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यूरोप व रूस में-
राजा xyz लंबाई में तकरीबन छह फीट, शरीर से ताकतवर लेकिन कंधे कुछ झुके हुए थे। दिखने में ठीक ठाक लेकिन आंखें मिचमिची है।
वास्तविकता का विश्लेषण:– राजा xyz कोई तुर्रम खान व्यक्तित्व नहीं थे।
भारत व चीन में-
महाराज xyz जब चलते हैं तो लगता है पूरे विश्व का वजन उनके ऊपर है। वे सदैव विनम्रता से झुके रहते हैं और सिर झुकाकर बात करते हैं।
वास्तविकता का विश्लेषण:- महाराज कुबड़े हैं।
राजा का नाम नहीं लिखा गया  क्योंकि यूरोपियन राजा के नाम से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन आपमें से कई भारतीय राजा के कूबड़ को भी विदेशी षड्यंत्र बताकर उन्हें कामदेव बनाने पर अड़ जाएंगे।
भारत में न तो इतिहास लिखने का शऊर रहा है और न समझने का क्योंकि आज हम सत्य से भागने वाली भगोड़ी कौम हैं जो यह विचार ही नहीं करना चाहती कि तमाम वैज्ञानिक व तकनीकी उपलब्धियों व विश्व के श्रेष्ठतम दर्शन व अध्यात्म परंपरा के उपरांत भी हम हजार वर्ष तक पददलित क्यों हुये।
पश्चिम की भौतिक सभ्यता की आज पूरे विश्व में विजय हुई है तो इसके मूल में है उनकी विचार स्वतंत्रता, सत्य को समझने और उसे स्वीकार करने की क्षमता जिसे हम पिछले हजार वर्ष में खो चुके।
आज कोई सतीप्रथा, देवदासी प्रथा को कुप्रथा कहे तो उसे स्वीकार करने के स्थान पर झुठलाने जुट जाते हैं। किसी भी ऐतिहासिक व्यक्तित्व का आकलन अपने जातिवादी पूर्वाग्रहों से कर रहे हैं।
कोई विश्वामित्र को गरिया रहा है तो कोई कोई मानसिंह की तारीफों के पुल बांध रहा है।
सभी के अपने जातीय, सांप्रदायिक पूर्वाग्रह हैं जिनमें तथ्यों, तर्कों, अध्ययन का कोई मूल्य नहीं है।
आपके जीवन भर के अध्ययन को कोई दो कौड़ी का लौंडा आकर ‘क्रिप्टो’, ‘वामी’ कहकर नकार जाता है।
इतिहास सिर्फ कमजोर की लुगाई होकर गाँव भर की भौजाई बनकर रह गया है।

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