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हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार

Rajeev Mishra

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मैं जब यह कहता हूं कि एक व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार है, और आपको उसकी बात की समीक्षा, आलोचना और विरोध करने का और यह संवाद एक स्वस्थ वातावरण में होना चाहिए, तो लोग पूछते हैं कि यही बात वामपंथियों पर क्यों नहीं लागू होती? जी हां, यह बात वामपंथियों पर नहीं लागू होती, क्योंकि वे दूसरों को यह अधिकार नहीं देते. 

कोई भी अधिकार Two way traffic होता है. जब आप दूसरे को एक अधिकार नहीं देते तो खुद भी उस अधिकार को खो देते हैं. जब कोई दूसरे के जीवन के अधिकार का सम्मान नहीं करता और उसकी हत्या कर देता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाता है. जब कोई किसी का अपहरण करके उसकी स्वतंत्रता छीन लेता है तो इस अपराध के बदले उसे जेल में डाल दिया जाता है यानी उसकी स्वतंत्रता छीन ली जाती है. एक ऐसे समाज में जो लोग दूसरे के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करते उन्हे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए.

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लोगों को अक्सर यह स्पष्टता नहीं है कि उनका इस्लाम और क्रिश्चियनिटी से विरोध क्या है? आखिर हमारे पास वह क्या विशेष है जो वे छीन लेंगे, जो वे छीनना चाहते हैं? मेरा इस्लाम से विरोध यह नहीं है कि हमारी और उनकी पूजा पद्धति अलग है. खुद हिंदू धर्म के भीतर सैकड़ों हजारों किस्म की विभिन्न पूजा
पद्धतियां हैं, तो हमें एक विभिन्न पूजा पद्धति से क्या समस्या हो सकती है. हमारी समस्या यह है कि वे हमें हमारी पूजा पद्धति की स्वतंत्रता नहीं देते. वामपंथ की भी सबसे बड़ी समस्या यही है…उनके पास एक सामाजिक मॉडल है जिसे वे हर हालत में लागू करना चाहते हैं और जो उनसे सहमत नहीं है वह शत्रु है. यह विचार प्रक्रिया इस्लाम और वामपंथ की विचार प्रक्रिया है और जो कोई भी यह विचार प्रक्रिया रखता है वह बौद्धिक रूप से मुस्लिम और वामपंथी है. अगर वे सत्ता में होंगे तो किसी भी विरोधी को अपने स्वतंत्र विचारों के अधिकार नहीं देंगे, इसलिए उन्हें भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती.

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लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सनातन के अंदर भी किसी विमर्श की अनुमति ना दें. एक व्यक्ति, जिसने स्वयं एक पुस्तक नहीं पढ़ी है वह हर व्यक्ति को बाध्य करे कि वह भी बिना पढ़े, सिर्फ उसके कहने पर उस पुस्तक की निंदा करे, अन्यथा उसे धर्मद्रोही – राष्ट्रद्रोही घोषित कर दे.. वह बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से इस्लाम और वामपंथ का रास्ता ही अपना रहा है. खतना सिर्फ नीचे नहीं होता, उससे बड़ा खतना ऊपर माथे में होता है. ऐसे लोग सिर्फ एक्सिडेंटली हिंदू हैं, सांस्कृतिक रूप से वे मुस्लिम ही हैं.

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अभी क्या स्थिति बनी हुई है? एक मित्र हैं, जिन्होंने यह पुस्तक पढ़ी और उसका रिव्यू मुझसे इनबॉक्स में शेयर किया. पर अपनी वॉल पर नहीं डाला क्योंकि इतनी कॉन्ट्रोवर्सी बना दी गई है कि वे इसे अपनी वॉल पर लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे. रिव्यू वेल इनफॉर्म्ड है और मिक्सड और निष्पक्ष है. लेकिन वे यह बात अपनी वॉल पर नहीं कह सकते क्योंकि नोच डाले जाएंगे. वही मित्र दूसरे की वॉल पर जाकर कह रहे हैं कि किसी ने राजीव मिश्रा को अनफ्रेंड कर दिया, बहुत अनुकरणीय काम किया. उन्हें यह बौद्धिक बेइमानी करने की क्या आवश्यकता हुई? वे मित्र मेरे प्रिय हैं, अच्छे लेखक और स्वतंत्र विचारक हैं. लेकिन आतंकित हैं… कल को वे अगर स्वयं कोई पुस्तक लिखेंगे तो वे भी निशाने पर लिए जायेंगे. यह आतंक उनसे सत्यनिष्ठ चिंतन और लेखन करा पाएगा? जब हर लिखने वाला इस आतंक के साए में लिखेगा कि पब्लिक ओपिनियन और आउट्रेज उनकी भी लिंचिंग कर देगा तो क्या बौद्धिक गुणवत्ता मिलेगी? पिछले दिनों हैरी पॉटर की लेखिका जे के रॉलिंग को वामियों ने कैंसल कर दिया क्योंकि उन्होंने ट्रांसजेंडर के बारे में कुछ कहा जो उन्हें पसंद नहीं आया. आज वे स्वयं किसी हैरी पॉटर प्रोडक्शन के सेट पर नहीं जा सकतीं. अब उनकी लिखी कोई पुस्तक शायद ही छप सके और बाजार में बिक सके. यह वामियों का कैंसिल कल्चर लेकर हम क्यों अपने घर में आ रहे हैं, और वह भी अपने ही लोगों के विरुद्ध? इस बौद्धिक आतंक के साए में मैं तो नहीं जी सकता, आप अपनी जानें. मुझे मेरी स्वतंत्रता ही हिन्दू बनाती है.

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हिंदू धर्म अपनी मूल प्रवृत्ति में मल्टीसेंट्रिक है. यह हमारी मजबूरी नहीं, हमारी ताकत है. हम इसीलिए एवोल्व कर पाए हैं, चिर नूतन रहे हैं. यह प्रॉसेस महत्वपूर्ण है, इसे बचाने की आवश्यकता है. मैं किसी व्यक्ति या इस पुस्तक का समर्थन नहीं कर रहा, मैं इस प्रॉसेस की चिन्ता कर रहा हूं. जो कोई भी हिंदू धर्म का स्टेक होल्डर है, उसे अपनी बात कहने का अधिकार है. और जो लोग भी हिंदू धर्म के स्टॉक होल्डर होने की मोनोपॉली क्लेम करते हैं, और दूसरे की बौद्धिक स्वतंत्रता छीनते हैं वे हमारा बौद्धिक और सांस्कृतिक खतना करना चाहते हैं.

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