आज की तारीख़ में सबसे ज़्यादा “बहस” के “दो” ही मुद्दे है, पहला “नरेंद्र मोदी” 2024 के चुनाव में सत्ता में कैसे वापसी करेंगे और “महेंद्र सिंह धोनी” 2023 के IPL के बाद क्या यहाँ भी खेलना छोड़ देंगे?
“नरेंद्र” और “महेंद्र” ये “दो” नाम ऐसे नाम है जिनके इर्द-गिर्द “पब्लिक डिस्कोर्स” जन्म लेता रहता है और अपने व्यक्तित्व के मुताबिक यह दोनों नाम हर तरीके के “पब्लिक डिस्कोर्स” को तोड़ते रहते है।
बहरहाल यहाँ “मुद्दा” “महेंद्र सिंह धोनी” का है। एक ऐसा नाम जो चाहे और अनचाहे रूप में सुर्खियों में रहता है। आप इस नाम से लाख नफरत कीजिए लेकिन यह उसके “व्यक्तित्व” का ही प्रभाव है कि वह आपकी चर्चा का “केंद्र” बना रहता है।
क्रिकेट को “जेंटलमैन गेम” कहा जाता है। “गांगुली काल” में जो टीम थी उस टीम में “सचिन” “द्रविड़” “लक्ष्मण” और “कुंबले” जैसे नाम थे, जो क्रिकेट को उसके नाम के मुताबिक खेलते थे, यानी “जेंटलमैन गेम”।
पीढ़ी बदल गयी, अब नए लड़के आए, तेज़ तर्रार थे, फुर्तीले थे, लक्ष्य का पीछा करते हुए दबाव नहीं झेलते थे, देश और विदेश दोनों जगह मैच जीतते थे, लड़ाका थे, जुझारू थे पर क्रिकेट को उसके नाम के मुताबिक नहीं खेलते थे, यानी “जेंटलमैन गेम”।
लेकिन एक “महेंद्र सिंह धोनी” है, जिन्होंने “सचिन” “द्रविड़” “लक्ष्मण” और “कुंबले” की उस “परंपरा” को आगे बढ़ाया।
मैं यहाँ यह ज़िक्र नहीं करूँगा कि उन्होंने भारत के लिए क्या किया और क्या जीता, वह भारत के लिए कितने फलदायक रहे? इसका जिक्र इतिहास करेगा और इतिहास निकट ही है।
मैं बतलाना चाहता हूँ कि आज की तारीख़ में “महेंद्र सिंह धोनी” एक ऐसा नाम है जो क्रिकेट को उसके नाम के मुताबिक खेलता है, यानी “जेंटलमैन गेम”।
किसी भी नौजवान खिलाड़ी की तुलना में वह अपने “खेल” को लेकर अधिक प्रतिबद्ध है, अधिक मेहनती है, अधिक ईमानदार और “कूल” भी। उन्होंने “भारत” के लिए क्या जीता, कितनी ट्रॉफी एकत्र की, कितने प्लेयर्स को सँवारा। इसका उन्हें गुमान नहीं।
2007 में द्रविड़ की कप्तानी में जब भारत 50-50 के वर्ल्ड कप के पहले ही राउंड में बाहर होकर आया था तो क्रिकेट प्रेमियों के दिल पर गहरी खरोंचे उभर आई थी
यह वही साल था, जब महेंद्र सिंह धोनी ने 20-20 विश्व कप जीताकर, क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर मरहम लगाया था और 2011 का 50-50 वर्ल्ड कप तो इतिहास है।
कप्तानी मिलने पर जहाँ एक तरफ आज के लड़के “ज़िद्दी”, “घमंडी”और “मनमर्ज़ी” वाले हो जाते है, अपने दिनों में यह “इंसान” विनम्र रहा और हर जीत के साथ “समंदर” की माफ़िक “शांत” होता रहा और इस समंदर के आगोश से भारत न जाने कितनी ट्रॉफी पर अपना कालजयी नाम लिखवाता रहा।
कप्तानी मिलने पर उसने ख़ुद को एक ऐसी भूमिका में सीमित कर लिया जहाँ से टीम जीतती रही लेकिन उसका व्यक्तिगत कैरियर 30-35 रनों की पारियों पर आकर ही रुक गया। वह चाहता तो वो सब कुछ कर सकता था, जो “सचिन” “पोंटिंग” और “कोहली” ने किया लेकिन नहीं उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसके 30-35 रन पर ही टीम इंडिया जीत जाती थी, यही नेतृत्वकर्ता के गुण होते है कि वह अपना व्यक्तिगत लाभ भूलकर एक “समूह” के लिए आगे आता है।
मैं तब भी उसके साथ था, जब वह जीता। मैं कल भी उसके साथ था, जब वह हारा। मैं आज भी उसके साथ हूँ, जब वह आखिरी ढलान पर है और कल जब 2023 के IPL (शायद) के बाद वह अपना “बैट” रख देगा, मैं तब भी उसके साथ रहूँगा।
धोनी 2023 का IPL खेल रहे है, उनके हर पल को कैद कीजिए क्योंकि इतिहास बेहद ही कम लोगों को साक्षात देखने को मिलता है।
शुभ और कर्मठ नेतृत्व हर पीढ़ी के भाग्य में नहीं होता।
Dr. Rakesh Kumar
Writer