Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) अखिलेश यादव, ओबामा व अशोक गहलौत

2007 से 2012 तक UP में मायावती का शासन था। उस पाँच साल के कार्यकाल को आज भी UP के लोग याद करते है। कारण कि उन्होंने अपराध पर एकदम नकेल कस दी थी, क़ानून व्यवस्था एकदम ठीक, व सारी भर्तीया भी एकदम बिना किसी घोटाले के हुई थी।

फिर भी वे 2012 में चुनाव हार गयी।
कारण?

कारण के म्लेच्छ वोट सारे मुलायम सिंह यादव को गए। उसका कारण? उसका कारण ये कि हरियलों को क़ानून व्यवस्था चाहिए ही नहीं। अपराध पर रोक लगाने से तो उन्हें असुविधा होती है। सिर्फ असुविधा ही नहीं खाने पीने के लाले पड़ जाते है। उन्हें तो अराजकता चाहिए। पुलिस की अनुपस्तिथि चाहिए, उपस्तिथि नही।

अखिलेश ने आते ही म्लेच्छों को अराजकता दी भी। हर थाने का वास्तविक SHO स्थानीय इमाम हो गया।

सितंबेर 2013 तक, यानी अखिलेश के शासन के डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश में 140 दंगे हो चुके थे। सितंबेर 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर दंगे हुए व एक पत्रकार की हत्या हुई तब मीडिया को ये सब आँकड़े पता चले। दंगे से अलग अन्य सारे अपराध चरम पर थे। मुज़फ़्फ़रनगर व मेरठ जैसे नगरों में भी हिंदू महिलाओं पर ब्लेड से वार होना आम बात थी।

मुज़फ़्फ़रनगर दंगो के बाद हिंदू जगे। आठ महीने बाद केंद्र में मोदी की सरकार आ गयी तो हरियल भी थोड़े ठंडे हुए। लेकिन हिंदू उस शासन को भूले नहीं, 2017 में भी नहीं व 2019 में भी नहीं।
ओबामा एक वामपंथी है। सारे वामपंथी कहते रहे है कि हरियल देशों में अमेरिका तानाशाहो को सपोर्ट करता है इसलिए आतँक है। ओबामा the dumb ने तानाशाहो को सपोर्ट करना बंद किया। परिणाम? परिणाम ये हुआ कि एक के बाद एक म्लेच्छ देश में सरकारें गिरी व अराजकता फैल गयी कम से कम पाँच लाख लोग मारे गए व well functioning देश विलुप्त ही हो गए है।

जयपुर में दंगे हुए । अलवर में भाईजान लोगों ने एक दलित को पीट पीट कर मार डाला। क्यूँकि गहलोत को हरे वोटरो को नाराज़ नहीं करना है।मीडिया व वामी सोच रहे है कि राजस्थान पर चुप रहेंगे तो किसी को पता नहीं चलेगा।

लेकिन अखिलेश यादव, ओबामा व गहलोत एक बात भूल जाते है। कि अब सोशल मीडिया है। UP के हिंदू समझ गए थे, सोशल मीडिया द्वारा, कि अपराध नहीं बढ़ा है बल्कि जिहाद चल रहा है। राजस्थान के हिंदू जानते है कि जयपुर में हिंदुओ पर आक्रमण हो रहे है व अलवर में एक हिंदू की हत्या हुई तथा न्याय न मिलने से उसके पिता ने आत्महत्या कर ली।

वोट बैंक मैनेजर व ओबामा की तरह के स्मार्ट वामी सोचते है कि हरियल भी वही चाहते है जो काफ़िर चाहते है: नौकरी, छात्रवृति, लोकतंत्र। सत्ता पाते ही वे म्लेच्छों के नकेल खोल देते है। और माफ़िया गैंग वही आरम्भ कर देता है जो उसकी असली काबिलियत है।

पहले मीडिया व बुद्धिजीवी इस सब पर परदा डाले रहते थे। अब सोशल मीडिया के कारण काफ़िर dots connect कर पा रहे है।

मुफ़्तखोर भी जीवन गँवाना नहीं चाहेंगे। इसीलिए वोटबैंक मैनेजर हारते है अब। भाजपा के तुष्टि या तृप्ति के भजन गानेवालों को इससे सीख लेनी चाहिए कि आप एक माफिया गिरोह को कभी भी तृप्त करके बच नहीं सकते। उससे बचने का एक ही सिद्ध प्रसिद्ध उपाय है कि उसे रौंद दो, नेस्तनाबूत कर दो। क्योंकि आप ने उसे जरा भी ढील दी तो वो आप को पूरा का पूरा निगल जाएगा।

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