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जातिवाद: एक अधूरा विमर्श

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जातिवाद के विषय पर कुल चार सार्थक प्रश्न आए थे जिनका जवाब देना था.. बारी बारी से.
उनमें से पहला कथन था – जातिवाद बुरा नहीं है, जातिगत भेदभाव बुरा है…
मेरी समझ से यहां समस्या “भेदभाव” शब्द के अर्थ लेने में भिन्नता से है.
भेदभाव का अर्थ क्या समझते हैं? क्या किसी को मारना, पीटना, प्रताड़ित और अपमानित करना, उसको अपने सामाजिक जीवन से एक्सक्लूड करना ही भेदभाव है?
यह सब तो हिन्दू समाज में अब सामान्यतः नहीं होता, इसमें मैं भी सहमति रखूंगा. अगर कहीं दूर दराज में होता भी है तो तेजी से खत्म हो रहा है और उस व्यवहार को सामाजिक स्वीकृति नहीं है. इस मामले में बड़ा से बड़ा जातिवादी भी खड़े होने की जमीन नहीं पाता और उसको मुंह छुपाना ही पड़ता है.
लेकिन मारना पीटना, प्रताड़ित करना भेदभाव ही नहीं, अपराध है. भेदभाव का अर्थ उससे अधिक सरल है, और शब्द स्वयं अपने अर्थ को स्पष्ट करता है… भेद का भाव मात्र रखना भेदभाव है. यह शब्द हमारे व्यवहार से पहले हमारी भावना से संबद्ध है. अगर हम अपनी भावना में भी किसी को अपने से निम्न या तुच्छ समझते हैं तो वह है तो भेदभाव ही, चाहे आपने अपने व्यवहार या शब्दों में उसे स्पष्टतः व्यक्त न किया हो. लेकिन 85% कम्युनिकेशन नॉन वर्बल होता है. हमारे हृदय में जो भाव होता है वह कम्युनिकेट हो ही जाता है और सामने वाला जान जाता है कि हम उसके प्रति क्या भावना रखते हैं.
आर्मी में मेरे एक सीनियर और मित्र कहा करते थे, अगर तुम किसी से अच्छा सम्बन्ध रखना चाहते हो तो उसके प्रति भावना में भी नकारात्मक विचार न रखो, क्योंकि सामने वाला जान जाता है कि आप उसके बारे में क्या सोचते हैं, और आपको बदले में वही मिलता है, अपनी ही भावनाओं का रिफ्लेक्शन मिलता है.
मैं जब जातिवाद के विरुद्ध बोलता हूं तो दूसरों को स्वयं से निम्न या तुच्छ मानने की इस भावना के विरुद्ध बोलता हूं. अगर हम किसी के बारे में यह विचार रखेंगे तो अनायास ही यह हमें बदले में घृणा की फसल देगा. जो भी हिन्दू हैं, उन्होंने कोई बुक ऑफ हेट नहीं पढ़ी, कि उनकी भावना दूसरे के प्रति अकारण ही घृणा की होगी. अगर हिन्दू समाज में आपस में कोई कटुता और घृणा पनप रही है तो उसका कोई आइडियोलॉजिकल कारण नहीं है, सिर्फ एक भावनात्मक कारण है. और वह भावना की शुद्धता से ही दूर होगा. जब तक कोई अपने हृदय में श्रेष्ठता या कटुता का भाव रखे रहेगा, उसे सामने से सौहार्द और प्रेम नहीं मिलने वाला. यह एक “लीप ऑफ फेथ” है जो पूरे समाज को लेना होगा.
पर यह “लीप ऑफ फेथ” तभी लिया जा सकेगा जब आपस में फेथ होगा. अगर हमारा व्यवहार किसी के प्रति सामान्य है, पर हृदय में दुर्भावना है जिसे सामने वाला सेंस कर सकता है तो यह फेथ डेवलप हो ही नहीं सकता. वह यही समझेगा कि आपके व्यवहार का परिवर्तन कोई हृदय परिवर्तन नहीं हैं, बल्कि सिर्फ अवसर का अभाव है.
इस विषय पर सिर्फ निर्मल हृदय से विमर्श किया जा सकता है. जिन्हें प्वाइंट प्रूव करना है और स्कोर बनाना है वे कृपया मेरी वॉल पर इस विषय पर इस विमर्श से दूर ही रहें और अपने आइवरी टॉवर में खुश रहें… अगर यह बात चार लोगों तक भी पहुंची और स्वीकृत हुई तो सार्थक समझूंगा.

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