भोपाल गैस त्रासदी – 1984 में अमेरिकन कंपनी यूनियन कार्बाइड की गलती से भोपाल गैस त्रासदी हुई. सरकारी आँकड़ों के अनुसार चार हज़ार लोग मारे गये, पाँच लाख लोग प्रभावित हुवे. पर्यावरण और इंफ़्रा का जो अकल्पनीय नुक़सान हुआ वह अलग.
अदालत ने कुल जमा पचास करोड़ का हरजाना लगाया कंपनी पर जो 24 साल बाद 2008 में पीड़ितों को मिला. मोटा मोटा समझिए प्रति प्रभावित व्यक्ति हज़ार डालर भी नहीं मिले और वह भी पचीस साल बाद. इतने साल लगे सुप्रीम कोर्ट को पहला न्याय देने में.
भारत सरकार ने अदालत से रिक्वेस्ट की थी कि एक्चुअल मरने वाले 20000 + हैं. माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है कि हरजाने की रक़म नहीं बढ़ाई जा सकती.
अक्सर यदि मैं अमेरिकन सिस्टम के बारे में लिखता हूँ तो एक फ़ौज आ जाती है विशेष कर सामान्य आम जनता की – अमेरिकन सिस्टम ख़राब है, सर्वश्रेष्ठ भारतीय सिस्टम है. अमेरिका में इससे काफ़ी छोटे deep water होराइजन आयल स्पील केस जिसमे 11 लोगों की मृत्यु हुई थी चार साल के अंदर कंपनी को 6500 करोड़ डालर हरजाना देना पड़ा था. यहाँ आप जैसे चार हज़ार की मौत की क़ीमत 24 साल बाद पचास करोड़ डालर.
चालीस साल हो गये न्याय तक न मिला. मी लार्ड बिजी हैं. यह वही न्यायाधीश हैं जो पाँच पाँच की बेंच बना कर एलजीबीटी अधिकारों के लिए स्वयं केस लेकर अब संविधान परिवर्तन करने वाले हैं. जो उनका कार्य नहीं है वह करने वाले हैं गे लेस्बियन के हितों की रक्षा के लिए पाँच पाँच न्यायाधीश बैठने वाले हैं क़ानून बनायेंगे. लेकिन हमारे आपके जैसे आम जनता के केस में चालीस साल में न्याय नहीं दे पाते हैं. और न्याय जिन्हें मिलता भी है वह है हज़ार डॉलर, जितना इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव एक वेटर को टिप दे देते हैं.