ये हरिद्वार हर की पैड़ी पर रील बनाई गई है,
कितनी कला है इनमें, ओह मेरी ही सोच घृणित है,
मेरी ही मानसिकता तुच्छ है,गुरु ने स्कूल में रील बनाई तो मैंने उसे लाइक्स की भूख की संज्ञा दे कर गलत किया,बाल मन के शोषण का नाम दे कर गलत किया,फिर तो ये भी गलत नहीं है,क्यों?
मैं ही बेवकूफ हूं,नासमझ हूं,संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त हूं, मैं अगर विद्यालय में,कक्षा में रील बनाने का विरोध करता हूं तो वो गलत है,मुझे पीछे खड़े बच्चों के मन में जो हीन भावना जन्म ले रही है,उसपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी शायद..
और शायद इस पर भी,कुछ बोलना उचित नहीं..
क्योंकि अगर वो सही है तो ये भी सही है
जब तक भारत में ये सिनेमा रहेगा,
ये फेम की भूख रहेगी..
सामाजिक पतन इसी प्रकार होता रहेगा..
क्या विद्यालय क्या देवालय सब जगह बस ये ही देखने को मिलेगा और अगर आपने विरोध किया तो आपको अलग थलग कर,समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा..
वो नहीं चाहते तो सबकी हां में हां मिलाओ
“ये तो मां और पुत्र का प्रेम है
इसमें गलत ढूंढने वाले ही गलत हैं
“Awww so cute”
“Wow such a cute teacher”
“Oh that’s motherly love”
“अरे ये तो यशोदा मां का प्रेम है”
की संज्ञा दो
समाज तुम्हें सर पर चढ़ाएगा,
पर कटु सत्य मत बोल देना..
वर्ना अकेले छोड़ दिए जाओगे..
फिर बोलते रहना कोई नहीं सुनेगा..
पिछला किया सब स्वाहा हो जाएगा
इसलिए चुप रहो एकदम चुप
Shhhhhh…