Home नया भारत की सैन्य परंपरा
भारत पर सायरस अर्थात कुरुष महान के आक्रमण से लेकर ब्रिटिश आक्रमणों तक मुझे तीन सैनिक कमजोरियों के दर्शन प्रायः होते रहे हैं।
1)भारतीय रणनीतिकार संख्या को ज्यादा महत्व देने लगे थे, अनुशासन व स्किल को कम।
2)भारतीय सैन्य विशेषज्ञों ने पहलवानों के ही समान आकार व भारीपन के पैमाने को सैनिक शरीर का प्रतिमान बना दिया और स्टैमिना को नजरअंदाज कर दिया।
3)भारतीय आयुध विशेषज्ञों ने लोहे की ढाल के स्थान पर गैंडे व भैंसें के चमड़े की ढाल को प्राथमिकता दी ताकि शरीर से भारी सैनिकों की गतिशीलता में वृद्धि हो।
4)ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र होने के कारण भारी लौह कवचों को त्याग कर साधारण चमड़े का कवच इस्तेमाल किया।
ऊपर के प्रथम दो बिंदुओं के कारण न केवल सैनिक गतिशीलता में कमी आई बल्कि स्टैमिना के कम होने के कारण सैनिक लंबे समय तक युद्धभूमि में कम टिक पाते थे।
जबकि अंतिम दो बिंदुओं के कारण पैदल सैनिक पूरी तरह vulnerable हो गए बल्कि कहें कि शत्रु के लिए चारे की तरह प्रयोग किये जाने लगे।
यद्यपि यह चर्चा जारी रहेगी लेकिन उपरोक्त बिंदुओं के संबंध में प्रमाण यह है कि केवल बत्तीस हजार सैनिक लेकर चला सिकंदर व्यास नदी तक आ धमका क्यों कि स्वीकार करने में बुरा लगता है लेकिन उसके यूनानी सिपाही बहुत फुर्तीले और अनुशासित थे जिन्होंने गॉगोमेला के मैदान में लगभग चार गुनी बड़ी फारसी फौज को हराया और भारत में भी उसका सामना बड़ी फौजों से हुआ जिसमें केवल पुरु, कठ और मालव ही उसे कड़ी टक्कर दे पाए। बाद में सैल्यूकस के आक्रमण के समय महामात्य चाणक्य ने संख्याबल और एक विशेष तकनीक ढूंढ निकाली जिसके कारण वह सैल्यूकस को हरा पाये। (उस तकनीक को जानने के लिए अर्थशास्त्र पढिये या अगली कड़ी का इंतजार करें।)
दूसरा प्रमाण यह है कि जुनैद के भारत आक्रमण के समय नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में बने राजपूत संघ में योद्धाओं की संख्या मात्र तीस हजार थी और अरब मुस्लिम एक के मुकाबले पांच की बढ़त पर थे लेकिन राजपूत योद्धा उस युग की बेहतरीन रक्षा तकनीक से बने कवच से लैस थे, जिसमें स्टील की प्लेट्स के साथ चैनमेल का संयोग था जबकि उनके भारी खांडे व पंचिंग कटार और चक्र व अर्रा ने उनके पैदल सैनिकों को भी ‘किलिंग मशीन’ में बदल दिया था।
साथ ही उनकी हल्के फुर्तीले शरीर और कठोर सैन्य प्रशिक्षण ने उन्हें अरबियों को निर्णायक पराजय देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इंदु से सिंधु तक के विवरण के आधार पर
चित्र में एक ओर ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के क्षत्रिय सैनिक हैं तो दूसरी ओर छठवीं शताब्दी का well equipped राजपूत सैनिक है जिसमें बाद की शताब्दियों में भाले के स्थान पर बंदूक आ गई थी।

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