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सैचुरेशन प्वाइंट (अनफिल्टर्ड विचार)

कल उत्तरप्रदेश के एक प्रतिष्ठित नाइट मार्केट में जाना हुआ,वहां चहुं ओर,एक दूसरे से सटे फूड ज्वाइंट्स थे,
जिसमें वेज–नॉन वेज सब अगल बगल बन रहा था,और लोग कुर्सियों पर,गाड़ियों में,बाइक पर, पेड़ के नीचे खड़े या बैठ कर बड़े चाव से खा रहे थे..
एक छोटे 250 मीटर के एरिया में कम से कम 115 से अधिक दुकानें होंगी,जिसमें चिकन श्वारमा की लगभग 20 दुकानें थीं,बार्बिक्यू चिकन की 15, वेज नॉन वेज मिक्स मोमोस की 25
पिज्जा की 10,चाय की 15,पानी पुरी (गोल गप्पे/पुचके/फुल्की/गुपचुप)की 2 और चिकन और वेज बिरयानी की 13 और लगभग 10 कोल्ड कॉफी +ग्रिल्ड सैंडविच और बर्गर की 15..
अब जब आप जाते हैं ऐसी जगह तो कुछ लोगों के भीतर भीड़ की देखा देखी,खाने की इच्छा जाग जाती है,जो एक तरह का पीयर प्रेशर होता है,कुछ लोग जिज्ञासु होते हैं,”आओ चलो आज कुछ नया ट्राई करते हैं।”कुछ सिर्फ़ वहां इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया ऐप्स पर अपनी फूड फोटोग्राफी या रील्स के लिए जाते हैं,वो अक्सर खाने से अधिक,सेल्फी लेते दिख जाते हैं..
उन्हें खाने से कोई मतलब नहीं होता,उनका खाना ठंडा हो,खराब हो जाए,वो थोड़ा सा चख कर बाकी डस्टबिन में फेंक देते हैं,और अधिकतर ऐसे ही लोग शिव जी पर दूध चढ़ाने का विरोध करते आपको ट्विटर और इंस्टा पर दिख जाएंगे।
खैर मुझे वहां घुटन महसूस हुई,इसलिए भी कि एक छोटे से एरिया में नॉन वेज की इतनी दुकानें थीं और 99.9% जेहादियों की ही थीं, और 100% खाने वाले काफ़िर थे। जेहादियों का पर्दा सिर्फ मूंह पर होता है,बाकी सब कुछ खुले में होता है,तो खुले में सब कट और बन रहा था कि वातावरण में बस भुने हुए मीट की स्मेल थी,जो वेज खा रहे थे वो कैसे खा रहे थे,ये वो ही जानें।
इतना भोजन देख कर,मुझे लगा ये कितने वर्ष चल पाएगा?क्योंकि उस शहर में वैसे ही इतने खाने के रेस्टोरेंट और ढाबे पहले से हैं,लोग वही हैं,टूरिस्ट उतने आते नहीं,और जो आते हैं वो नाइट मार्केट में जाने से बेहतर उन रेस्टोरेंट या पुराने स्ट्रीट फूड ज्वाइंट्स पर जाना अधिक पसंद करते हैं जिनकी रेटिंग अच्छी है और उनके किसी बड़े ने उसकी तारीफ़ करी है,पर मैं गलत हूं,इसे सेक्युलर हिंदू खूब चलवाएंगे,क्योंकि ये उनका काफिरों के प्रति कर्तव्य है, जिससे अगर वो मुड़े तो उन्हें बुद्धिजीवी साहित्यिक वर्ग हमारी तरह हुड़दंगी और कट्टर का टैग लगा देगा, कि देखो देखो ये भाई का चारा खराब कर रहा है,ये तो नफरत फैला रहा है,ये तो असहिष्णु हिंदू है जिसकी बात आमिर भाई,शाहरुख भाई ने करी थी,जिसकी बात उर्दुवुड के सेक्युलर हिंदू कलाकार करते हैं जिनके साथ हम कंधे से कंधा मिला कर,
अपनी किताब का प्रमोशन करते हैं।
मैंने रुद्राक्ष से कहा,गाड़ी घुमाओ गंगा के किनारे चलो और आशीष भईया के हाथों की कुल्हड़ वाली चाय और विजय भाई के हाथों का बना पोहा खाते हैं,फिर घर चलते हैं।
मैं नॉन वेज खाने वालों का विरोधी नहीं हूं,अगर वो एक सैनिक हैं,एक बॉक्सर हैं,एक पुलिस वाले हैं,कोई ऐसे हैं जिन्हें आत्मरक्षा के साथ साथ दूसरों की रक्षा करनी है तो उनके लिए वो डायट उचित होगा पर वो भी उबला हुआ न कि मार्केट के एनिमल चर्बी से बने तेल घी में बना, अत्याधिक मसालों में सना और ऊपर से चीज़ या मेयोनीज में डूबा हुआ,वो मात्र हार्ट सर्जन और गैस्ट्रो के डॉक्टर की कमाई का साधन बनेगा,और बन ही रहा है क्योंकि मीट का सेवन करने वाले उसे पचाने के लिए उतना व्यायाम कर नहीं पा रहे,जिस तरह से माहे रमज़ान में पत्थर बाज़ी कर उनके जेहादी साथी मीट को पचाने के लिए मीट को खा कर आई क्रूरता,घृणा,दयाहीनता का प्रदर्शन चहुं ओर कर रहे हैं,वैसा तो कुछ भी नहीं कर पा रहे उनके हिंदू मीट भक्षी साथी,वो तो बस खाते हैं और अपना सारा क्रोध अपने परिवार वालों,अपने पड़ोसियों,सायकिल वाले पे जिसके कारण उनकी महंगी कार पर स्क्रैच लग जाए,कोई ऑनलाइन उनको कुछ कह दे,तो उस पर हावी हो कर,दिखाते हैं,पर जब उनके जेहादी दोस्त पत्थरबाज़ी करते हैं तो ये अपने ही हिंदू साथियों को शांत रहने को कहते हैं।
वो बुद्धिजीवी कहते हैं,कट्टरता मत करो,भगवा ध्वज लेकर शोभायात्रा मत निकालो,जय श्री राम के नारे मत लगाओ,तुम लगाओगे तो मुझे हलाल मीट खिलाने वाला फरहान बुरा मान जाएगा,और फिर वो मजबूर हो कर,पेट्रोल बॉम्ब या पत्थर चलाएगा,क्योंकि तुम लोगों से उन्हें डर लगता है,उन्हें लगता है जैसे गाजर मूली तुम लोग काटते हो,कहीं उन कटे हुए लोगों को और न काट दो,इसलिए वो अपने स्वघोषित मोहल्लों में तुम्हारी शोभायात्रा के गुजरने से घबरा जाते हैं और अपने कटे हुए अंग विशेष की रक्षा हेतु वो ही ईंट चलाते हैं,जिससे वो अपने अंग विशेष को स्वच्छ एवं हाइजेनिक रखते हैं,वो इतने हाइजेनिक लोग हैं कि जब वो अपने बनाए चिकन में स्वाद बढ़ाने हेतु उसके लिए शाहरुख ख़ान की तरह दुआ पढ़ते हैं,और वो दुआ सिर्फ़ और सिर्फ़ हम काफ़िर भाइयों के लिए पढ़ते हैं,अपने लोगों के लिए नहीं,इतनी मोहब्बत है उन्हें हमसे,पर तुम जाहिल हिंदू क्या जानो,अब्दुल भाई का नमक चाहे वो थूक से आया हो या पेशाब से वो हमने खाया है,
हम तो ओवैसी ब्रदर्स के यहां दांत चिहाड़ कर हाजरी लगा चुके हैं,वही ओवैसी जो हिंदुओं के नरसंहार की बात करते हैं,वही ओवैसी जो दिल्ली दंगों में अंकित शर्मा के हत्यारों को छुड़वाने के लिए देश विदेश में चंदा इकट्ठा करते हैं,वो जो पत्थरबाजों को विक्टिम बताते फिरते हैं,हम ने उस ओवैसी के सामने हाथ जोड़े हैं,उनका दुआ फूंकी हुई चाय अपने गले में उतारी है,उसके बाद भी अनेकों हिंदू उसी गले को गेंदें की माला से लपेट देते हैं,क्योंकि हम हैं असली हिंदू,सौम्य हिंदू,सहिष्णु हिंदू,ओरिजिनल हिंदू।
वो बुद्धिजीवी सेक्युलर हिंदू आगे कहते हैं,हम ये हुद्ददंगी हिंदुओं की उद्दंडता बर्दाश्त नहीं करेंगे,ये धार्मिक नारे असली हिंदू लगा ही नहीं सकता,वो तो गांधी जी जैसा होना चाहिए जिन्होंने 1922 में कहा था,”यहां तक ​​कि अगर मुसलमान हम सभी को मारना चाहते हैं तो भी हमें मौत का बहादुरी से सामना करना चाहिए। यदि उन्होंने हिन्दुओं को मारकर अपना शासन स्थापित किया तो हम अपने प्राणों की आहुति देकर,
एक नई दुनिया का सूत्रपात कर रहे होंगे!”
101 वर्ष बाद भी अगर हम गांधी जैसे हिंदू नहीं बन पाए तो लानत है हम पर,हमारे हिंदू होने पर,हमें तो चुपचाप सहन करते रहना चाहिए,हम कहां किसी शाकाहारी हिंदू 27 वर्षीय नवयुवक की बातों में आकर ये कह रहे हैं कि ईंट पत्थर का जवाब बुल्डोजर से देंगे,हम क्यों एक शाकाहारी युवक की सुनें जो 3 वर्षों से लगातार आत्मरक्षा के लिए शस्त्र विद्या और आत्मरक्षा की ट्रेनिंग लेने की बात बार बार कह रहा है,ना हम नहीं सुनेंगे,हम जाएंगे कादिर भाई के यहां मुर्गा हलाल विधि द्वारा दुआ फूंकवाते हुए हौले हौले कटवाएंगे और होली दिवाली पर चाव से खा दारू पी कर किसी हिंदू नेता को ही गलियाएंगे और अपने उदर में मौजूद मसालेदार हलाल मीट से जन्मे “समीर के झोंके” वातावरण में छोड़ते हुए सो जाएंगे,फिर उठेंगे और फिर किसी ऐसे व्यक्ति को गलियाएँगे जो उनके लिए लड़ रहा या लड़ रही है,
अपना सर्वस्व दांव पर लगा कर।
हमने तो समुद्री केकड़े खाने आरंभ कर दिए दिल्ली उत्तरप्रदेश में,जबकि वो केकड़े समुद्री इलाकों में खाए जाते हैं,खाते कौन हैं हमने नहीं देखा,ना अध्ययन किया,बस भुने तले केकड़े को तोड़ा और मेल्टेड चीज़ डिप में डूबो कर खा लिया,केकड़े खा कर केकड़ों की भांति बर्ताव भी करने लगे,केकड़ों को बाल्टी में रखा जाता है,किसी पिंजड़े में नहीं,पता है क्यों?क्योंकि केकड़े दूसरे केकड़े को बाल्टी से बाहर निकलने ही नहीं देते,एक बाहर निकलने का प्रयास करता है तो दूसरे उसे खींच लेते हैं,उसी प्रकार हम क्या करते हैं?जो भी हमारे बीच से आगे बढ़कर जेहादियों,मिशनरियों,कम्युनिस्ट वामपंथियों से लड़ने लगता है,हम उसे खींच कर गिराने में जुट जाते हैं,उसकी कमियां जहां नहीं भी होती हैं,उन्हें ढूंढने में अपनी ऊर्जा लगा देते हैं और जब समय आता है,असली दुश्मन से लड़ने का तो वो ऊर्जा रहती ही नहीं,और लड़े भी क्यों,वो ही मोहम्मद नसीम तो हमें हमारे बच्चों को हलाल बिरयानी खिलाता है,वो भी सस्ते रेट में,फिर वो नसीम अतीक अहमद के साथ मिल हमारे ही हिंदू भाई को दिन दहाड़े मारने में इन्वॉल्व क्यों न हो जाए,हमें क्या,योगी जी ने उसका चिकन बिरयानी का ज्वाइंट बंद करवा के हमारे कितने अब्दुलों के पेट पर लात मार दी,पाक रमज़ान में,हम भी नवरात्र के बाद थूक से गीले रोस्टेड चिकन का स्वाद नहीं चख पाए,सबका कारण ये हिंदू कट्टरता ही तो है,जो इनका आर्थिक बहिष्कार करने को कहती है,ये नहीं जानते जेहादी भाई बहनों का आर्थिक बहिष्कार करने से भारत की इकोनॉमी पर कितना असर पड़ेगा,हमें नहीं मतलब कि चाहे वो चिकन बिरयानी वाला मोहम्मद नसीम हो या चिकन मोमोज वाला मोहम्मद सलमान हो,अपनी कमाई का एक हिस्सा पीएफआई और जमात उलेमा ए हिंद को देते हैं,हमें नहीं मतलब है कि हमारे पैसे से कमाई दौलत का एक हिस्सा हमारी बहन,बेटी को फांसने के लिए और उसके टुकड़े करने के बाद कचहरी से सुप्रीमकोर्ट तक वकीलों से लेकर जजों और जेलर को खिलाने में उसी पैसे का इस्तेमाल करते हैं,हमें मतलब नहीं कि उदयपुर के दो खूनी जेहादी हों या बंगाल,दिल्ली,महाराष्ट्र,राजस्थान,बिहार के पत्थरबाज किसके पैसे के बल पर जेल से कुछ ही महीनों में पैरोल या बेल पर बाहर आ जाते हैं और किसके पैसों से उनके पीछे भी उनके घर वालों को सारी सहूलियत मुहैया कराई जाती है।
हमें सिर्फ़ अपनी ज़ुबान के स्वाद की फिक्र है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ शाकिब भाई के बनाए मटन कबाब पराठे में आता है,सस्ता भी,और स्वाद भी,ऐसा लगता है शाकिब भाई मटन कबाब पराठे को इबादत की तरह बनाते हैं और भर भर के दुआ फूंकते हैं।हमें किसी हिंदू के यहां का झटका मीट नहीं खाना,हमें हिंदू को और मजबूत नहीं करना,क्या करेंगे हम हिंदू को मजबूत करके,वो हमारी किताब का नहीं प्रचार करते,वो हमारे लिए कसीदे नहीं पढ़ते,हमारे लिए उर्दू में शेर नहीं लिखते,हमें फिक्र है अपनी किताब की जिसे हिंदू से ज्यादा हमारे जेहादी भाई खरीदते हैं,और जिनके कारण हमारा घर चल रहा है,उनके विरुद्ध हम कभी नहीं जाएंगे।
हमें नहीं याद रखना समुद्र ने जब श्री राम के धैर्य का सैचुरेशन पॉइंट क्रॉस कर लिया था,तो प्रभु श्री राम ने अपने धनुष बाण से क्या किया था,हमें नहीं स्मरण रखना कि प्रभु श्री कृष्ण के धैर्य का सैचुरेशन पॉइंट जब शिशुपाल ने क्रॉस कर लिया था तो उन्होंने सुदर्शन से क्या किया था,हमें ये सब याद नहीं रखना,ये सब फालतू की बातें हैं,4 दिन की है जिंदगी कट्टर होकर क्या करना है,जैसे पहले आक्रांताओं के सामने कुछ हिंदुओं ने अपनी धोती खोल पजामे पहन लिए थे,हम भी वही करेंगे,क्या पता हमने व्यक्तिगत रूप से अपनी किताब की बिक्री के लिए उनकी दी हुई टोपी पहन ही ली हो,धोती छोड़ उनका बड़े भाई का कुर्ता छोटे भाई का पायजामा पहन ही लिया हो,क्या पता हम रमज़ान की दुआ फूंकी सेवई ओवैसी साहब के यहां सफा कर ही आए हों,और हम तो चाहते है ये हुड़दंगी हिंदू भीड़ में न निकलें,श्री राम का नारा न लगाएं,हमारी तरह हो जाएं,क्योंकि वो होगा तभी तो पूरे भारत में जेहादी अमन कायम होगा,चारों तरफ़ बस इश्क की शायरी होगी,सूफी संगीत होगा,मीट की खुशबू होगी चाहे वो दिलबर नेगी जैसे किसी कट्टर हिंदू को जिंदा जलाने के बाद वाली खुशबू हो,मीट तो मीट है,चाहे हिंदू का हो,चाहे किसी बेजुबान जीव का,
सब बराबर है।
हमें मतलब नहीं कि जब जब जेहादियों की तरफ़ से यूपी के कानपुर,प्रयागराज,फिर दिल्ली,महाराष्ट्र,राजस्थान,कर्नाटक और बंगाल में पत्थरबाज़ी हुई तो उनसे हिंदुओं के घरों को बचाने आने वाले ये ही हुड़दंगी थे,हम जब घरों में टीवी पर बैठ रवीश कुमार की पत्रकारिता की तारीफ कर रहे थे तब वो घायलों को पत्थरों के बीच अस्पताल पहुंचा कर,अपना रक्त चढ़ा रहे थे,हमें मतलब नहीं उन हुड़दंगी हिंदुओं से जो हमारी बच्चियों के सम्मान के लिए लड़ जाते हैं,और चाकुओं से जब गोदे जाते हैं,तो जय श्री राम के नारे लगाते हैं,हमें मतलब नहीं उन हिंदू गुंडों से जो हमारी किताब नहीं पढ़ते पर,हनुमान चालीसा का पाठ कर,पब्लिक प्लेस पर नमाज़ जेहाद के जरिए लैंड जेहाद को तगड़ा जवाब दे आते हैं,हमें मतलब नहीं इन लड़कों से जो अपने पैसों से दीवाली होली पर बस्तियों में खाना,मिठाई और पटाखे दे आते हैं,ताकि बस्तियों में चल रहा कनवर्जन माफिया का जाल दीवाली के पटाखों में जल जाए..
हमें मतलब नहीं कि,हमारे बुद्धिजीवी साहित्यिक वर्ग द्वारा घोषित हुड़दंगी हिंदू गुंडों ने covid 19 के दौर में लोगों के घरों तक ऑक्सीजन पहुंचाया था,हमें मतलब नहीं कि लॉक डाउन में घर घर राशन पहुंचाने का काम ये ही हुड़दंगी हिंदू गुंडे कर रहे थे,जिनसे हमारा बुद्धिजीवी साहित्यक वर्ग घिन्न करता है,हम जब लॉक डाउन में अपने एसी कमरों में बैठ लाइव आ कर साहित्यिक विमर्श कर रहे थे,वीडियो कॉल पर इंटरव्यू दे रहे थे,तब हमारे द्वारा घोषित ये हुड़दंगी लड़के ज़मीन पर उतर लोगों की मदद कर रहे थे,हम ये तब ही करेंगे जब हमारी किताब बिकनी होगी,बिना स्वार्थ के हम किसी के लिए कुछ करने से रहे,निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले सनकी होते हैं,और इन सनकी हिंदुओं से ही तो सनातन को खतरा है,हमें बस सेक्युलर समाज द्वारा मिल रही तारीफों से मतलब है,मतलब है हमें किसी अब्दुल द्वारा मोहब्बत का फरिश्ता घोषित होने से,किसी उर्दू वुड के एंटी हिंदू प्रोपेगेंडा चलाने वाले कलाकार द्वारा गले लगाने से..
हम विरोध करते रहेंगे इन हुड़दंगी हिंदुओं का जब तक भारत में गज़वा ए हिंद ना हो जाए,जब तक मंदिरों में फिर जेहादियों का कब्जा ना हो जाए,हमें मोहब्बत के मजहब से मोहब्बत है,और हम उसकी मोहब्बत में हिंदुओं की हुई नृशंस हत्या पर आंख बंद कर लेंगे,हमारा एक शब्द नहीं फूटेगा जब दशकों से मोहर्रम पर उनके हथियारों से लैस हिंदुओं के मंदिरों के सामने जुलूस निकलेंगे,जब सर तन से जुदा के नारे लगवाए जाएंगे,तब हम कुछ नहीं बोलेंगे,हम नहीं बोलेंगे जब साल के 365 दिन,दिन में 5 दफे,लाउड स्पीकर से वो चिल्लाएंगे,वो जब हमारी किसी बहन बेटी को बक्से में, फ्रिज में,ड्रम में,कार्डबोर्ड के बॉक्स में फेंकेंगे,तब हम नहीं बोलेंगे,हमारा सारा ज्ञान केवल #राम_नवमी के प्रभात फेरी,और #हनुमान_जन्मोत्सव की शोभायात्रा धूमधाम से निकाले जाने पर निकलेगा..
इन जैसे एक तरफा सेक्युलर बुद्धिजीवी किताब बेचू धूर्त कौम के हाइना को अपना हीरो जिन्हें बनाना है वो शौक से बनवाएं,स्मरण रखें कटों हुए लोगों के द्वारा काटे जाने का उनकी स्टॉक होम सिंड्रोम वाली फैंटेसी पूरी हो जाएगी इंशाल्लाह करते करते.!
जिनको मेरी तरह घुटन होती है,इन दो मुहें सर्पों के झुंड से,जो सीएए एनआरसी के समय शाहीन बाग वालो को अपना मौन समर्थन देते हैं,जो हिंदू विरोधी लेखक लेखिकाओं के पैरों में गिर जाते हैं,जो उर्दुवुड के आईएसआई द्वारा पाले जा रहे भांडों की चरण रज और फूंकी हुई दुआ मूंह में कैच करते हुए पाए जाते हैं,वो लोग अपना विरोध करें और खुल कर करें,अपने बीच ऐसों को पनपने न दें,उनको सम्मान न दें,नहीं तो ये आपके बच्चों को कटे हुए कसाइयों का निवाला बना देंगे,और आप आह दद्दा वाह दद्दा करते करते राख में मिल जाएंगे.!
आपको जब कोई हुड़दंगी कहे,पूरे ज़ोर से जयकारा लगाइए
ताकि उनके बिलाल द्वारा गिफ्ट किया पायजामा पीला और अब्दुल द्वारा दिया कुर्ता गीला हो जाए..
आपके साथ लंका में हुडदंग मचाने वाले हनुमान जी हैं
आप श्री राम की वानर सेना हैं,
बिना डरे बिना हिचके बोलिए:

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