Home विषयइतिहास एक थे शहीद भगत सिंह

एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही शरीर में सनसनी दौड़ जाती है।

एक ऐसा नाम जो इस राष्ट्र की तरुणाई का पैमाना है, कि एक भारतीय युवा कैसा होना चाहिये।
एक ऐसा नाम जो राष्ट्र हेतु आत्मबलिदानी परंपरा का चरम प्रतीक है।
भगतसिंह एक ऐसे चमकते सितारे हैं, जिसकी विरासत पर राष्ट्र को नकारने वाले साम्यवादी भी दावा करते हैं।
यों तो HSRA के सभी सदस्य ही भारत की आजादी के लिए मरने-मारने का जिगर रखने वाले जियाले थे लेकिन भगतसिंह व आजाद की बात थोड़ी अलग थी।
आजाद जहाँ बेहतरीन रणनीतिकार व नेतृत्वकर्त्ता थे वहीं भगतसिंह जबरदस्त विचारक व संगठनकर्ता थे।
भगतसिंह के महत्व को अगर कोई सबसे ज्यादा जानता था तो वह थे आजाद और इसीलिये वे उन्हें ‘एक्शन’ से दूर रखने की कोशिश करते थे।
आजाद की इस बात को सुखदेव ने नोट किया और जब उन्होंने असेंबली में बम विस्फोट के लिए भगतसिंह का नाम खारिज कर दिया तो सुखदेव ने इसकी भड़ास भगतसिंह पर निकाल दी जिससे व्यथित होकर भगतसिंह इस ‘एक्शन प्लान’ में अपने नाम पर अड़ गए।
आजाद जानते थे कि भगतसिंह के जाने के बाद संगठन टूट जाएगा और उन्होंने HSRA के सुप्रीम कमांडर की हैसियत से भगतसिंह का नाम काटा था पर वह समझ गए कि भावुक भगतसिंह को सुखदेव की बात चुभ गई है, इसलिये उन्होंने मन मारकर भगतसिंह को अनुमति दे दी।
आगे सुनवाई पूरी होने पर उन्होंने भगतसिंह को छुड़ाने का पूरा प्लान बना लिया लेकिन देश भर में युवा जागृति को देखकर भगतसिंह ने आत्मबलिदान का निश्चय कर लिया और छुड़ाने के प्लान हेतु ‘संकेत’ देने से इनकार कर दिया।
तो ये थे भगतसिंह जिन्होंने फांसी का फंदा सिर्फ इसलिए चूम लिया कि उनकी फांसी से देश का युवा जागे और उनके शब्दों में घर-घर महाराणा प्रताप व करतार सिंह सराभा जैसे बलिदानी पैदा हों।
भगतसिंह जैसे जबरदस्त पढ़ाकू विचारक पर वामपंथियों ने सिर्फ इसलिये दावा ठोक दिया कि वे अपने आखिरी घंटों में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे।
बहरहाल एक नया दावा सामने आया है जिसके अनुसार भगतसिंह को जानबूझकर हाईलाइट किया जाता है।
यह दावा है गोपालगंज के जन्मनाजातिवादी गिरोह का।
इन घृणित लोगों के अनुसार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के चित्रों में भगतसिंह का चित्र इसलिये #बड़ा बनाया जाता है क्योंकि वे ‘अब्राह्मण’ थे।
इन घिनौने जन्मनाजातिवादियों का ये भी कहना है कि चंद्रशेखर आजाद को भी भगतसिंह के सामने छोटा दिखाया जाता क्योंकि वे #जनेऊधारी पंडित तिवारी थे।
अपने बचपन से ही धागे को जनेऊ के रूप में डालकर, होंठों पर स्याही से नकली मूंछें बनाकर उन्हें उमेठते और सिर पर अपने मिलिट्रीमैन भाई का हैट लगाकर स्वयं को स्कूली जीवन में ‘आजाद’ और ‘भगतसिंह’ फील करते फिरते, मेरे जैसे लोगों ने कभी ऐसा सोचा ही नहीं था कि भगतसिंह व आजाद की जाति क्या थी?
इन जैसे लोगों के कारण बच्चे अब ये तो जान सकेंगे कि भगतसिंह एक ‘नास्तिक जट्ट सिख’ थे एवं राजगुरु व आजाद ‘ब्राह्मण’ थे और मनोज मुंतशिर जैसे अवसरवादियों की दृष्टि में तो आजाद तो बाकायदा ‘तिवारी और ऊपर से जनेऊधारी’ थे।
देखते जाइये अब यह गोपालगंजी जन्मनाजातिवादी गिरोह कुछ दिनों में भगतसिंह को इनके स्वपरिभाषित तथाकथित ‘सनातन’ का शत्रु भी घोषित कर देगा क्योंकि वह #नास्तिक जो थे।
सोचता हूँ कि आजाद, भगतसिंह जैसों ने व्यर्थ ही अपने बलिदान दिये जबकि ऐसे नीच, भूमि के भार, इस राष्ट्र की भूमि पर जन्मने थे।

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