Home विषयसामाजिक आपका आधार नम्बर क्या है?

आपका आधार नम्बर क्या है?

रंजना सिंह

by रंजना सिंह
149 views

आपसे जब आपकी पहचान पूछी जाती है तो आधार कार्ड नम्बर बताते हो, पर आपको अपने आधार का वास्तव में ज्ञान है? किसी शुभ संकल्प के दौरान पंडित जी जो मंत्र बोलते हैं उसके कुछ शब्दों का उल्लेख कर रहा हूँ। उल्लेख का प्रयोजन इतना बताना है कि आपका वास्तविक आधार कार्ड क्या है?
“जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे, आर्यवर्ते, श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे, अमुक पुण्य क्षेत्रे, अमुक संवत्सरे, उत्तरायणे अमुक ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे अमुक मासे अमुक पक्षे प्रतिपदायां तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा, ..पूजन करिष्ये।”
इसमें कुछ शब्द इधर उधर हैं पर मूल भाव और कथ्य यही है।
यह केवल संकल्प मंत्र नहीं, यह हमारी आइडेंटिटी है। हमारी पहचान है। हमारा वास्तविक आधार कार्ड है। इस संकल्प मंत्र में इतिहास भूगोल समाजशास्त्र और मानवमात्र के प्रति मंगल कामना सब कुछ सम्मिलित है।
थोड़ा भौगोलिक स्थिति को जान लेते हैं। जम्बू द्वीप यूरोप और एशिया का मिला जुला खण्ड है, सनातन सभ्यता का विस्तार है। जम्बूद्वीप के साथ प्लाक्ष द्वीप और अन्य महाद्वीपों की बात कोरी गप नही है। महाभारत के भीष्म पर्व को पढ़ते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय सम्पूर्ण पृथ्वी के आकार को ऋषियों ने जान लिया था, संजय, धृतराष्ट्र से कहते हैं (भीष्म पर्व, महाभारत 6/5/17) सुदर्शन नामक यह द्वीप अर्थात् पृथ्वी एक चक्र की भांति गोलाकार स्थित है और जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों (भागों) में पिप्पल और दो अंशों में विशाल शश (खरगोश) दिखाई देता है। महाद्वीप के बाद भारत वर्ष, फिर आर्यावर्त फिर प्रान्त, जनपद, क्षेत्र, गांव इत्यादि का ज्ञान, समय देशांतर संवत्सर का उल्लेख यह बताता है कि संकल्प बीज का महावृक्ष कितना अद्भुत है।
सवाल यह उठता है कि वह सब ज्ञान, स्वाभिमान, समृद्धि का क्या हुआ? इसका उत्तर है कि हमने अपनी कद्र ही नही की, अपने ज्ञान को कर्मकांड मात्र तक सीमित कर लिया, ज्ञान के केंद्र मंदिरों को डेढ़ हाथ का बनाकर घर मे स्थापित कर लिया, आचार्य गणों को लालची, दरिद्र, कहकर उपहास किया, ब्रह्म ज्ञान को झूठे व्यापारिक ज्ञान में तथाकथित पुरोहितों ने बदल दिया। हमने अपनी व्यस्वथा छोड़ दी, अपनी शिक्षा पद्धति, चिकित्सा पद्धति, उपासना पद्धति सब छोड़ रहे तो ऐसे में आपका अपना क्या रहा?
अपनी पहचान के प्रति सचेत होइए, अपने ज्ञान के प्रति सचेत होइए, जम्बू द्वीप चला गया, भारत वर्ष विभाजित हो गया, आर्यावर्त की कोई पहचान बची नही। इतने के बावजूद यदि आप चेते नही तो आपको अपनी नष्ट होती संस्कृति पर रोने कलपने का कोई अधिकार नही। इस बात को पहले भी मैंने आपके समक्ष रखा था, पुनः रख रहा हूँ क्योंकि आपका ज्ञान न केवल आपके लिए कल्याणकारी है वरन सम्पूर्ण मानवता इससे पुष्ट होगी। यही वह भाव है, वह पाथेय है हब हम कहते हैं विश्व का कल्याण हो प्राणियों में सद्भावना हो।

Related Articles

Leave a Comment