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सामाजिक और राजनीतिक लोगो के होते Brainwash

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भाई को मूर्ख साबित किया गया, यहां तक कि उपहास की नई परिभाषा ही गढ़ दी गई। बहन को नहीं छोड़ा गया। नशेड़ी है, ड्रग्स लेती है, रात-दिन ड्रग्स में डूबी रहती है। और भी पता नहीं क्या-क्या। जबकि तथ्य यह है कि वह एक संवेदनशील, जिम्मेदार व ममतामयी माता है, बच्चों की परवरिश करने में अधिकतर समय व ऊर्जा का प्रयोग करती थी।
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जितना सुनियोजित तरीके से भाई-बहन को गालियां दी गईं, बदनाम किया गया, कुछ का कुछ घोषित किया गया। साल दर साल बाकायदा व्यवस्थित अभियान चलाया गया। हजारो करोड़ फूंके गए। किताबें लिखवाईं गईं, संपादकीय-लेख लिखवाए गए, बहुत कुछ किया गया। उपहास उड़वाया गया। कई दशक क्रमिक रूप से यही चलाया गया, मजबूती से ठोंकठाक कर स्थापित कर दिया गया।
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आम आदमी के दिलोदिमाग में इस कदर कूट-कूट कर ठूंस दिया गया कि आम-आदमी यह मानने को तैयार ही नहीं रहा कि उसको जो बताया जा रहा है, वह जो परसेप्शन बना रहा है, वह जो प्रि-कान्सेप्शन बना रहा है, वह जिन नैरेटिव्स से प्रभावित हो रहा है, वह जो खुद ही इन सबको आधार बनाकर खुद ही अपना ब्रेनवाश कर रहा है। उसे तथ्यों के आधार पर, ओब्जेक्टिव-दृष्टिकोण से जांच-परख कर लेनी चाहिए, तथ्य भी कैसे मिलते तथ्य व तर्क भी तो गूढ़ता के साथ प्रायोजित किए जाते हैं। सत्ताओं के खेल, बहुत गूढ़ खेल होते हैं, पीढ़ियों की कंडीशनिंग हो जाती है। जाति-व्यवस्था तो शताब्दियों के बावजूद समाज का सबसे गहरा, सबसे मजबूत, सबसे व्यापक कंडीशनिंग बनी हुई है।
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राजनैतिक विरोध का अपना एक अलग चरित्र होता है। जो ऊपर बातें की गई हैं, वे राजनैतिक विरोध के दायरे में नहीं आती हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह सब वर्तमान सम्राट के राजपाट में शुरू किया गया था या शुरू हुआ। वर्तमान सम्राट तो धारा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि यह सब केवल राजनीति में ही होता है। हमारे समाज के परिवारों में ऐसे खेल खूब होते हैं, रिश्तेदार लोग ऐसे खेल खूब खेलते हैं, मित्र लोग खेलते हैं। संपत्ति कब्जाने के लिए, फर्जी-ईमानदार होने का दिखावा करने के लिए, अपने इगो की तुष्टि के लिए, अपनी कुंठाओं के लिए। ऐसे ही और भी बहुत कुछ के लिए ऐसे खेल खेले जाते हैं। यह समाज के अधिकतर लोगों का चरित्र है, यही कारण है कि यदि राजनैतिक पार्टियों का सम्राट का चरित्र ऐसा होता है तो लोगों को अच्छा लगता है, अपनापन सा महसूस होता है। जैसा चरित्र लोगों का होता है, सत्ताओं का चरित्र भी वैसा ही होता है। सत्ताएं लोगों का चरित्र नहीं बनाती, लोग सत्ताओं का चरित्र बनाते हैं। मेरी यह बात बहुत लोगों के ऊपर से बाउंस होती है, लेकिन मैं इस बात को बार-बार कहता आया हूं, कहता रहूंगा।
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नाम भले ही अलग हो, लेकिन देश की पार्टी विशेष व माओ की कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना व पुतिन इत्यादि के काम करने के तौर-तरीके में अंतर नहीं है। बहुत क्यूट लगते हैं वे लोग जो खुद को कम्युनिस्ट कहते हैं, चीन व रूस के भगत हैं, लेकिन सम्राट की पार्टी का विरोध करते हैं। या तो इन लोगों को सम्राट से व्यक्तिगत खुन्नस है या इन्हें चीन व रूस की वास्तविकता का अंदाजा नहीं। दो चार कवियों अनुवादकों व भाषा का काम करने वालों की नजर से या कोई पत्रकार जो दो चार दिन सतही तौर घूम-घाम कर आकर जो भी अंडबंड विश्लेषण कर दे, उसे ही सबकुछ देखने समझने का काम कर लेते हैं।

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