Home विषयऐतिहासिक गंगा पुत्र भीष्म का अंत और झूठा सम्मान

गंगा पुत्र भीष्म का अंत और झूठा सम्मान

तत्वज्ञ देवस्य

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कभी कभी जिन्हें आप वर्षों से अपना आदर्श मानते हैं,उन्हें गुरु तुल्य सम्मान देते हैं,आदर,मान देते हैं,फिर कई वर्षों पश्चात अचानक से आपको उनकी सच्चाई पता चलती है,तो एक बार आप यकीन नहीं कर पाते हैं,क्योंकि अब तक आप उनसे उस व्यक्ति का गुणगान करते रहे,जो उन्हें जानते नहीं थे,आप उनसे लड़ते रहे, जो उन्हें,आप से बेहतर जानते थे..
अब जब आपको पता चलता है,जिनसे आप उनके लिए लड़ते थे,वो सही थे और आप गलत..
तो दो बातें होती हैं..
या तो आप अपनी गलती नहीं मानते और उस कालनेमी के लिए जिस तरह का श्रद्धा भाव था,उसको जबरदस्ती सबके समक्ष दिखाते रहते हैं,ताकि आपका कहा ना गलत हो,आप ना गलत सिद्ध हों,क्योंकि कहीं न कहीं उनके सम्मान से आपने अपना सम्मान जोड़ लिया था..
दूसरा ये होता है, कि आप अपनी गलती मानते हैं,
और उनके विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाते हैं,
ताकि दूसरों से वो पाप न हो जो आपसे हुआ..
कभी भी व्यक्ति,विचारधारा से ऊपर नहीं होता..
कभी भी कोई व्यक्ति,धर्म से ऊपर नहीं होता..
कभी भी कोई व्यक्ति,ईश्वर से बड़ा नहीं होता..
ना ही कोई व्यक्ति,ईश्वर की स्तुति या उनकी स्तुति करने वालों से बड़ा होता है..
और अगर वो स्वयं को ईश्वर या ईश्वर से बड़ा समझने लगे,तो उसका अहंकार नष्ट करना ही,
धर्मपथ पर चलने वालों का कर्तव्य होना चाहिए..
और अगर आप अपने कर्तव्य से पीछे हटते हैं..
तो आपका अंत वैसा ही होता है,
जैसा गंगापुत्र भीष्म का हुआ..
वो एक पल में चाहते,तो ध्रुत क्रीड़ा होने से रोक सकते थे,वो चाहते,तो द्रौपदी का चीरहरण होने से पूर्व ही दुशासन का सर धड़ से अलग कर सकते थे,वो चाहते तो दुर्योधन की जंघा को तीरों से भेद सकते थे..
वो चाहते तो न महाभारत होती..
ना दोनों ओर के लाखों योद्धा मारे जाते..
पर उन्होंने स्वयं को कुछ वचनों से बांध रखा था..
धर्म और सत्य का साथ देने का समय आए,
तो वचनों को तोड़ा जाना उचित है..
ये श्री कृष्ण जानते थे..
और पूरी महाभारत में उन्होंने ये ही किया..
धर्म की विजय के लिए नियम तोड़े,मरोड़े और पांडवों की विजय निश्चित करी
और इंद्रप्रस्थ में धर्म की स्थापना करी..
दुर्योधन शायद इस युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता था..
पर जब मांगने की बारी आई तो उसने श्री कृष्ण की नारायणी सेना उनसे मांग ली,
और दूसरी ओर अर्जुन ने स्वयं श्री कृष्ण को मांग लिया..
दुर्योधन के पास श्री कृष्ण की नारायणी सेना थी
पर वो अधर्मी था,इसलिए उसके हाथ पराजय लगी..
अर्जुन के मार्गदर्शक स्वयं सारथी रूप में श्री कृष्ण थे
इसलिए अपने गुरुओं और महारथियों के समक्ष भी उसे और उसके भाइयों को विजय प्राप्त हुई..
नारायणी सेना है आज भी कुछ दुर्योधनों के पास,
और लोगों को लगता है,
दुर्योधन की ही विजय होगी,
तो वो उनके साथ हो लेते हैं..
पर अंत में विजय उनकी ही होगी..
जिनके साथ स्वयं योगेश्वर हैं..!

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