Home लेखक और लेखदेवेन्द्र सिकरवार बच्चों_को_क्या_सिखाएं
मुझे अपने बाल्यकाल की याद है जब मेरे पिता प्रति सांय रामायण महाभारत की कथा सुनाते थे।
वे मुझे कभी मंदिर लेकर नहीं गए परंतु प्रतिदिन सांयकाल को घर की आरती में खड़ा करते, दादी के चरण स्पर्श करवाते और मेरे द्वारा मिट्टी के शिवलिंग बनाने पर पीठ थपथपाते।
सोने से पूर्व प्रति सांय बिस्तर पर रामायण की कथा सुनते-सुनते बालक की सहज मनोवृत्तिवश उनसे प्रश्न भी करने लगा था!
चूँकि मैं भोजन न के बराबर करता था और दूध से तो वितृष्णा थी तो इस दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए भीम को उन्होंने माध्यम बनाया।
उन्होंने कहा कि भीम य्ये लंबे चौड़े और बलशाली थे।
उनकी अपेक्षानुसार मैंने पूछा कि इतने बलशाली क्यों थे?
उन्होंने कहा,”क्योंकि वह खूब खाते थे।”
“कितना खाते थे?” मेरे सवालों की श्रृंखला शुरू हो गई जो पिता की इच्छित दिशा में ही बढ़ रही थी।
“ढेर सारी मूँग की दाल, लौकी की सब्जी, तोरई की सब्जी, कद्दू की सब्जी, परवल की सब्जी, ढेर सारा दूध….” पिताजी चतुराई से उन्हीं दाल सब्जियों की बात कर रहे थे जो मुझे नापंसद थीं।
“इतना सारा? कितना होता था ये सब??”मैंने आंखें फाड़कर पूछा।
“लगभग बीस किलो।” पिताजी अपनी रौ में थे।
“बाबा एक बात पूँछूँ?” मैंने उन्हें टोका।
अब तक अपनी इस औलाद की प्रवृत्ति से पूर्ण परिचित हो चुके पिता के कान खड़े हो गए।
“पूछ।” उन्होंने कहा।
“बाबा अगर भीम सेन इतना खाते थे तो पॉटी कितनी देर तक और कितनी करते थे?”
“अभी सो जाओ, कल बताऊंगा।”
मैं अपनी विजय पर मुस्कुराया और आंखें बंद कर लीं।
“ज्यादा बुद्धि की औलाद भी एक मुसीबत है।” बाबा मुस्कुराते हुए बुदबुदा रहे थे।
इसी तरह एक दिन बाबा सृष्टि उत्पत्ति पर पढ़ा रहे थे।
सृष्टि उत्पत्ति का क्रम पेड़ पौधों से होकर धरती, आसामान, चांद, सितारों पर पहुंच गया।
“सूरज चांद सितारों को किसने बनाया? मैंने पूछा।
उन्होंने वही उत्तर दिया जिसे पिछले दसेक हजार साल से पिता देते चले आ रहे हैं।
“भगवान ने।”
इसके बाद मैंने वह सवाल किया जो पिछले दसेक हजार साल से मासूम बच्चे करते आ रहे हैं।
“भगवान को किसने बनाया?”
मेरे पिता नाराज नहीं हुए बल्कि लाड़ से सिर पर हाथ फेरते हुये बोले,”जब तुम बड़े हो जाओ तब इस सवाल का उत्तर स्वयं ढूंढना।”
यही वह बिंदु था जब मेरी क्योरोसिटी का जन्म हुआ और अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहा मैं हिंदू पौराणिक साहित्य की ओर प्रवृत्त हुआ।
हालाँकि उस प्रश्न का उत्तर अभी भी शेष है लेकिन मेरे पिता ने राम कृष्ण सहित हिंदू चरित्रों के प्रति जो आकर्षण उत्पन्न किया और प्रश्न व तर्क की वैज्ञानिक चेतना की जो चिंगारी जलाई वही मुझे तार्किक व वैज्ञानिक हिंदुत्व व उनके दैवीय चरित्रों के मानवीकरण की ओर लेकर आई जिसने मुझे हिंदुत्व के प्रति असीम श्रद्धावान बनाया।
—–
बच्चों को हिंदुत्व से जोड़ना है तो बाल्यकाल में ही उनके प्रश्नों का सामना करें। उन्हें डपटें नहीं बल्कि उनमें हिंदुत्व व हिंदू चरित्रों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करें।
क्योंकि बायलॉजी के अनुसार बच्चे अभी तक उपलब्ध ज्ञान का 94% सिर्फ पांच छह साल तक की आयु में सीख लेते हैं।

Related Articles

Leave a Comment