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#A_सर्टिफिकेट

कुछ हिंदू शेर-शेरनियां तर्क वितर्क कर रहे कि बच्चों को #कश्मीर_फाइल्स दिखाने से उनपर गलत प्रभाव तो नहीं पड़ेगा?
यानि
– हमारा बच्चा/बच्ची हिंसा दृश्यों को देखकर कहीं मूतने न लगे।
-कहीं हमारे बच्चे को रात में डरावने सपने न आने लगे।
-कहीं हमारे बच्चे का ध्यान पढ़ाई से डिसअट्रैक्ट न हो जाये।
-कहीं हमारा बच्चा ‘नफरत’ न सीख जाये।
मेरे पास बेहतर सॉल्यूशन है।
एक थैली सिलवाओ और उसमें अपने बच्चे को कंगारू की तरह रखो।
मेरा प्यारा राजदुलारा।
और एक वो भी थे जो अफगानिस्तान से नर्मदा तक फैले थे।
राजपूत!
जिन्हें माँ का दूध छूटते ही खून की नदी में तैरने को झोंक दिया जाता था।
जिनके नन्हे बच्चों से बलि दिलवाई जाती थी ताकि दुश्मन की कटी गर्दन से फव्वारे की तरह बहते खून और कटे हुए फुदकते सिर को देख हाथ में थमा खड्ग कांप न जाये।
उनकी औरतें भी पूरी बावली थीं।
खबर आती थी कि तुम्हारा बींद, तुम्हारा होने वाला पति वीरगति को प्राप्त हुआ और वे बावली औरतें पूछती थीं ‘उनकी’ पीठ में कोई घाव तो नहीं था?
ऐसे जुनूनी थे वे, इसीलिये 700 ई. से 1527 तक लड़ते रहे और मरते रहे।
घटते-घटते आज सिर्फ 5% रह गए।
उन औरतों ने अपने बच्चे तो नहीं रोके कि बेटा जंग के खून को देख तेरा हाजमा खराब हो जाएगा।
और यहाँ अपने देश में अपने ही भाइयों के बहे खून को पर्दे पर देखने में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की चिंता हो रही है।
जबकि निरीह गिरिजा टिक्कू का ये शव घ्र हिंदू बच्चे के दिमाग में चिपक जाना चाहिए।
दूसरी ओर वे बचपन से अपने बच्चों को ट्रेंड करते हैं मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाते हैं खून देखने को, लड़ने को।
लोग सुझाव देते हैं कि अनिवार्य सैनिक शिक्षा लागू कर दी जाए लेकिन अधिकांश हिंदू चाहेंगे कि पडोसी का बच्चा सैनिक प्रशिक्षण ले, हमारा बच्चा तो डॉक्टर, इंजीनियर बनेगा।
भगतसिंह तो पड़ोसी का बेटा बने,
मेरा बेटा तो गांधी बनकर अहिंसा व ब्रह्मचर्य के प्रयोग करेगा।

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