यूइची पश्चिम की ओर बढते हुए सईवेंग अर्थात शक-मुरुण्डों के क्षेत्र में पहुँचे और उनको वहाँ से हटा दिया। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, शक कबीले ‘यू ची’ जाति द्वारा सोग्डिया और बैक्ट्रिया की ओर खदेड़े गये तथा फिर वे भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम की ओर गये जहां से उन्होंने मध्य भारत तक अपना विस्तार किया।
इन ‘इंडो-सिथियन’ को चीनी भाषा में ‘सई वैंग ‘ और भारतीय परंपरा में ‘शक मुरुण्ड’ कहा गया। यह भारत में आये शकों की पहली लहर थी जिसे मालव गणतंत्र के राष्ट्रपति विक्रमादित्य ने 58 ईपू में पश्चिमोत्तर की ओर धकेल दिया। उधर शकों की दूसरी शाखा ने पार्थियन साम्राज्य पर आक्रमण किया और ईरान के उस भाग में बस गए जिसे ‘सिस्तान’ कहा गया। इसी शाखा के ‘कर्दम नदी घाटी’ में बसे ‘कार्द्दमक शक’ संभवतः बलूचिस्तान के रास्ते शकों की दूसरी लहर के रूप में आये और सौराष्ट्र, महाराष्ट्र व मालवा में लंबे समय तक ‘पश्चिमी क्षत्रपों’ के रूप में टिके रहे जब तक कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ‘महान’ ने उनका पूर्ण विनाश न कर दिया।
इधर पूर्व में, सीथियनों के एक कबीले ‘शक’ ने शिनजियांग में खोतान से लेकर तुमशुक तक कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। बाद में यूइची जाति को ‘वसुन’ के आक्रमण के कारण उस क्षेत्र को स्वयं छोड़ना पड़ा। उसके बाद वे बैक्ट्रिया की और बढ़े।
यूइची की मुख्य शाखा ने आगे चलकर पुन: शकों को हराया और कपिशा पर अधिकार कर लिया। इसी समय से यूइची जाति का ऐतिहासिक संबंध भारत से भी आरम्भ होता हैं। कहा जाता हैं, यूइची जाति के पाँच कबीलों में बँट गई और उनमें कुइ शुआंग अथवा कुशान- कुषाण जाति के कियुल कथफिस कुजुल कैडफिसिस ने अन्य और जातिओं को हटाकर अपनी शक्ति संगठित की, काबुल की और यूनानियों का अंत कर वहाँ का शासक बन बैठा।
इसके विपक्ष में कुछ विद्वानों का मानना है कि यूइची तथा कुषाण वंश में कोई संबंध नहीं था। उनका कथन है कि कुषाण वास्तव में शक जाति के ही एक अंग थे और यूइची ने जब शकों को हराया तो इसी वंश के कुछ प्रमुख सरदार यूइची में मिल गए। शक कुषाणों की धार्मिक प्रवृत्तियों तथा सहनशीलता का परिचय लेखों तथा सिक्कों से होता है। प्रसिद्ध कुषण सम्राट् कनिष्क छोटी यूइची जाति के थे जिन्होंने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया जिसका एक बिंदु पाटलिपुत्र और दूसरा बिंदु यारकंद व खोतन पर स्थित था।
इसके बाद आये हूण जिनमें लाल हूण अर्थात किदाराईटों व एल्कोन हूणों ने समरकंद से गांधार तक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। शीघ्र ही ये हूण हिंदू धर्म व संस्कृति के रंग में रंग गये और अफगानिस्तान में भारत के द्वारपाल बने। उनके पीछे आये तुर्क जिनके खानेट से मध्यएशिया भर गया। मुख्यतः बौद्ध धर्म के अनुयायी तुर्कों ने हूणों को प्रतिस्थापित कर दिया। अफगानिस्तान में भी अंतिम नेजेक हूण शासक ‘घर इलची’ को खलज तुर्क तेगिनशाह ने प्रतिस्थापित कर दिया और अगले दो सौ वर्षों तक अरबों का प्रतिरोध करते रहे।
‘टलास के युद्ध’ के बाद मध्य एशिया का इस्लामीकरण पूर्ण हुआ और तुर्कों की जातियां विश्वविजय पर निकल पड़ीं जिनमें सल्जूक तुर्क सबसे ज्यादा सफल हुए। इनके बाद मंगोल आये और फिर सैन्य संघर्ष के बाद मध्येशियाई में मंगोलिया को छोड़ अन्य स्थानों पर कम या ज्यादा उनका तुर्कों से रक्तमिश्रण हुआ और वर्तमान तुर्क जातियां अस्तित्व में आईं जो वर्तमान मध्येशियाई राष्ट्रों की राष्ट्रीयता का आधार बनीं।

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