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सिकंदर_को_लौटाने_का_श्रेय_किसको?

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यह भारतीय इतिहास की विडंबना ही है कि वे हमेशा यूरोपियन इतिहासकारों के नैरेटिव पर नाचते हुए उनपर प्रतिक्रिया मात्र देते हैं जिसमें एक यह भी है कि सिकंदर के प्रत्यावर्तन किसके कारण हुआ?

यूरोपियन इतिहासकार सिकंदर से पुरु की भेंट और दोनों के बीच विश्वप्रसिद्ध वार्तालाप को बड़ा ग्लोरीफाई करते हैं।

भारतीय राष्ट्रवादी इतिहासकार बिना उनके उद्देश्य को जाने प्रतिक्रिया देने लगे कि सिकंदर पोरस से हारा था। सभी राष्ट्रवादी इतिहासकारों का यह मत डॉ हरिश्चन्द्र सेठ के मत पर आधारित रहा है लेकिन कोई भी इतिहासकार दो बिंदुओं पर विचार न कर सका–

1)पश्चिमी इतिहासकार पोरस व सिकंदर की भेंट को इतना ग्लोरीफाई क्यों करते हैं।
2)अगर सिकंदर हार गया था तो पोरस के राज्य से होकर आगे कैसे बढ गया था और वापसी में पोरस के ऊपर फिलिप और फिर यूथेडेमस को कैसे बिठा गया?

वस्तुतः पश्चिमी इतिहासकार सिकंदर द्वारा किये गए एक हत्याकांड को छिपाने के लिए पोरस को अधिक महत्व देते हैं।

इस षड्यंत्र में उन वास्तविक हीरोज की गाथा अनकही रह गई जिन्होंने एक ही दिन में 70 हजार बालकों व स्त्रियों की हत्या होते देखी, राजधानी का विध्वंस देखा और यहाँ तक कि उन्हें अपनी मूलभूमि को त्यागकर सौराष्ट्र में आकर बसना पड़ा जो उनके नामपर आज ‘काठियावाड़ कहलाता है।

इतिहास से अनभिज्ञ कुछ मासूम यह सोचते हैं कि पोरस का गुणगान करने से बैलेंस बन जायेगा जबकि भारत के सबसे सुंदर व सुगठित स्त्री पुरुषों का यह जनपद जो पूरे भारत में विख्यात था, उसका बर्बर विध्वंस सिकंदर ने एकदिन में किया जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ पोरस जिम्मेदार था जिसने सिकंदर के साथ मिलकर उनका अभेद्य व्यूह तोड़ दिया और सत्तर हजार कठों की मृत्यु की पटकथा लिख दी थी।

वस्तुतः यह पोरस नहीं बल्कि सांगल के ये योद्धा थे जिनकी असाधारण वीरता के कारण सिकंदर की सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया था।

विश्व में स्पार्टन्स के बाद अकेली कौम जो यूजेनिक्स के नियमों का पालन करती थी और जिनसे बेहतर #रथी योद्धा पूरे विश्व में न थे और न उनके #रथ_व्यूह का कोई तोड़।

‘अनंसंग हीरोज’:#इंदु_से_सिंधु_तक ऐसे ही अभागे महानायकों की करुण गाथा है जिनके बहाए गये रक्त के लिए दो शब्द भी न लिखे गए।

जानिए नीली आंखों वाली इस अविनाशी कौम के बारे में जिसे यूनानी कहते थे – #कठोई

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