Home राजनीति कुमार विश्वास की बोधकथा
कॉलेज की ट्रिप गई थी । लड़के और लड़कियां मिलाकर कुछ दस बारह होंगे । मुंबई से जरा दूर कई छोटे छोटे वॉटरफॉल बनते हैं बारिश के दिनों में । उनके नीचे काफी मजा आता है । ऐसे ही एक जगह गए थे ये लोग । चार पाँच लड़कियां, बाकी लड़के । एक लड़का म्लेच्छ था और उसकी सब से बहुत अच्छी पटती थी ।
इन सब में दो कूल डूड्स भी थे और दो तीन कूल डूडनियां भी थी । अब युवाओं की ट्रिप में आजकल पेयपान तो होता ही है, यहाँ भी हुआ । दो ही लोग थे जो पी नहीं रहे थे, एक था वो म्लेच्छ लड़का और दूसरा मेरे दोस्त का सुपुत्र । दो कूल डूड्स की जुबान जरा बहकने लगी, और जैसा इनके साथ होता है, हिन्दू परंपरा, धर्म आदि का मज़ाक उड़ाने लगे । कूल डूडनियां भी खिलखिलाकर हँसकर उनका उत्साहवर्धन करने लगी। बाकी कुछ बोल नहीं रहे थे, लेकिन लड़कियों को हँसता देखकर वे भी जरा जरा हंसने लगे । म्लेच्छ लड़का शांत था, इसमें जुड़ नहीं रहा था। अपने मोबाइल से उस वॉटरफॉल के फोटो ले रहा था।
दोस्त के पुत्र ने कुछ समय ये झेला, फिर बोल पड़ा। पूछा, क्यों मज़ाक उड़ा रहे हो, इस से क्या हासिल होगा । कूल डूड्स बोले, जो सही नहीं उसका मज़ाक उड़ाना चाहिए, उस से ही बदलाव आता है । थोड़ी सी बहस हुई, दो चार मुद्दों पर वे कुछ सही जवाब न दे पाये फिर भी अपनी ही हाँकते रहे, डूडनियाँ भी उनका साथ देती रही ।
अचानक मित्र पुत्र बोला कि सुधार तो भारत के सभी धर्मों में जरूरी है क्या नहीं ? कूल डूड्स पर शराब का नशा भारी था या विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली बात होगी, क्योंकि उन्होने हामी भरी । इसने तुरंत कहा, हरियल भी तो इस देश में हजार साल से अधिक समय से है, और बुराइयाँ उन में भी कम नहीं । बोलोगे कुछ उसपर भी, इस हमीद के सामने ?
कूल डूड्स दायें बायें देखने लगे, हमीद शांत था, कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था। कूल डूड्स बहाने देने लगे कि हम तो उसमें कुछ जानते नहीं तो क्या बोले । डूडनियाँ भी उनकी तरफ से बोलने लगी, मूड खराब न करने की बातें करने लगी। लेकिन ये डटा रहा, बोला देखो मोबाइल में इंटरनेट तो है, यहाँ सिग्नल भी है, अभी रिफ्रेन्स निकाल देता हूँ, ज़ोर से बस पढ़ोगे हमीद की हाजिरी में ? टिप्पणी भले ही ना करो।
कूल डूड्स फिर से दायें बायें, डूडनियाँ भी चिचियाने लगी मूड खराब करने को लेकर । इसने शांति से मोबाइल जेब में रखा, और किसी को कुछ समझ आए इसके पहले दोनों कूल डूड्स को दोनों हाथों से कसकर झापड़ मारे। अगर इसके कहने के मुताबिक वे सिंगल पसली थे तो गिर पड़े होंगे, क्योंकि ये हट्टा कट्टा सांड है । फिर वो वहाँ नहीं रुका, चला आया । इस प्रसंग के बाद हमीद से दोस्ती यारी में कोई खटास नहीं, पहले जैसे ही हाय हॅलो चालू है, लेकिन कूल डूड्स इसे देखकर कट लेते हैं और कूल डूडनियों ने इसकी बुराई की है और करती रहती है कि ये कूल डूड नहीं है, संघी है । वैसे ये कभी संघ शाखा में गया हो ऐसा मुझे तो लगता नहीं, फिर भी ये लड़के लड़कियां उसे संघी कहते हैं, क्योंकि उनके मत में संघी एक गाली है ।
किस्सा समाप्त । चूंकि इसे बोधकथा कहा तो बोध तो वैसे लिया ही होगा आप ने फिर भी बताना मेरा कर्तव्य है । बोध ये है कि अगर हिन्दू अपनी परंपरा का अपमान सहने से मना करता है तो वो “कूल” नहीं है और अगर हिन्दू ज्यादा मुखर हुआ तो इंटोलेरंट, मूड बिगाड़नेवाला है, और अगर उससे भी आगे जाकर कहीं वो प्रखर हुआ तो उसे संघी घोषित किया जाता है । मतलब अगर हिन्दू को अपने हिन्दू होने पर शर्मिंदा होना चाहिए, नहीं तो उसे संघी कह दो । याने असली गाली तो “हिन्दू” है, आज सभी हिंदुओं का रोष जगाना महंगा पड़ेगा इसलिए ‘संघी’ कहा जाता है, कल परिस्थिति बन जाएगी तो ‘हिन्दू’ ही गाली बन जाएगी, और इसमें किसी को कोई अपराधबोध नहीं होगा और न ही ये politically incorrect कहलाएगा।
मुद्दा क्र 2, ये आक्रांता विधर्मियों को कुछ नहीं कहते। इन्हें उनके दोष नहीं दिखते जब कि सब को वे दिख रहे हैं । अगर इन्हें दिखा दिये तो आप को संघी का तमगा देकर चुप करने की कोशिश की जाएगी या फिर अगर आप नहीं माने तो रफा दफा कर दिये जाओगे और इतिहास की पुस्तकों से वे दोष साफ करने की कोशिश की जाएगी।
मुद्दा क्र 3, हमें उसी स्थिति में आना होगा जो इन्हें हमारे बारे में कुछ कहने से पहले बायें दायें देखना पड़े । अब जैसे वे कूल डूड्स मेरे मित्र के पुत्र को देखकर कन्नी काटते हैं, लगता है उसने अपने कृति से आवश्यक बोध कराया है ।

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