‘द केरला स्टोरी’ के ट्रेलर में धूर्त मुस्लिम लड़की हिंदू लड़की से पूछती है कि कैसा है तुम्हारा गॉड शिवा जो पत्नी के मर जाने पर आम इंसानों की तरह रोता है?
हिंदू लड़की के मन में जिस संदेह का बीज पड़ता है उसकी अंतिम परिणीति उसके इस्लाम में धर्मांतरण के रूप में होती है।
मैंने कई हिंदुओं को ऐसे प्रश्नों से दुष्प्रभावित होते हुये वर्षों से देखा है अतः इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारणों व उसका निदान ढूंढने की कोशिश भी की।
मैंने पाया है कि हिन्दू धर्म के देवमंडल में वैदिक व पौराणिक मान्यता या कहें कि आध्यात्मिक प्रतीकों के मानवीय रूपों में मिश्रण से यह समस्या उत्पन्न हुई जिनके चारों ओर अतिमानवीय चीजों व गाथाओं जैसे कई भुजाओं व सिरों का होना, हजारों वर्षों की आयु, अप्राकृतिक चमत्कार आदि के विवरण ने उन्हें बहुत जटिल बना दिया।
जब आम हिंदू विज्ञान की शिक्षा से दूर था, माता पिता की परंपरा से प्राप्त कहानियों के माध्यम से वह आँख बंद करके इनपर विश्वास करता रहा लेकिन वर्तमान में एक ओर तो हिंदू परिवारों में कहानियों की परंपरा भंग हुई वहीं दूसरी ओर विज्ञान ने उन्हें तार्किक बनाया और ऊपर से हीनताबोध से ग्रसित शिक्षातंत्र।
परिणाम यह होता है कि पहले से सन्देहयुक्त भुरभुरी आस्था तर्क का एक प्रहार नहीं झेल पाती और बच्चा इस्लामिक एकेश्वरवाद के जाल में फंस जाता है।
आप न तो यह भावनात्मक तर्क देकर बच्चों को बहला सकते कि हमारा भगवान तो रोता भी है, हंसता भी है और न ही किसी तार्किक के सामने अपने देवताओं के चमत्कारों को सिद्ध कर सकते हैं।
मैं स्वयं अनीश्वरवादी संदेहवादी हूँ लेकिन पूरे संसार के इस्लामिक-क्रिश्चियन षड्यंत्र राम, कृष्ण, शिव, बुद्ध, महावीर में मेरी आस्था को सुई की नोंक बराबर भी हिला नहीं सकते।
जानते हैं क्यों?
क्योंकि मैं उन्हें भले भगवान न मानूं पर मैं उनके भौतिक अस्तित्व को अपने रक्त में बहता महसूस करता हूँ क्योंकि उनके ऐतिहासिक अस्तित्व के लिए मैं उनके चमत्कारों पर कभी निर्भर नहीं रहा, क्योंकि मैं स्वयं को उनका रक्त वंशज मानता हूँ।
आम हिंदू को तो हिंदू धर्म के इन देवताओं के ऐतिहासिक स्वरूप के विषय में धेला भर नहीं पता कि कैसे ये महामानव ईश्वरत्व प्राप्त कर हमारे पूज्य बन गए तो बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, सर्वेश्वरवाद जैसे जटिल शब्दों के बारे में क्या ही पता होगा।
इसी समस्या को देखकर मैंने वेदों में वर्णित प्राकृतिक शक्तियों के अधिष्ठाता देवताओं को पुराणों में वर्णित देवों से अलग करके उन्हें ऐतिहासिक आधार दिया ताकि एक आम हिंदू बच्चा न केवल हमारे इन दैवी पूर्वजों के ऐतिहासिक स्वरूप को तार्किक रूप से समझ सके बल्कि अपनी बहुदेवपूजक सर्वेश्वरवादी परंपरा को समझ सके जो सेमेटिक एकेश्वरवाद के विपरीत उदार हिंदू एकेश्वरवाद को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करती है।
यों तो #इंदु_से_सिंधु_तक का सारा पूर्वार्द्ध इसी स्थापना को समर्पित है लेकिन एक अध्याय #एकेश्वरवाद_के_प्रणेता में हिंदू देवमंडल एवं आध्यात्मिक विकास की यात्रा को पूर्ण रूप से प्रदर्शित किया गया है।
जब आप स्वयं को जान लेते हैं तो कोई भी आपको विचलित नहीं कर सकता इसलिये बच्चों को उनसे स्वयं उनका परिचय कराइये कि ‘#वे_देवों_के_रक्त_वंशज_हैं।’
इसके बाद कोई मुस्लिम लड़की आपकी बिटिया से ‘भगवान के रोने’ पर सवाल खड़े करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी क्योंकि आपकी बिटिया पूरी ठसक से पलटकर सवाल करेगी-
“हम तो अपने देवताओं के होने के प्रमाण के रूप में तुम्हारे सामने खड़े हैं, तुम्हारे अल्लाह के होने का प्रमाण क्या है?”