Home Uncategorized प्रवृत्ति
मैं हिंदुओं की एक एतिहासिक मनोवृत्ति से सदैव आशंकित रहता हूँ और वह है महानायकों की प्रतीक्षा।
कल एक व्यक्ति ने मोदीजी के चरणस्पर्श किये तो मोदीजी बहुत सख्त नाराज दिखे और प्रतिउत्तर में उन्होंने उस व्यक्ति के ही चरणस्पर्श कर जो संदेश देने का प्रयास किया उसे हमारे लोग अलग तरह से ही ले उड़े।
-‘मोदीजी कितने विनम्र हैं।’
-‘मोदीजी ने तुरंत हिसाब बराबर कर दिया।’
-‘मोदी जी महान हैं।’
निःसंदेह महान हैं और उन्होंने एक महान संदेश दिया था, हिंदुओं को भी और हिंदुओं के नेतृत्व को भी, जिसे आपने विरूपित कर दिया।
“राजनैतिक नेतृत्व अनुयायियों को सार्वजनिक श्रद्धाप्रदर्शन से दूर रखे और हिंदू अपनी रीढ़ सीधी रखें।”
मोदी केवल राजनेता नहीं बल्कि हिंदुओं की प्रवृत्ति को बदलने का कार्य भी कर रहे हैं जिसे हम खो चुके हैं और वह है स्वयं सक्रिय होना, स्वयं प्रतिनिधि बनना।
संपूर्ण हिंदू समाज की भागीदारी से अंतिम युद्ध हमने अरबों के विरुद्ध जीता था जब प्रतिहार राजपूतों के नेतृत्व में सभी हिंदू उठ खड़े हुए थे।
सैन्य नेतृत्व भले नागभट्ट व मिहिरभोज के रूप में राजपूतों ने किया हो लेकिन क्या तो ब्राह्मण और क्या शूद्र, सभी ने अपने हिस्से का दायित्व निभाया ।
उसके बाद तुर्कों व मुगलों द्वारा ढाये विनाश और जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावाद के घिनौने जातिवाद और उनके मुगल व ब्रिटिश सत्ता से समझौते के कारण आम हिंदू का आत्मविश्वास खो गया और रही सही कसर भक्ति आंदोलन के ‘पैसिव रेजिस्टेंस’ ने पूरी कर दी।
भक्त कवियों, संतों ने जनता को ढाढस तो बंधाया लेकिन कोई भी माधव विद्यारण्य की तरह हिंदुओं को तलवार पकड़ाने की हिम्मत न जुटा पाया।
भक्त कवियों की श्रद्धा ने जनता को ईश्वर के प्रति जिम्मेदार कम आश्रित अधिक बनाया और यही बिंदु है जहाँ हम मु स्लिमों से जो पिछड़े तो आज तक पिछडे ही हैं।
एक मु स्लिम अल्लाह से अपनी दुआ में इ स्लाम के फैलने की दुआ मांगता है और दिन रात एक किये रहता है-
“परमाणु बम से लेकर रोटी पर थूकने तक”
सबकी एक ही ख्वाइश है और वह है ‘जेहाद’
उनमें से कोई भी शिकायत नहीं करता कि अल्लाह एक पैगंबर और भेज दे।
क्यों?
क्योंकि मुहम्मद जो भी था लेकिन मनोवैज्ञानिक आला दर्जे का था।
उसने मोमिनों की आखिरी कमजोरी की संभावना ही यह कहकर मिटा दी कि मैं आखिरी पैगम्बर हूँ, अब कोई और न आएगा और जो करना है तुम्हें ही करना है।
अब हर मोमिन पैगम्बर का सीधा प्रतिनिधि है और सीधे उत्तरदायी।
इधर हम?
जरा सी मुसीबत आई कि,
“हे प्रभु अब तो आ ही जाओ।”
उसने भेजे भी-
राम, कृष्ण, चाणक्य, विक्रमादित्य, स्कन्दगुप्त, नागभट्ट, मिहिरभोज, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, बाजीराव, भगत सिंह, आजाद, नेताजी, शास्त्रीजी….
वे अपना काम करके चले जाते हैं और हम फिर से अपने लिए मांगने में व्यस्त हो जाते हैं-“सरकारी नौकरी लगवा दे, हजार रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा।”
शायद ऊपरवाला अगर है तो वह भी भेजते भेजते थक गया है।
हमारी मूर्खताओं से वह भी तंग आ गया है।
सुधर जाओ,
नेतृत्व हाथ में लो,
झुकना बंद करो,
स्वयं को हिंदुत्व का प्रतिनिधि बनाओ, आचरण से, वीरता से, स्वाभिमान से, समदर्शिता से न कि फतवा जारी करने और अपने ही भाइयों से खुद को जाति के आधार पर ऊंचा घोषित करके।
मोदीजी के पैर छूने से, श्रद्धा भर रखने से हिंदुत्व का उत्थान नहीं होगा और न ही कभी आसाराम तो कभी धीरेन्द्र शास्त्री को अपना उद्धारक मानने से।
मोदीजी की तरह स्वयं एकल ही हिंदुत्व का प्रतिनिधि बनने से होगा।
मोदीजी उस व्यक्ति के माध्यम से हमें कठोरता पूर्वक यही संदेश दे रहे हैं कि
प्रत्येक हिंदू मोदी का इंतजार करने के स्थान पर स्वयं ही मोदी की तरह हिंदुत्व का ध्वजवाहक बने।

Related Articles

Leave a Comment