सोलहवीं शताब्दी तक यूरोप आदि स्थानों पर यही माना जाता था कि हंस केवल श्वेत रंग के ही होते हैं। हमारे यहाँ अभी भी निन्यानबे प्रतिशत लोग यही जानते हैं कि हंस केवल श्वेत ही होते हैं। यह लोगों की एक अति प्रचलित धारणा है अतः लोग सपने में भी हंस को श्वेत का प्रतीक मान कर चलते थे।
परन्तु सत्रहवीं शताब्दी में एकबार कुछ यूरोपीय ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर गए तो वहाँ उन्हें श्वेत हंसों के बीच अचानक एक काला हंस दिख गया। काले रंग का हंस देखते ही उनको बहुत तेज झटका लगा, उनको सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि वे काले रंग का हंस देख रहे हैं। सैकड़ों वर्षों से चलती आ रही धारणाएं अचानक टूटें तो ऐसा ही तीव्र मानसिक झटका लगता है।
इसी घटना को लेकर एक विदेशी वित्त व्याख्याता, लेखक और वॉल स्ट्रीट के पूर्व व्यापारी लेखक निकोलस ने एक पुस्तक लिखा ‘ब्लैक स्वान इवेंट’। इसमें इन्होंने इसी नाम से ‘ब्लैक स्वान सिद्धांत’ का प्रतिपादन कर दिया।
परन्तु यह सिद्धांत हंसों या किसी अन्य पशु पक्षी के बारे में नहीं है बल्कि यह सिद्धांत विश्व के आर्थिक जगत के लिए है। यह सिद्धान्त एक अचानक उत्पन्न हो गए आश्चर्य के रूप में वैश्विक मंदी वर्णन का करता है। निकोलस यह कहते हैं कि ऐसी मंदी को पहले से घोषित नहीं किया जा सकता है। यह अमेरिका की 9/11 की अचानक हुई घटना के बाद अचानक छाई हुई मंदी जैसे दुर्योग की ओर संकेत करता है। इसी में 2008 में अचानक अमेरिकी बैंक ‘लेहमेन ब्रदर्स’ के दिवालिया हो जाने के बाद आई हुई वैश्विक मंदी को भी रखा जा सकता है। ये कुछ उदाहरण हैं जिनको केवल समझने के लिए रखा गया है।
परन्तु संसार के देश ऐसी घटनाओं से सबक लेते हुए पहले से तैयार होने लगे हैं। इसी तैयारी का परिणाम है कि इतने लंबे को-रोना काल के बाद भी मंदी उस स्तर तक नहीं पहुंची जितना उपरोक्त घटनाओं में असर हुआ था। अभी हाल ही में हुए यूक्रेन युद्ध, चीन के बैंकों आदि का दिवालिया घोषित होते चले जाना, अफगानिस्तान व श्रीलंका जैसे देशों का डूब जाना आदि को सभी देश बहुत ही सूक्ष्मता से देख रहे हैँ तथा उसी अनुसार अपने-अपने देश में सजगता बढ़ाए चले जा रहे हैं।
इसको हम इस एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि मानो श्रीलंका ने खाई में गिरती अपनी अर्थव्यवस्था को किसी रस्सी के सहारे रोक रखा था परन्तु वहाँ के लोग उस रस्सी को उतनी मजबूत नहीं कर पाए जो इन वैश्विक हालातों में गिरती हुई अर्थव्यवस्ठा को थामे रख सके। फलस्वरूप वह रस्सी जैसे ही टूटी, श्रीलंका पूरा का पूरा खाई में गिर कर दिवालिया हो गया।
ऐसी ही रस्सियों का प्रयोग इस समय संसार के समस्त देश कर रहे हैं। इसी कारण अमेरिका तक में टैक्स आदि में बढ़ोत्तरी की जा रही है तथा वहाँ आज महंगाई की दर चार दशकों में सर्वाधिक उच्च हो गई है। सारे ही देशों की मुद्राएं नीचे को लुढ़क रही हैं। अर्थव्यवस्था को थामी हुई रस्सियों पर तनाव बढ़ता जा रहा है, संसार के प्रत्येक कोनों में हुई छोटी हलचलें भी इस तनाव पर नकारात्मक असर डाल रही हैं। तथापि सारे देश अपनी-अपनी रस्सियों को मजबूत करने का प्रयास करते जा रहे हैं और वहाँ की जनता अपने नेतृत्व का यथासंभव साथ दे रही है।
श्रीलंका की सरकार से कुछ भारी मूर्खताएं भी हुईं। जिसमें वहाँ के नेताओं द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार, अचानक सम्पूर्ण खेती को ऑर्गैनिक बनाने पर तुल जाना तथा समस्त आयात पर प्रतिबंध लगा देना शामिल रहा। इसमें वहाँ के नागरिकों ने भी बहुत अपरिपक्वता का परिचय दिया तथा वहाँ के नागरिकों ने सम्पूर्ण कानून की धज्जियाँ उड़ा डालीं। परिणामस्वरूप वह रस्सी टूटी ही नहीं बल्कि खंड-खंड हो गई। श्रीलंका को वापस उबरने में अब बहुत समय लगेगा। तथापि वह शीघ्र उबर सकता है यदि वहाँ एक स्थिर और दूरदर्शी सरकार आए तथा वहाँ के लोग परिपक्वता दिखाएं, क्योंकि वहाँ की अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या का दबाव कदाचित कम ही है।
श्रीलंका की रस्सी पुनः बनाई जा सकती है, पर क्या होगा यदि सारे ही देशों की रस्सियाँ धड़ाधड़ एक-एक करके टूटने लगीं तो?
आज संसार के सभी देश आर्थिक रूप में एक दूसरे के सहारे ही खड़े हैं, जिनमें एकाध कमजोर देश के गिर जाने से अधिक असर नहीं पड़ता है, परन्तु यदि शक्तिशाली देश भी एक के बाद एक गिरने लगे तो ऐसे बड़े झटके को न सह पाने के कारण सम्पूर्ण वैश्विक अर्थवव्यवस्था ही एक झटके में धराशायी हो जाएगी। तब इतना विनाश होगा जितना कि दर्जनों महामारी मिल कर भी न कर पातीं।
इसे ही ब्लैक स्वान कहेंगे, यदि ऐसा हो गया तो। लोगों को समझ आने से पहले ही उनके नीचे से धरती खिसक जाएगी। आरबीआई ने अभी हाल ही में ऐसे ब्लैक स्वान के आने की कल्पना की है। यह आ भी सकता है और नहीं भी, परन्तु उससे बचने के लिए तैयारी तो करनी ही पड़ेगी। जहाँ तक मेरा विचार है, भारत में भी महंगाई इसी कारण बढ़ रही है, टैक्स इसी कारण बढ़ाए जा रहे हैं। देश का नेतृत्व मजबूत व दूरदर्शी है, तथा हमारे यहाँ कर्ज लेकर घी पियो जैसी मानसिकता अभी अमेरिका जैसी नहीं है, तो मुझे भरोसा है कि हम संभल जाएंगे। मुझे अपने नेतृत्व पर भरोसा है। दुख बस इतना है कि यहाँ भी कुछ लोग अराजकता के आने की प्रतीक्षा में अराजकता को ही बढ़ा रहे हैं।
इस ब्लैक स्वान (काले हंस) अर्थात खतरनाक महामंदी से आप यदि बचना चाहते हैं तो अपने धन पर सतर्क दृष्टि जमाए रखें तथा नवाबी शौकों से बचें। कुछ दिन थूकी हुई बिरयानी तथा सड़ी-गली लाशों के ऊपर बनी मजारों में जाने का लालच त्याग दें।
श्रावण मास शुभ हो, शिवशंभू हम सबका सहाय हों।
हर हर महादेव…
Post By – इं. प्रदीप शुक्ला
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