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सामाजिक मोर्चे पर हिंदू हर युद्ध हार रहे हैं

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व्यंग्य करके मन को तसल्ली चाहे जितनी दे लें लेकिन सच यही है कि सामाजिक मोर्चे पर हिंदू हर युद्ध हार रहे हैं चाहे वह जातिगतश्रेष्ठता का हो या लव जेहाद का।
इसके मूल कारण में हैं —
1)करपात्री गिरोह की विचारधारा द्वारा पोषित हिन्दुओं का प्रतिगामी जन्मनाजातिगत व्यवहार जिसे सिनेमा व तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी हिन्दुओं को विशेषतः टीन एजर्स के दिमाग में पिछड़ी सोच का साबित करने में सफल रहे।
2)हिंदुओं का वैज्ञानिक तथ्यों व इतिहास के विरुद्ध अतार्किक प्रतिगामी कट्टर व्यवहार जिसका एकतरफा चित्रण कर हिंदुत्व को पिछड़ी व साम्प्रदायिक सोच के रूप में चित्रित करने में सफलता।
3)सोशल मीडिया पर कट्टर हिन्दू दिखने के चक्कर में पहलवान भाई साहब की देखादेखी गालियों व असभ्य भाषा का उन्मुक्त प्रयोग जिसने हिंदुत्व की विचारधारा को नई पीढ़ी के मस्तिष्क में असभ्य, गंवार व अश्लील लोगों की पहचान के रूप में स्थापित कर दिया और नई पीढ़ी को फेसबुक से बिल्कुल दूर धकेल दिया। आप मुझे क्षमा कीजियेगा लेकिन सिनेमा में अनुराग कश्यप ने जो गालीबाजी की अपसंस्कृति शुरू की उसे फेसबुक पर आपने सामान्य बनाया वरना लोग गाली को संकेत में भी टाइप करने में झिझकते थे कि उनके बच्चे देखेंगे पढेंगे तो क्या कहेंगे।
4)जब मोदीजी ने इस्लामिक टोपी पहनने से इनकार कर दिया था उसका जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा वह विगत वर्षों में निरंतर मौलानाओं के बगलगीर होकर दिखने, चादरें चढ़ाने, इस्लाम की प्रेजिंग व नूपुर शर्मा प्रकरण से खत्म हो गया है। मोदी जी द्वारा इस्लामिक टोपी का बहिष्कार करने से इस्लाम के प्रति जो तिरस्कार भाव उत्पन्न हुआ था अब वह धुल गया है।
हालांकि मोदी जी भी क्या करें इस्लाम के विरुद्ध संघर्ष के बीच जन्मनाजातिवादी शक्तियां जिस तरह हिंदुत्व नेतृत्व पर काबिज होने की कोशिशें कर रहीं थीं यह उसी का परिणाम है।
5)नूपुर शर्मा प्रकरण के बाद सरकार द्वारा उठाये गए कूटनीतिक कदमों व भाजपा नेताओं के तथाकथित सर्वधर्मसमभाव की नौटंकी के कारण मध्यम वर्ग इस सारी उठापटक से तंग आकर पुनः अपने कैरियर फर्स्ट की माइंड सैटिंग में लौट चुका है और यह अब उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है इस हद तक कि अब स्वयं माता पिता अपनी बेटी की शादी म्लेच्छ से होने पर बाकायदा निमंत्रणकार्ड भी छपवाने लगे हैं।
सच तो यह है कि लव जेहाद के मुद्दे पर नेताओं, धार्मिक मठाधीशों के दोगले आचरण के कारण इस मोर्चे पर हम ये जंग हार चुके हैं।
रही बात स्वरा भास्कर की तो उसे अगर इन्सैस्ट में मजा आता है तो मजा लेने दो। सदा से गुंडी औरत रही है तो वह तो करेगी ही।
दिक्कत यह है कि विवाह संस्था को तोड़ने के बाद अब वह इन्सेस्ट को सामाजिक स्वीकृति दिलाने के चक्कर में दिख रही है।
अभी हाल में रिलीज हुई नई फिल्म ‘जादूगर’ का प्रसिद्ध हुआ सीन आपने देखा होगा जिसमें लड़का लड़की को ‘दीदी’ बोलकर बच जाता है और बाद में जब लड़की उसे डांटती है कि दीदी बोला था न तूने मुझे तो लड़के का बेशर्मी भरा जवाब आता है कि
‘बोला तो आई लव यू भी था।’
चीजें इसी तरह हल्के रूप में शुरू की जाती हैं वरना सत्तर साल पहले मुस्लिम के छू जाने पर नहाना पड़ता था।
पर मुस्लिम जो काम पिछले हजार वर्ष में न कर पाए सिनेमा और जेएनयू ने वह काम सत्तर वर्ष में कर दिया।
बहुत जल्द आप भाई-बहन के बीच सैक्स संबंधों की वकालत करने वाले सिनेमा व स्वराओं को देखेंगे।

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