Home नया असुर
चित्र में दिख रहे दरवाजे का खंडहर कोई सामान्य दरवाजा नहीं है।
कभी इस दरवाजे से छः से साढ़े छः फीट लंबे, सुंदर व कठोर शरीर वाले ऐसे भयानक योद्धा निकलते थे जिनकी ख्याति संसार भर में फैली हुई थी।
इस नगर के नागरिकों की संख्या बहुत सीमित हुआ करती थी क्योंकि उसकी अहर्ताएं पूरी करना बहुत कठिन होता था। लेकिन इस नगर के उपनिवेश संसार भर में फैले हुये थे।
यह दरवाजा उस विशाल अभेद्य नगर का एक अवशेष मात्र है जिसकी कथाएं पूरे विश्व में मिथक कथाओं के रूप में प्रचलित थीं।
तांबे और लोहे के अन्वेषक, नौवहन विद्या के माहिर इस नगर के इन योद्धा निवासियों की हुकूमत समुद्रों पर चला करती थी।
भारत पर इनकी विशेष दृष्टि थी।
एक दो बार नहीं बल्कि पूरे चौदह बार उन्होंने प्रयत्न किए परंतु देव और उनकी ही शाखा आर्यों के सम्मिलित प्रतिरोध के कारण उन्हें हर बार लौटना पड़ा।
गुजरात स्थित उनका अंतिम उपनिवेश 1600 bc के लगभग कृष्ण द्वारा नष्ट कर दिया गया और उनके नगर के ध्वंसावशेषों पर बसाई गई द्वारिका।
इसके बाद उन्होंने स्वयं को पश्चिम एशिया के अपने साम्राज्य और उसकी इस राजधानी तक ही सीमित कर लिया।
भारत में इस नगर को कहा जाता था ‘असुरलोक’ और इसके निवासियों को ‘असुर’।
असुरों के विषय में व्याप्त भ्रांतियों को मिटाकर उनके वास्तविक ऐतिहासिक स्वरूप का विवरण दर्ज है #इंदु_से_सिंधु में।
लोकभ्रान्तियों से विपरीत असुरों के पौराणिक विवरणों को इस पुस्तक में न केवल आधुनिक विज्ञान, अभिलेखों व आर्कियोलॉजी के परिपेक्ष्य में ऐतिहासिक रूप में प्रस्तुत किया गया है बल्कि असुरों, राक्षसों, दैत्य, दानव, कालिकेय आदि के संबंधों व उनके विभेदों को भी स्पष्ट किया गया है।
भारत सहित विश्व भर में आज भी उनके रक्त वंशज मौजूद हैं जो विशेष मौकों पर अपने असुर पूर्वजों को याद करते हैं।

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