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जब महादेव ने कोढ़ी का रूप लिया

मधुलिका शची

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दादी हमें देवासुर संग्राम की कथा सुना रही थी, जब दादी ने बताया कि संगम में भी अमृत की कुछ बूंदें गिर गयी थी जिसके कारण यहां भी कुम्भ लगता है और लोग संगम में स्नान करके पापमुक्त होकर स्वर्ग की प्राप्ति करते हैं ।
बाल मन मेरा दादी से पूछ बैठा कि दादी ..! ये बताओ अगर संगम में नहाने मात्र से ही सबको स्वर्ग मिल जाता होगा तो सब स्वर्ग चले जाते होंगे…!!! भगवान जी के पास सबको रखने की जगह कहाँ होगी ..? और सबको अगर भगवान जी रख लेंगे तो फिर खुद कहाँ रहेंगे ….?
क्लास 4 में थी उस वक़्त मैं , दादी की आदत थी जब भी मैं ऐसे प्रश्न करती थी तो वो मुझे तुरन्त अपनी गोद में बिठा लेती थी और थोड़ी देर तक चुम्बन लेकर दुलारने के बाद अपनी बात शुरू करती थी।
दादी ने कहा , अच्छा सुनो एक लोक कथा…
हुआ क्या कि एकबार भगवान भोलेनाथ कैलाश में ध्यान लगाए बैठे थे तभी माता पार्वती नाराज होकर उनके पास आकर बैठ गयी। भोलेनाथ ने माता पार्वती को जब मुंह फुलाये हुए नाराज अवस्था में देखा तो बोले ; क्या बात है देवी ..!! हमसे कोई त्रुटि हो गयी जो आप इतनी नाराज हैं…
माता ने दूसरी ओर मुख करके कहा : आप तो यहां तपस्या में मग्न बैठे रहते हैं जबकि मैं अकेले अकेले बहुत ही ऊब जाती हूँ , ऐसा भी नहीं करते आप कि हमें संसार घुमाने ले चलें..!
ऐसा बोलकर माता फिर मुंह फेरकर दूसरी ओर बैठ गयी। भोलेनाथ मुस्कुराकर बोले ; चलिए ठीक है आज भ्रमण पर चलते हैं। भोलेनाथ ने माथे पर भस्म लगाया और नाग का जनेऊ पहनकर माता को संसार का भ्रमण कराने कैलाश से निकल पड़े।
कई स्थानों पर घूम लेने के उपरांत दोनों ही कुंभ के मेले यानी संगम नगरी पहुंचे। संगम में तीर्थयात्रियों की भीड़ देखकर माता पार्वती ने कहा ; स्वामी .!!! देख रहें हैं संगम में स्नान करने वालों की भीड़ , क्या ये सभी स्नान करने के उपरांत स्वर्ग पाने के लायक हो जाएंगे …?
महादेव ने कहा : हां देवी ,जो भी इस संगम में स्नान करेगा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी पर बड़ी मुश्किल से कोई एक होता है जो संगम में स्नान कर पाता है , क्योंकि लोगों के शरीर तो यहां तक आते हैं पर मन कहीं और ही रह जाता है। अतः जो तन और मन दोनों ही लेकर स्नान करता है उसी को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
माता ने कहा ; मैं देखना चाहूंगी कि कौन स्वर्ग जाता है और कैसे वह तन और मन सहित संगम स्नान करता है।
भोलेनाथ बोले : ठीक है फिर जैसा कहता हूँ वैसा करो
भोलेनाथ ने कोढ़ी का रूप बनाया जबकि माता अपने सुंदर रूप में ही रहीं।
जब स्नान करने आई महिलाएं एक सुंदर स्त्री को इतने बहुमूल्य गहनों में लदे एक कोढ़ी के साथ देखती तो कहती : कितनी सुंदर स्त्री है , इसके गहने तो देखो …
काश मुझे मिल जाये तो मेरा भाग्य लौट आये
जितने भी लोग आते वो पूछ बैठते कि आखिर ये कौन हैं आपके ..?
तब माता कहती ; हमारे पति हैं ये,
कुछ लोग कहते ; कहाँ इस कोढ़ी के चक्कर मे पड़ी हो ,छोड़ो इसको हमारे साथ चलो मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा।
माता पार्वती को लोग अलग अलग नजर से देखते और अलग अलग तरीके का सुझाव देते थे। सब का मन कहीं और ही रहता था , कोई अपने घर की चिंता साथ लेकर आया था तो कोई स्नान करते समय यह सोच रहा होता था कि कहीं उसके कपड़े न चोरी हो जाएं। हर कोई किसी न किसी चिंता में मग्न था, तन और मन दोनों साथ नहीं थे।
तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति वहां से गुजरे , उन्होंने माता को देखा तो मुस्कुराते हुए माता के पास पहुँचे फिर महादेव को एकटक देखते रहे फिर माता से बोले ; बिटिया क्या समस्या है ..?
क्यों उदास हो ..?
माता ने कहा ; क्या कहूँ बाबा , ऐसा संतों ने कहा है कि अगर आज रात बारह बजे मेरे पति को कोई संगम स्नान करवा दे तो उनका कोढ़ समाप्त हो जाएगा पर कोई राजी ही नहीं हुआ और मैं अकेले इनको उठा नहीं सकती ।
बुजुर्ग हँसते हुए बोले ; हे बिटिया , न जाने क्यों तुम्हारे पति में मुझे मेरे महादेव दिख रहे हैं , ऐसा लग रहा है जैसे जटाजूट बांधे स्वयं त्रिलोकी नाथ धूनी रमाये बैठे हों।
माँ पार्वती रोते हुए बोली ; अरे नहीं बाबा, अब आप ही सहारा हो अगर संगम स्नान करवा दो इनको तो इनका पाप कट जाए और मैं पुनः अपने पति को उनके पुराने रूप में पा जाऊं..।
बूढ़े बुजुर्ग बोले ; बिटिया अब मैं भी अशक्त हो चुका हूँ लेकिन फिर भी अपनी यथाशक्ति का उपयोग करके इनको संगम जरूर स्नान करवा दूंगा। ये मेरा संकल्प है ..
बूढ़े बाबा ने जब महादेव को उठाने की कोशिश की तो महादेव एकदम से फूल जितने वजन के होकर ,बूढ़े दादा के कंधे पर बैठ गए। बूढ़े दादा जब चलने लगे तो महादेव उनकी परीक्षा लेने के लिए अपना कोढ़ का मवाद खूब ज्यादा बूढ़े दादा के ऊपर गिराने लगे पर दादा को घिन नहीं आयी बल्कि वो राम-राम जपते हुए सीधे संगम की ओर चलते रहे।
जैसे ही 12 बजे रात संगम में बूढ़े दादा कोढ़ी को लेकर डुबकी लगते हैं तो देखते हैं कि कोई उनके कंधे पर था ही नहीं फिर जब उन्होंने सामने से देखा तो पाया कि भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के साथ उनके सामने खड़े हैं।
भोलेनाथ ने कहा : हे पुण्यात्मा ..! इस कुम्भ स्नान से आपका स्वर्ग पर अधिकार सिद्ध हो गया है , आप तन और मन सहित तीर्थस्थल पर आए हैं अतः इस तिथि को जब आप प्राण त्यागेंगे तो स्वयं इंद्रदेव आपको स्वर्ग ले जाने के लिए आएंगे।
इतना कहकर भोलेनाथ अंतर्धान हो गए।
दादी ने तब मुझसे पूछा , अब समझ में आया शचि कि तीर्थस्नान करने के बाद भी स्वर्ग कौन जाता है ..?

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