फिर अप्रैल 2018 में विधायक सेंगर के छोटे भाई अतुल सेंगर और उनके साथियों ने लड़की के पिता के घर में घुसकर उन्हें बहुत बेरहमी से पीटा.
लड़की के पड़ोसी बताते हैं, “पानी डाल-डाल कर पीट रहे थे, लग रहा था कि जान बचेगी भी या नहीं, लेकिन उनका आपसी मामला था तो कोई बीच में नहीं बोला.”
मारपीट ख़त्म हुई तो पिता को थाने ले गए और आर्म्स ऐक्ट के तहत हिरासत में ले लिया. आरोप ये है कि वहां भी पिटाई जारी रही.
लड़की की चचेरी बहन बताती हैं, “बहुत मुश्किल से, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फोन से इल्तजा कर पिता जी को अस्पताल में रखवाया.”
लेकिन लड़की के सब्र का बांध टूट गया था और उसने अपनी मां से कहा कि मैं आत्महत्या कर लेती हूं, शायद तभी ये सब ख़त्म हो.
मां ने रोका नहीं, बल्कि कहा, “तुम अकेली क्यों हम पीछे जीकर क्या करेंगे.” और सभी बहनें मां के साथ चल पड़ीं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर के सामने लड़की ने आत्मदाह की कोशिश की.
उसे तो बचा लिया गया, लेकिन अगले दिन तड़के ख़बर आई कि उसके पिता अस्पताल में दम तोड़ चुके हैं.
पूरे मामले में लापरवाही के लिए थानाध्यक्ष समेत पांच अन्य पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया.
बाद में विधायक के भाई अतुल सेंगर समेत कुछ पुलिसकर्मियों को लड़की के पिता की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया. अतुल सेंगर के ख़िलाफ़ पुलिस में पहले से तीन केस दर्ज थे.
राज्य सरकार सवालों के घेरे में आई और फिर बलात्कार की तहक़ीक़ात उत्तर प्रदेश पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी गई.
कुलदीप सेंगर अब भी गिरफ़्तार नहीं किए गए थे.
सारे घटनाक्रम और एफ़आईआर के बाद मीडिया दिन-रात पहरा देने लगा, इस संभावना में कि अब गिरफ़्तारी तय है.
लेकिन कुलदीप सेंगर ने घर से निकलकर पत्रकारों को ख़ुद बयान दिया कि वो निर्दोष हैं, “मैं कोई भगोड़ा नहीं, और हर तहक़ीक़ात के लिए तैयार हूं.”
तीन दिन के असमंजस और बयानबाज़ी के बाद आख़िरकार सीबीआई ने सेंगर से पूछताछ की और कुछ घंटे बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
तब तक कथित बलात्कार की वारदात को एक साल से ज़्यादा हो चुका था.
फिर दो महीने बाद सीबीआई ने चार्जशीट दाख़िल कर उसमें विधायक सेंगर को मुख़्य अभियुक्त बनाया. लेकिन सुनवाई नहीं शुरू हुई.
लड़की को अब राज्य सरकार ने पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी थी. गांव और घर दोनों जगह.
ये अजीब था क्योंकि एक व़क्त पर लड़की के चाचा ही विधायक कुलदीप सेंगर के बॉडीगार्ड का काम करते थे.
कई गांववालों ने इस बात की तस्दीक की कि दोनों परिवारों में ख़ूब मेलजोल था. जब सेंगर के नाना सरपंच थे, तभी से दोनों परिवारों में अच्छे संबंध थे. एक जाति और एक मोहल्ला उन्हें बांधता था.
अब वही दो परिवार एक-दूसरे के दुश्मन हैं. विधायक सेंगर की ओर से लड़की के परिवार पर भी मुक़दमे हुए.
एक मुक़दमा धोखाधड़ी का है, जिसमें दावा किया गया है कि कथित बलात्कार के व़क्त लड़की नाबालिग नहीं थी और सबूत के तौर पर उसने अदालत में झूठी मार्कशीट दाख़िल की है.
अन्य मामलों के साथ ये भी अब सीबीआई के पास है.
फिर एक पुराना मुक़दमा भी ताज़ा किया गया. वर्ष 2000 में चुनाव प्रचार के दौरान तमंचा दिखाकर धमकाने के आरोप में लड़की के चाचा को गिरफ़्तार किया गया था.
वो ज़मानत पर छूटे तो वापस अदालत में पेश ही नहीं हुए. उस केस में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया.
17 साल बाद, विधायक सेंगर की गिरफ़्तारी के कुछ महीने बाद अदालत को ये बताया गया कि चाचा अब दिल्ली में हैं.
अदालत ने उन्हें हत्या की कोशिश के लिए दोषी ठहराया और 10 साल की सज़ा सुनाई .
लड़की के ताया की तो कई साल पहले ही मौत हो गई थी. पिता की हिरासत में मौत और चाचा को जेल के बाद अब घर में सिर्फ़ औरतें ही बची थीं.
लड़की की चचेरी बहन ने बताया, “सब कुछ चाची ही देख रहीं थीं. दिल्ली से गांव जाना, सीबीआई को बयान देना और साथ में घर और व्यापार चलाना.”
लड़की की मां कहती हैं, “धमकियों का सिलसिला तब भी नहीं थमा बल्कि बढ़ता चला गया.”
अपने वकील की मदद से उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायाधीश तक को मदद के लिए चिट्ठियां लिख डालीं.
“यह सभी अपराध वास्तव में घटित हो चुके है और इनका विवरण विकिपीडिया और अन्य श्रोतो से लिया गया है इन अपराध को करने वाले अपराधियों को सजा दी जा चुकी है और कुछ मामलो में अभी फैसला आना बाकी है और मामला न्यायालय में है आप सब से निवेदन है की इनकी कहानियो को पढ़ कर इनकी प्रेरणा न ले”